गब्बर तुम एक मारोगे तो हम चार मारेंगे के तर्ज पर चल रहे हैं नक्सली
एक ओर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नक्सलवाद को देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बता रहे हैं तो दूसरी ओर शिवहर के झिटकहियां गांव में एक थाना प्रभारी समेत छह पुलिसकर्मियों को उड़ा कर नक्सलियों ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि चरणबद्ध तरीके से हो रहे बिहार विधानसभा चुनाव में हिंसा करके भय फैलाने की रणनीति पर आगे बढ़ते रहेंगे। चुनाव प्रक्रिया पर उन्होंने अपनी स्ट्रेटजी पूरी तरह से तय कर लिया। लेटेस्ट खबर यह है कि खूंटी में उन्होंने पोस्टर चिपका कर 40 व्यापारियों से लेवी की मांग की है, और बदले में उन्हें सुरक्षा की गारंटी दी है।
खबर के मुताबिक श्यामपुर भटहां थानाध्यक्ष प्रवीण कुमार सिंह को पिछले तीन दिन से नक्सली लगातार धमका रहे थे। नक्सलियों के आपरेशन में वह बाधक बन रहे थे, अपने इलाके को टाइट कर रखा था, वाहनों की धड़पकड़ जोर-शोर से कर रहे थे। नक्सलियों ने उन्हें अपने टारगेट पर ले रखा था। नक्सलियों की मानसिकता और स्ट्रेटजी के मुताबिक उन पर हमला होना ही था।
नक्सलियों के लिबरेटेड इलाके में पूरी तरह से उनका कानून चल रहा है, सरकारी मुलाजिम भी अपनी जान बचाने के लिए नक्सलियों के कोड आफ कंडक्ट को फौलो कर रहे हैं और जो लोग नहीं कर रहे हैं उनका धड़ल्ले से सफाया किया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक नक्सलियों ने 24 विधानसभा क्षेत्रों को टारगेट कर रखा है। उनका मानना है कि यदि उनकी धमकी से वोटर घर से बाहर नहीं निकलते हैं तो उस क्षेत्र में विशेष में उनका प्रभाव स्थापित हो जाएगा। इस तरह से भविष्य में अन्य भू-भाग को भी लिबरेट कर लिया जाएगा। खूंटी में व्यापारियों से लेवी मांगने की पीछे भी यह रणनीति काम कर रही है।
उधर राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय (एनडीसी) की स्वर्ण जयंती पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि देश अपने अधिकारों को चुनौती देने का अधिकार किसी को नहीं देता, नक्सलवाद देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है। मनमोहन सिंह और उनका कुनाब इस तरह की बात लगातार करते आ रहे हैं, लेकिन नक्सलियों के हौसले पर इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा है। गब्बर तूम एक मारोगे तो हम चार मारेंगे के स्टाईल में नक्सली अपना काम करते जा रहे हैं। सबसे बुरी स्थिति तो उन प्रत्याशियों की है जो नक्सल प्रभावित इलाकों से चुनाव में भाग ले रहे हैं। खबर तो यह भी है कि कुछ प्रत्याशी नक्सलियों के साथ सांठ-गांठ करने में भी लगे हुये हैं और नक्सली उन प्रत्याशियों को अपनी भावी लड़ाई में नफे और नुकसान के आधार पर तौल रहे हैं। नक्सली सरकार के अंदर अपने लोगों को बैठाने की रणनीति पर भी समानांतर रूप से अमल कर रहे हैं।