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ईरान में नई रोशनी बनकर उभरे हसन रोहानी
ईरान के राष्टÑपति चुनाव में उदारवादी नेता हसन रोहानी की जीत से इतना तो साफ हो ही गया है कि ईरान में भी अब कट्टरवादी धारा को पसंद नहीं किया जा रहा है। खुलेपन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पसंद करने वालों ने रोहानी के पक्ष में जोरदार मतदान करके शांतिपूर्ण तरीके से यह संकेत दे दिया है कि अब ईरान बदलते युग के साथ कदमताल करने के लिए पूरी तरह से तैयार है और अपना मुस्तकबिल कट्टरवादी शक्तियों के हाथ में बिल्कुल सौंपना नहीं चाहता। सनद रहे कि हसन रोहनी ने जिन पांच प्रत्याशियों को मात दिया है, उनमें से सभी के सभी कट्टरवादी धारा से जुड़े हुये थे और ईरान को लकीर का फकीर बनाये रखने के पक्षधर थे। रोहानी लगातार ईरान की बदलती हुई सूरत का जिक्र करते हुये ईरान को दुनिया के साथ जोड़ कर आगे बढ़ने की बात कर रहे थे, जिसे ईरान की अवाम का भरपूर समर्थन मिला। जिस तरह से ईरान में 72.2 फीसदी मतदान हुआ था, उसी से अंदाजा लगाया जा रहा था कि इस बार ईरान कट्टरवादियों के प्रभाव से पूरी तरह से मुक्ति पाने के लिए छटपटा रहा है। आणविक हथियार के मसलों को लेकर ईरान पूरी दुनिया से अलग-थलग पड़ता जा रहा था, जो ईरान की जनता को रास नहीं आ रही थी। ऐसे में हसन रोहानी एक नई उम्मीद बनकर उभरे और लोगों ने उन्हें हाथों हाथ लिया। अब रोहानी की जीत के बाद लोग सड़कों पर उतर कर जबरदस्त तरीके से जश्न मनाने में लगे हुये हैं। फिलहाल पूरा ईरान जश्न के माहौल में डूबा हुआ है।
चल गया रोहानी का जादू
ईरान के राष्टÑपति के पद तक पहुंचने वाले हसन रोहानी शुरू से ही सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे हैं। वह विशेषज्ञों की एसेंबली, एक्सपेडिएंसी कौंसिल और नेशनल सिक्यूरिटी कौंसिल के सदस्य रहने के साथ साथ स्ट्रैटेजिक रिसर्च सेंटर के प्रमुख भी रह चुके हैं। इसके अलावा वह दो बार मजलिस के उपसभापति बन चुके हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण भूमिका उन्होंने ईरान की ओर से परमाणु संकट के वार्ताकार के तौर पर निभाई है। राष्टÑपति पद के चुनाव में शिरकत करने के साथ ही उन्होंने नागरिक अधिकारों पर एक चार्टर लाने की बात कही थी, जिसे लोगों ने बेहद पसंद किया। परमाणु मसले पर दुनिया से अलग -थलग पड़ने की वजह से ईरान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा रही थी। इसे दुरुस्त करने के लिए उन्होंने ईरान की जनता को यकीन दिलाया था कि उनके राष्टÑपति बनने के बाद पाश्चात्य देशों के साथ संबंध को दुरुस्त करते हुए ईरान की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की पूरी कोशिश की जाएगी। जिस तरह से परमाणु संकट को लेकर ईरान पर मगरबी मुल्कों ने आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे थे, उससे ईरान की जनता बेदह परेशान थी। ऐसी स्थिति में ईरान को एक नये आर्थिक युग में प्रवेश दिलाने की उनकी बातों ने लोगों पर जादू सा असर किया और कट्टरपंथियों के तमाम एजेंडों को दरकिनार करते हुये उन्होंने हसन रोहानी को ही राष्टÑपति पद के लिए बेहतर उम्मीदवार माना, जो उनकी आकांक्षाओं को साकार करने की काबिलियत से ओत-प्रोत लगे।
शिक्षा के साथ राजनीतिक सक्रियता
हसन रोहानी का जन्म 1948 में सेमानान के नजदीक सोरखेह में हुआ था। उनका परिवार शुरू से ईरान के शाह की मुखालफत करता रहा था। वर्तमान रिवाजों के मुताबिक उन्होंने अपनी धार्मिक पढ़ाई सेमानान सेमिनरी में शुरू की थी। आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें क्यूम सेमिनरी में जाना पड़ा, जहां पर उन्हें अपने समय के माने हुये इस्लामिक विद्वानों से बहुत कुछ सीखने को मिला। इस्लाम के साथ-साथ उन्होंने आधुनिक पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दिया। आगे कानून की पढ़ाई के लिए उन्होंने 1969 में तेहरान विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। बाद में उन्होंने ग्लासगोव केलेडोनिया विश्वविद्यालय से ‘ईरानी अनुभव के संदर्भ में इस्लामिक विधायी शक्तियां’ विषय पर एमफिल भी किया। इसी दौरान एक युवा धार्मिक शिक्षक के तौर पर अयातुल्ला खोमैनी के नेतृत्व में ईरानी इस्लामिक क्रांति के दौरान वह राजनीतिक गतिविधियों में शिरकत करने लगे। उन्होंने ईरान की यात्रा शुरू कर दी। अपनी यात्रा के दौरान वह जनसभाओं में शाह सरकार की खुलकर मुखालफत करने लगे। इसकी वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा और साथ ही उन पर सार्वजनिक सभाओं में बोलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। नवंबर, 1977 में तेहरान के आर्क मस्जिद में मुस्तफा खौमनी की मौत पर आयोजित एक सभा में उन्होंने पहली बार इस्लामिक क्रांति के निर्वासित नेता अयातुल्ला खोमैनी के लिए ‘इमाम’ शब्द का इस्तेमाल करके इस्लामिक क्रांति को एक नई दिशा दी। इसके लिए उन पर मुकदमा भी चलाया गया। बाद में अपने शुभचिंतकों की सलाह पर उन्होंने ईरान से बाहर निकलने में ही भलाई समझी। ईरान के बाहर भी वह खोमैनी और इस्लामिक क्रांति के पक्ष में ईरानी छात्रों को संगठित करते रहे। पेरिस में खोमैनी के आगमन पर उन्होंने उनका जोरदार इस्तकबाल किया।
रोहानी की उपलब्धियां
सत्तर के दशक में इस्लामिक क्रांति की फतह के बाद रोहानी ने ईरानी फौज और ईरान के फौजी अड्डों को व्यवस्थित करने में अहम भूमिका निभाई। चूंकि क्रांतिकारी संघर्षों में वह पिछले दो दशक से सक्रिय थे, इसलिए उन्हें ईरान की जमीनी हकीकत का अच्छी तरह से अहसास था। उन्हें यकीन था कि ईरानी सेना को व्यवस्थित किये बिना ईरान के मुस्तकबिल को दुरुस्त नहीं किया जा सकता है। बाद में ईरान-इराक युद्ध के दौरान रोहानी की वजह से ईरान इराक से लंबे समय तक लोहा लेने में सक्षम साबित हुआ। ईरान-इराक युद्ध के दौरान (1982-88) रोहानी रक्षा समिति के एक अहम सदस्य थे। साथ ही इन्हें युद्ध के उप कमांडर की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी। इसके अलावा ईरान एयर डिफेंस फोर्स के कमांडर भी थे। युद्ध समाप्ति के बाद उन्हें इस्लामिक रिवोल्यूशन गार्ड और ईरानी सेना के कमांडरों के साथ सेकेंड ग्रेड फतह मेडल से नवाजा गया था। एक अन्य समारोह में उन्हें सैन्य प्रमुख अयातुल्ला खोमैनी द्वारा फर्स्ट ग्रेड नसर मेडल अवार्ड से भी से भी नवाजा गया था। क्रांतिकारी और सैनिक गतिविधियों से इतर हसन रोहानी की वैज्ञानिक गतिविधियों में भी गहरी दिलचस्पी थी। यही वजह था कि ईरान से पर्सियन और अंग्रेजी भाषा में निकलने वाले तीन साइंस पत्रिकाओं के वह प्रबंध संपादक भी रहे और वैज्ञानिक मसलों पर वह लगातार लिखते भी रहे।
अभी बाकी है आजमाइश
बहरहाल इन तमाम योग्यताओं और शानदार फतह के बावजूद ईरान के राष्टÑपति के तौर पर हसन रोहानी का रास्ता आसान नहीं है। अहमदीनेजाद का आठ वर्षों के कार्यकाल को आर्थिक अस्थिरता और विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम को लेकर ईरान पर पश्चिम के प्रतिबंध के रूप में जाना जाता है। आर्थिक प्रतिबंध का स्पष्ट असर ईरान पर देखा जा सकता है। अभी हसन रोहानी के सामने सबसे बड़ी चुनौती ईरान की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मगरबी मुल्कों का विश्वास हासिल करने की है। वैसे अपने उदारवादी नजरिये की वजह से पाश्चात्य मुल्कों में उनकी मकबूलियत उनके पूर्ववर्ती अहमदीनेजाद के मुकाबले अधिक है। बेहतर कूटनीतिक प्रयासों के जरिये अंतरराष्टÑीय परमाणु एजेंसी के साथ-साथ मगरबी मुल्कों के नुमाइंदों की हिमायत हासिल करके वह इन प्रतिबंधों से ईरान को मुक्ति दिला सकते हैं। लोगों ने उनके पक्ष में मतदान करके इस बात की तस्दीक कर दी है कि ईरान कट्टरवादिता को त्याग कर पूंजीवाद के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए तैयार है। लेकिन उनकी जीत का यह कतई मतलब नहीं है कि ईरान में कट्टरपंथी ताकतें नेपथ्य में चली जाएंगी। ईरान में एक बहुत बड़ा तबका आज भी कट्टरवादी विचारधारा को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। यदि हसन रोहानी इस वक्त ईरान के आधुनिकीकरण की दिशा में कोई हार्ड स्टेप उठाते हैं तो उन्हें इन कट्टरवादी ताकतों की ओर से गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।