हर दिन बदल रही हैं फिल्ममेकिंग व प्रमोशन विधाएं

2
44

दुर्गेश सिंह, मुंबई
दो करोड़ के आस-पास के मामूली से बजट में बनी “लव सेक्स और धोखा” बिना किसी स्टार चेहरे के चर्चा और पैसा बटोर ले जाती है, जबकि 2300 प्रिंट्स के साथ देश भर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई “काइट्स” को लागत वसूलने के लिए ओवरसीज क्लेक्शन्स का सहारा लेना पड़ता है। निर्देशक दिबाकर बनर्जी अपनी फिल्म का प्रमोशन पहली डिजिटल फिल्म बताकर करते हैं, जबकि प्रोमो एमएमएस के जरिए पहली बार जारी करते हैं। दिबाकर की यह रणनीति न्यू एज सिनेमा के दौर में उस यंग ऑडियंस तक पहुंचने की कवायद थी, जो रिलीज के पहले तीन दिनों में फिल्म को हिट करा देती है।

“क्रिश” के बाद का हिंदुस्तांन कितनी तेजी से बदला है बॉक्स ऑफिस पर राकेश रोशन को शायद इस बात का भान भी नहीं रहा होगा। बॉक्स ऑफिस पर पिछली दो सफलताओं का स्वाद चखाने में बच्चा ऑडियंस बहुत जिम्मेदार थी लेकिन “काइट्स” में वे अपनी ऑडियंस पहचानने में चूक गए। वैसे साल की मोस्ट अवेटेड फिल्म से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है रितिक रोशन की इमेज को। सुपरस्टारडम का तमगा अब भी कोसों दूर है। पिता की फिल्म हिट होने का भ्रम भी टूट गया है। इस फिल्म की वजह से उन्होंने कई बड़ी फिल्मों के ऑफर भी ठुकराए। दूसरा नुकसान हुआ है निर्देशक अनुराग बसु को, पहली बार महेश भट्ट के छत्रछाया से बाहर निकले अनुराग से दर्शकों को किसी फ्रेश फिल्म की उम्मीद थी लेकिन खूबसूरत विदेशी लोकेशन्स, ढेर सारा पैसा, उसी अनुपात में जुआ, माफिया की बेटी को हीरो का पसंद आना लेकिन हीरो को किसी और से प्यार होना, यह सब आप एक हजार बार मुम्बईया फिल्मों में देख चुके हैं। उत्तर भारत के एक डिस्ट्रीब्यूटर ने तो निचली अदालत में मुकदमा भी दायर किया है कि निर्माता ने फिल्म हिंदी में कहकर बेची है, जबकि सत्तर फीसदी संवाद स्पैनिश और अंग्रेजी में हैं । दरअसल दर्शक बदला है तो वह भी बाजार की वजह से। हिंदी फिल्मों से कम दाम में विश्व सिनेमा बाजार में है तो दिमाग को कचरे की खुराक क्यों दें। फिल्ममेकिंग से लेकर प्रमोशन तक की सभी विधाएं हर दिन बदल रही है। ऑडियो-वीडियो, सीडी-डीवीडी और अब माइकरो एसडी कार्ड में गाने ही नहीं पूरी फिल्म आ जा रही हैं। प्रोमो टीवी पर आने से पहले यू ट्यूब पर आ जा रहे हैं। अभिषेक चौबे निर्देशित फिल्म “इश्किया” के यू ट्यूब पर आए पहले प्रोमो पर सैकड़ों कमेंट्स आए थे जिनमें निर्देशक अनुराग कश्यप का कमेंट भी शामिल है ‘दिस इज कोल्ड प्रोमो “देव डी” के को-राइटर विक्रमादित्य मोटवाने द्वारा निर्देशित पहली फिल्म “उड़ान” के फर्स्ट प्रोमो यू ट्यूब पर जारी किए गए हैं। फिल्म को कांस फिल्म फेस्टिवल में स्टैंडिंग ऑवेशन मिला, जिसमें थिएटर की पहली कतार में वल्र्ड फेम राइटर पॉओलो काल्हो भी शामिल थे। झारखंड के जमशेदपुर में शूट की गई फिल्म एक किशोर की कहानी है, जो अपने अनुशासित पिता के बेवजह हो चले अनुशासनों से ऊब चुका है। बकौल अनुराग कश्यप उन्होंने “उड़ान” को खुद इसलिए प्रोड्यूस किया है कि कोई भी प्रोडक्शन हाउस उनकी इस फिल्म में पैसा लगाने को तैयार नहीं होता। अब चूंकि फिल्म कान्स में प्रदर्शित हो चुकी है तो डिस्ट्रीब्यूटर भी फिल्म को रिलीज करने को तैयार हैं। ऑफबीट फिल्मों के निर्देशक ओनीर ने हिंदी सिनेमा में बाजार के दबाव से बचने को लिए देशभर के दर्शकों को को-ऑनर बनाने की मुहिम शुरू की जो रंग लाई। आई एम सीरिज के शीर्षक में उन्होंने आधे घंटे से कम समय की कुछ चार फिल्में बनाई है। फिल्म प्रदर्शन को तैयार है और ओनीर की इस कोशिश में 400 से अधिक दर्शकों का पैसा लगा है।

जिन लोगों ने प्रकाश झा की राजनीति देखी है उन्हें अच्छे से पता है कि “हिप हिप हुर्रे”, “दामुल”, “मृत्युदंड”, “गंगाजल” और “अपहरण” बनाने वाला निर्देशक राजनीति बनाते वक्त बाजार को लेकर बेहद सावधानी बरतता है। पूरी फिल्म में कैटरीना कैफ के अभिनय को पंद्रह मिनट से अधिक स्क्रीतन शेयर करने का मौका नहीं मिला है। लेकिन प्रमोशन्स में उनका जमकर फायदा उठाया गया। झा खुद स्वीकार करते हैं कि वह जमाना लद गया जब एनएफडीसी फिल्मों को प्रोड्यूस और डिस्ट्रीब्यूट करता था और मणि कौल, कुमार साहनी, तपन सिन्हा, सईद मिर्जा और कुंदन शाह जाना पहचाना नाम होते थे। यही वजह है कि प्रियदर्शन जैसा मंझा कामेडी फिल्मों का निर्देशक जब लीजेंडरी ईरानी फिल्मों के निर्देशक माजिद मजीदी की फिल्म “चिल्ड्रेन ऑफ हेवेन” को कापी करता है तो “बम बम भोले” जैसी एक घटिया फिल्म बनती है। फिलहाल प्रियदर्शन 1989 में रिलीज हुई मलयालम फिल्म “वेलनकलुडे नाडू” का हिंदी रीमेक “खट्टा मीठा” लेकर हाजिर हैं। दरअसल प्रियदर्शन की एक के बाद एक रिलीज हो रही फिल्मों के पीछे बाजार बहुत बड़ा फैक्टर हैं। उन्हें इंडस्ट्री का मोस्ट इकनॉमिक डायरेक्टर माना जाता है। वो अभिनेताओं को रीटेक नहीं करने देते, प्रॉडक्शन कास्ट बहुत ही कम होती हैं और दो से तीन लोकशन्स व स्टार्ट टू फिनिश शेड्यूल में ही फिल्म की शूटिंग पूरी हो जाती है। शाहरुख खान के साथ उनकी पिछले साल रिलीज हुई फिल्म “बिल्लू बारबर” की यूनिट से जुड़े एक सदस्य की माने तो उन्होंने इरफान खान जैसे अभिनेता को भी रीटेक करने से मना कर दिया था। सवाल है कि बाजार और तकनीक के दम पर हिंदी सिनेमा बिना कंटेंट के विश्व सिनेमा के समानांतर खड़े होने का दंभ कब तक भरेगा ? ऑस्कर 2008 में धूम मचाने वाली “स्लमडॉग मिलिनेयर” में विकास स्वरूप को बाकायदा उनकी किताब “क्यू एंड के” लिए कास्टिंग में क्रेडिड दिया गया है लेकिन जिस तरह से “थ्री इडियट्स” की सफलता के बाद चेतन भगत जैसे सेलीब्रिटी लेखक के आरोप और इडियट एंड कंपनी के जवाब मिले, वह पिक्चर का दूसरा पहलू पेश करता है। 2000 का दशक गवाह है कि रीजनल फिल्में फिल्म फेस्टिवल्स से बाहर निकलकर बॉक्स ऑफिस पर दहाड़ रही हैं, लेकिन हिंदी फिल्मों में यह डिजास्टर का दौर जारी है। क्या वजह है कि बंगाली, तमिल, तेलुगु, मलयालम, मराठी और भोजपुरी फिल्में निरंतर अच्छा कर रही हैं? जवाब आप खुद से पूछें?



2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here