पहला पन्ना
केजरीवाल की प्रयोगधर्मिता पर सवाल
भारत में सियासत और सांप्रदायकिता का चोली-दामन का संबंध है। राष्टÑीय स्तर पर सांप्रदायकिता को लेकर स्पष्ट पर तौर पर दो खेमा बना हुआ है। एक खेमे की नुमाइंदगी नरेंद्र मोदी कर रहे हैं तो दूसरे खेमे की कमान कांग्रेस के हाथ में है। इन दोनों खेमों के बीच दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी एक प्रयोगवादी पार्टी के तौर पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए छटपटा रही है। प्रयोग के दौरान जिस तरह अरविंद केजरीवाल लोगों से खुल कर मिल रहे हैं, उससे सांप्रदायिकता के छींटे उनके ऊपर भी पड़ने लगे हैं। बरेली दंगों के आरोपी मौलाना तौकीर रजा से उनकी मुलाकात के बाद उनकी प्रयोगधर्मिता पर सवाल उठने लगा है और उन्हें अन्य दलों की तरह लकीर का फकीर साबित करने की कवायद तेज हो गई है।
क्या सार्वजनिक जीवन से भ्रष्टाचार को दूर करने की प्रतिबद्धता के साथ राजनीति में प्रवेश करने वाले आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल को सांप्रदायिक शक्तियों से कोई गुरेज नहीं है? क्या चुनाव में फतह हासिल करने के लिए अरविंद केजरीवाल भी अपने सिद्धांतों को ताक पर रखकर सांप्रदायकि शक्तियों से हाथ मिलाने की राह पर चल पड़े हैं? क्या अरविंद केजरीवाल का प्रयोगवादी नजरिया फिरकापरस्ती के तंग गलियारे में सिमटता जा रहा है? जिस तरह से बरेली में दंगा भड़काने के आरोपी मौलाना तौकीर रजा के साथ अरविंद केजरीवाल ने गलबहियां की हैं, उससे तो यही पता चलता है कि वह भी चुनावी मैदान में अपने विरोधियों को परास्त करने के लिए सांप्रदायिकता का दामन थाम रहे हैं। भारतीय राजनीति में अरविंद केजरीवाल की भूमिका शुरू से ही संदिग्ध रही है। अन्ना हजारे को हाशिये पर धकेल कर जिस तरह से उन्होंने आम आदमी पार्टी का गठन किया था, उससे उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा स्पष्टतौर पर दिखाई दी थी। आम आदमी की पैरोकारी करने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल पहले राष्टÑीय स्तर पर भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए हुंकार भरते रहे और बाद में खुद को दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में पेश करते हुये अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को नये आकार में ढालने की कोशिश करने लगे। कहा जा रहा है कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा उन पर इस कदर हावी हो गई कि उन्हें सांप्रदायिक शक्तियों के साथ भी उठने-बैठने से परहेज नहीं रहा। बहरहाल मौलाना तौकीर रजा के साथ उनकी मुलाकात उनके गले की फांस बन गई है और इस संबंध में पूछे जाने वाले तीखे सवालों से उनका हलक सूख रहा है।
सांप्रदायिक नेताओं की पांत में केजरीवाल
इसमें कोई दो राय नहीं है कि दिल्ली की सियासत में आम आदमी पार्टी की धमक बढ़ी है। अरविंद केजरीवाल दिल्ली चुनाव में अपनी पूरी शक्ति झोंके हुये हैं और उन्हें इसका अच्छा प्रतिसाद भी मिल रहा है। लोगों का झुकाव आम आदमी पार्टी की ओर तेजी से बढ़ता जा रहा है। यहां तक कि कांग्रेस और भाजपा भी अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को गंभीरता से लेने लगी है। दिल्ली में एक तबका कांग्रेस और भाजपा दोनों से नाराज है और यह तबका धीरे-धीरे अरविंद केजरीवाल के पीछे खड़ा हो रहा है। ऐसे में अरविंद केजरीवाल द्वारा मौलाना तौकीर रजा से मुलाकात करके दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के पक्ष में समर्थन मांगने की वजह से सियासी भूचाल आना लाजिमी है। मौलाना तौकीर रजा की छवि एक कट्टर सांप्रदायिक नेता की है। इन पर न सिर्फ बरेली में दंगा भड़काने का आरोप है बल्कि इसके पहले बांग्लादेश की विख्यात लेखिका तसलीमा नसरीन के खिलाफ भी मोर्चा खोलकर वह कट्टरवादिता का परिचय दे चुके हैं। महज वोट हासिल करने के लिए मौलाना तौकीर रजा से अरविंद केजरीवाल का हाथ मिलाना उन लोगों को भी रास नहीं आ रहा है, जो अब तक आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को उम्मीद भरी नजरों से देख रहे थे। उन्हें यह महसूस होने लगा है कि अब अरविंद केजरीवाल भी वोट पॉलिटिक्स करते हुये उन्हीं नेताओं की पांत में आ खड़े हुये हैं, जिनका एक मात्र मकसद किसी भी तरीके से चुनाव में फतह हासिल करना है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि अरविंद केजरीवाल अपनी चमक कैसे बचाते हैं। फिलहाल सांप्रदायकिता की ओर कदम बढ़ाने की वजह से उनकी चौतरफा आलोचना हो रही है।
‘आप’ में स्पष्ट चिंतन का अभाव
दिल्ली में अंदर खाते यह हवा तेजी से फैली हुई है कि अरविंद केजरीवाल की कांग्रेस से मिलीभगत है और वह भाजपा को नुकसान पहुंचाने के लिए कांग्रेस की बी टीम के रूप में काम कर रहे हैं। यही वजह है कि अपना दामन बचाते हुये कांग्रेस भी उन्हें प्रमोट कर रही है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने तो यहां तक कह दिया है कि आप तीसरे नंबर पर है। हालांकि अरविंद केजरीवाल इस तरह से आरोपों को सिरे खारिज करते हुये कह रहे हैं कि उनका किसी के साथ कोई सांठगांठ नहीं है। वह न तो कांग्रेस के एजेंट हैं और न ही भाजपा के। वह आम आदमी के एजेंट हैं। उनकी लड़ाई भ्रष्टाचार से है और कांग्रेस व भाजपा दोनों भ्रष्टाचार में बुरी तरह से लिप्त है। कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ तो अरविंद केजरीवाल मुखर होकर हमला कर रहे हैं लेकिन मौलाना तौकीर रजा से मुलाकात के मसले पर उनका लय टूटता हुआ दिख रहा है। दूसरी ओर मौलाना तौकीर रजा ने यह कह कर कि अरविंद केजरीवाल से सबसे बड़ा वादा तो मुझे यह चाहिए कि अगर दिल्ली में केजरीवाल की सरकार बनती है तो बटला हाउस मुठभेड़ की उच्चस्तरीय जांच होगी, लगातार उनकी मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। यदि समय रहते अरिवंद केजरीवाल इस मसले पर स्पष्ट रवैया नहीं अपनाते तो निस्संदेह उनकी लोकप्रियता को धक्का लगेगा। फिलहाल इस मसले पर आम आदमी पार्टी में स्पष्ट चिंतन का अभाव दिख रहा है और इसका भरपूर फायदा कांग्रेस और भाजपा उठाने की कोशिश कर रही है। इस मसले को जानबूझकर मीडिया में खूब उछाला जा रहा है ताकि सिद्ध किया जा सके कि अरविंद केजरीवाल उनकी आम आदमी पार्टी भी अन्य पार्टियों की तरह ही है।
युवाओं का भरपूर समर्थन
जानकारों का कहना है कि आम आदमी पार्टी अभी अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में चलना सीख रही है। पार्टी के पास उत्साह और जज्बा तो है लेकिन अनुभव की कमी है और अनुभव एक-दो दिन में हासिल होने की चीज नहीं है। कोई भी पार्टी समय के साथ ही परिपक्व होती है। आम आदमी पार्टी को भी परिपक्व होने में थोड़ा वक्त लगेगा। कई मौकों पर अरविंद केजरीवाल भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि उन्हें और उनकी पार्टी को सही दिशा में बढ़ने के लिए बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। सबसे अच्छी बात यह है कि आम आदमी पार्टी को युवाओं का भरपूर समर्थन मिल रहा है। दिल्ली में चुनावी अभियानों की बागडोर इन्हीं युवाओं ने संभाल रखी है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी को इकतरार में लाने के लिए युवाओं की टोलियां विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में जमकर मेहनत कर रही हैं। देर-सवेर इनकी मेहनत रंग लाएगी ही, बस जरूरत है चीजों को सही संदर्भ में देखने और रखने की। बेहतर होगा अरविंद केजरीवाल मौलाना तौकीर रजा जैसे लोगों से दूरी बना कर चलें और इस तरह की कोई बात सामने आती है तो उस पर त्वरित और स्पष्ट स्टैंड लें। चुनाव के दौरान छोटी-छोटी बातों का महत्व होता है, जब मामला सांप्रदायिकता से जुड़ा हो, तो निस्संदेह इस पर गंभीर रवैया अख्तियार करने की जरूरत है।