हार्ड हिट

कटेगा इंसान ही, चाकू का रंग चाहे भगवा हो हरा: नेहा सिंह राठौर

कब तक गाती रहूंगी बेरोजगारी के गीत,यह सवाल मुझे मथता है…
योगी सहज इंसान लेकिन योगी सरकार बेहतर नहीं..
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मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। जनसमस्याओं को लेकर सत्तर वर्ष पूर्व लोक कवि दुष्यंत कुमार की लिखी गई गजल वर्तमान समय में लोक गायिका नेहा सिंह राठौर के सीने में धधक रही है। ‘माटी रत्न सम्मान’ ग्रहण करने के लिए नेहा सिंह रामनगरी में आई थीं। नेहा के पहले यह सम्मान पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा, साहित्यकार डाक्टर विद्या बिंदु सिंह को मिल चुका है। खास बात यह है कि इस सम्मान के बाद दोनों महिलाओं को भारत सरकार ने पद्मश्री से भी नवाजा है। इस मौके पर स्वतंत्र पत्रकार ओम प्रकाश सिंह की नेहा सिंह राठौर से खास बातचीत प्रस्तुत है।

आपको कब और क्यूं लगा कि आम आदमी की समस्याओं को आवाज़ देना चाहिए।
– कुछ तय नहीं था। सब सामान्य चल रहा था। अचानक से शुरुआत हुई। गांव की सड़क की हालत देखकर ये ख्याल आया कि गांव गिरांव, समाज की समस्याओं को सत्ता के कानों तक पहुंचाया जाए।
सरकार के खिलाफ आवाज उठाने पर कभी डर लगा कि उत्पीड़न हो सकता है।
– नहीं, डर कभी नहीं लगा। इस बात का जरूर डर लगा कि मेरा गीत हमारे लोगों को ना पसंद आया तो अपने ही ट्रोल करेंगे और समर्थक तो करेंगे ही। सरकार से कभी डर नहीं लगा। अपना विरोध दर्ज कराने के लिए मैं आजाद हूं और वह करती रहूंगी। किसी शायर ने कहा है कि ‘करना सवाल आपसे बिल्कुल मुहाल है! कहने लगे हैं आप, कि ये क्या सवाल है?
लोहिया कहते थे कि कट्टरपंथी हिंदू, चाहे उनका उद्देश्य कुछ भी हो, भारतीय राज्य के टुकड़े कर देंगें।
– हम सब को एक होने की जरूरत है। मुसलमान इसी देश का है। कुर्बानी देने वाली कौम है। हिंदू ही सिर्फ राष्ट्रभक्त नहीं है। फर्क तो राजनीतिक दलों की देन है।
बेशरम रंग को लेकर बखेड़ा खड़ा कर दिया गया है। आईटी सेल ने इसे धर्म से जोड़ दिया है।
– रंग को लेकर मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मेरा मानना है कि सामाजिक मूल्यों का कत्ल चाहे भगवा रंग के चाकू से हो या हरे रंग के चाकू से कटेगा तो इंसान ही। वैसे भी फिल्मों के गीत, अश्लीलता आदि पर नियंत्रण के लिए सेंसर बोर्ड है, उसने इसे स्वीकृति दी है। सेंसर बोर्ड सरकार के ही अधीन है।
सरकार के अनकहे पक्ष को गोदी मीडिया जिस तरह से प्रसारित करती है उससे झूठ का बोलबाला है। कलयुग में भक्तिकाल चल रहा है।ये कब तक चलेगा।
– कब तक भक्ति काल चलेगा इसको लेकर जितने त्रस्त आप हैं उतना मैं भी हूं। मेरा भी यही सवाल है कि यह सब कब तक चलता रहेगा लेकिन मेरा विरोध लोकगीत के माध्यम से तब तक चलेगा जब तक तक समस्याएं दूर नहीं होती।
जनसमस्याओं के निदान का कोई खाका आपके जेहन में है या सिर्फ विरोध ही करना है।
– समस्याओं का समाधान मेरे पास तो नहीं है क्योंकि मेरे पास शक्ति नहीं है, पावर नहीं है लेकिन सत्ता को उसका समाधान खोजना चाहिए। मैं मंचों से आम आदमी की बात सत्ता तक पहुंचाती रहती हूं।
अयोध्या बन-बिगड़ रही है। इसे किस दृष्टि से देखती हैं।
– राम के नाम पर राजनीति करने वालों को यह ध्यान रखना चाहिए कि राम, रण में जरूर रहे हैं लेकिन उनका उद्देश्य शांति रहा है और जीवन मर्यादित। आम आदमी की पीड़ा हरने का काम ही रामराज था ना कि पीड़ा पहुंचाना।
लोकगीत बन चुका है ‘का बा’। ये कब तक चलेगा।
– मैं खुद अपने से सवाल पूछती हूं कि मैं कब तक यह गाती रहूंगी। यूपी-बिहार गुजरात बंगाल में ‘का बा’ कब तक जिंदा रहेगा। बेरोजगारी के गीत कब तक गाती रहूंगी, यह सवाल मुझको मथता है।
अब उत्तर प्रदेश आपकी ससुराल है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सरकार के बारे में क्या राय है
-योगी जी सहज इंसान हैं। उनको गुस्सा आता है तो गुस्सा करते हैं उनको रोना आता है तो रो लेते हैं। सुधार के दृष्टिकोण से सरकार के स्तर पर बहुत कुछ नहीं हुआ है। स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। बेरोजगारी है, महंगाई है।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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