हिंसक मोड़ पर पश्चिम बंगाल

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स्टूडेन्ट्स फेडरेशन आफ इंडिया (एसएफआई) के नेता सुदीप्तो गुप्ता की मौत को लेकर पश्चिम बंगाल की राजनीति में आये उबाल का असर अब ममता बनर्जी को दिल्ली में झेलना पड़ रहा है। जिस तरह से दिल्ली के योजना भवन में एसएफआई के कार्यकर्ताओं ने ममता बनर्जी के खिलाफ नारेबाजी किये और पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्रा के साथ धक्कामुक्की करते हुए उनके कपड़े फाड़े, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि आने वाले दिनों में इस मसले को लेकर ममता बनर्जी और वामपंथ समर्थकों के बीच हिंसक संघर्ष की पूरी संभावना है। एसएफआई समेत बंगाल के तमाम वामपंथी संगठन सुदीप्तो गुप्ता की मौत की न्यायिक जांच कराने की मांग कर रहे हैं, जबकि ममता बनर्जी इसे एक सामान्य घटना मानते हुये किसी भी तरह की न्यायिक जांच से साफ तौर पर इंकार कर रही हैं। एसएफआई का कहना है कि सुदीप्तो गुप्ता की मौत कोलकाता में एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस लाठी चार्ज के बाद हुई थी। चलती बस से गिरने के बाद पुलिस ने जानबूझकर सुदीप्तो गुप्ता को टारगेट करके उनकी बेरहमी से पिटाई की थी। जबकि पुलसि का कहना है कि सुदीप्तो गुप्ता की मौत बस से गिरने की वजह से हुई थी। इसमें पुलिस का कोई हाथ नहीं है।
जानकारों का कहना है कि पश्चिम बंगाल से वामपंथियों को उखाड़ फेंकने के बाद ममता बनर्जी पूरी तरह से एक तानाशाह के तौर पर पेश आ रही हैं। वामपंथी नेताओं को हतोत्साहित करने के लिए उन्होंने पुलिस को ‘फ्री हैंड’ दे रखा है। यही वजह है कि पश्चिम बंगाल में पुलिस वामपंथी नेताओं और उनके आंदोलनों से निपटने के लिए सख्त रवैया अख्तियार किये हुये है। वामपंथी नेता भी इस बात को अच्छी तरह से समझ रहे हैं। सुदीप्तो गुप्ता की मौत के बाद जब वामपंथियों ने पश्चिम बंगला में चौतरफा विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया तो पुलिस की सख्ती और बढ़ गई। चंूकि ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में मीडिया की भी नाक में नकेल कस रखा है। इसलिए ममता बनर्जी की हुकूमत के खिलाफ खबरें वहां के स्थानीय मीडिया से पूरी तरह से गायब हो चुकी हैं। यही वजह है कि वामपंथी नेताओं ने ममता बनर्जी को दिल्ली में घेरने की योजना बनाई। योजना भवन में ममता बनर्जी के खिलाफ नारेबाजी इसी योजना की कड़ी थी। कहा जाता है कि इसके लिए वामपंथी संगठनों ने काफी तैयारियां की थी। इसे लेकर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में लंबे समय से योजनाएं बनाई जा रही थी और उस समय का इंतजार किया जा रहा था, जब ममता बनर्जी दिल्ली पहुंचें।
उनकी जबरदस्त तैयारी का पता इसी चलता है कि अतिसुरक्षित क्षेत्र होने के बावजूद योजना भवन में सैकड़ों की संख्या में एसएफआई के कार्यकर्ता जमा हो गये और ममता बनर्जी के खिलाफ न सिर्फ नारेबाजी करने में कामयाब रहे बल्कि बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्रा के साथ धक्कामुक्की करते हुये उनके कपड़े भी फाड़ डाले। जिस वक्त ममता बनर्जी वहां पहुंची थी, सैकड़ों एसएफआई कार्यकर्ता पहले से ही मौजूद थे। अब सवाल उठता है कि उन कार्यकर्ताओं को समय रहते नियंत्रित करने की कोशिश क्यों नहीं की गई, जबकि उस इलाके में बड़ी संख्या में पुलिस बल हमेशा मौैजूद रहती है? इतना ही नहीं जब नारेबाजी के साथ धक्का-मुक्की शुरू हुई, तब भी पुलिस हरकत में नहीं आई। जानकारों का कहना है कि दिल्ली में ममता बनर्जी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को अंदरखाते कांग्रेस का भी समर्थन प्राप्त था। कई कांग्रेसी नेता इस विरोध प्रदर्शन को लेकर वामपंथी नेताओं से संपर्क बनाये हुये थे। जिस तरह से ममता बनर्जी खुदरा किराना में एफडीआई के मसले को लेकर यूपीए गठबंधन बाहर हुई थी, उसे लेकर कांग्रेस पहले से ही नाराज चल रही थी। ममता बनर्जी को दिल्ली में सबक सिखाने का मौका वह चूकना नहीं चाहते थे। यही वजह है कि ममता बनर्जी के खिलाफ के विरोध प्रदर्शन को  अंदरखाते हवा देने में उन्होंने कोई कोताही नहीं की। गौरतलब है कि ममता बनर्जी अपने वित्तमंत्री के साथ योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया से मिलने शाम 3.45 बजे पहुंचीं थीं।  वहां पहले से ही छात्र संगठन एसएफआई के कार्यकर्ता मौजूद थे। यदि पुलिस चाहती तो उन्हें पलक झपकते ही वहां से खदेड़ा जा सकता था। लेकिन अदृश्य आदेशों की वजह से पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठे रही।
इस विरोध प्रदर्शन को लेकर वामपंथियों के साथ कांग्रेस की मिलीभगत को ममता बनर्जी भी अच्छी तरह से समझ रही थी। इस घटना के बाद आपे से बाहर ममता बनर्जी ने सवाल उठाया कि एसएफआई कार्यकर्ताओं से निपटने के लिए योजना आयोग में पुलिस बल की तैनाती क्यों नहीं की गई थी? वह यही नहीं रुकीं। उनका गुस्सा मोंटेक सिंह अहलूवालिया पर भी फूट पड़ा। रौ में बहते हुये तुनाकमिजाज ममता बनर्जी ने मोंटेक सिंह अहलूवालिया के समक्ष अपनी नाराजगी जाहित करते हुये कहा, ‘आप नई शुरुआत कर रहे हैं। मेरे मंत्री के साथ अभद्रता हुई है। आप हमारे राज्य का विकास इस तरह नहीं रोक सकते।’ साथ ही ममता बनर्जी ने धमकी भरे लहजे में कहा कि उनके पास दस लाख लोगों को समर्थन है और वह सब को लेकर दिल्ली चली आएंगी। वामपंथियों पर हमला करते हुये उन्होंने कहा कि ये सब गुंडे हैं और गंदी राजनीति कर रहे हैं। ममता बनर्जी की इस धमकी का असर पश्चिम बंगाल में तत्काल देखने को मिला। इस घटना के बाद सीपीएम ने आरोप लगाया है कि पश्चिम बंगाल में उसके कार्यालयों को कथित तौर पर तृणमूल के लोगों ने निशाना बनाया। हुगली, हावड़ा, बांकुरा और दार्जीलिंग जिलों में में तृणमूल कार्यकर्ताओं ने सीपीएम के कार्यालयों पर हमला किया और उनके कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की। नार्थ 24 परगना में सीपीएम के छह दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया गया।
बंगाल की सियासत पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में बंगाल में हिंसक घटनाओं में और इजाफा हो सकता है। एसएफआई सुदीप्तो गुप्ता की मौत को भूलने के लिए तैयार नहीं है। ममता की कार्यशैली से बंगाल में लोगों के बीच नाराजगी बढ़ती जा रही है और कांग्रेस इस नाराजगी से भरपूर फायदा उठाने की ताक में है। वामपंथी खेमों ने भी ममता बनर्जी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। न्यूटन के गति का तीसरा नियम प्रत्येक क्रिया के बराबर विपरीत प्रतिक्रिया होती है, पश्चिम बंगाल की राजनीति में पूरी तरह से लागू होता दिख रहा है। कहा जाता है कि ममता अपने विरोधियों से उसी के  स्तर पर जाकर निपटना बखूबी जानती है। अब यह देखना रोचक होगा कि ममता की दिल्ली से वापसी के बाद पश्चिम बंगाल की राजनीति किस दिशा में बढ़ती है। फिलहाल सुदीप्तो गुप्ता की मौत को लेकर वामपंथी संगठन भी सड़कों पर उतर कर ममता बनर्जी से दो-दो हाथ करने के लिए कसमसा रहे हैं और ममता का गुस्सा भी पूरे उबाल पर है। यह गुस्सा वामपंथियों पर कहर बन कर टूट सकता है। कहा जा सकता है कि दिल्ली में ममता के विरोध के बाद पश्चिम बंगाल हिंसक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है।

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