गिरगिट की तरह रंग बदल रहे तेजपाल
गोवा थिंक फेस्ट में महिला सहयोगी के साथ जबरदस्ती करने के मामले में खुद को बचाने के लिए तहलका के संपादक तरुण तेजपाल लगातार गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हैं। पहले तो उन्होंने इस मामले को हल्के में लेते हुये इसे एक शराबी की दिल्लगी करार दिया, फिर तहलका की मैनेजिंग एडिटर के पास जब पीड़ित पत्रकार ने मेल के जरिये शिकायत की तो फौरन माफी मांगते हुये खुद को छह महीने के लिए तहलका के संपादन कार्य से दूर रखने की घोषणा कर दी। पहले खता और फिर खुद को सजा देने की बात करके उन्होंने मामले की लीपीपोती की पूरी कोशिश की। अपने रसूख को देखते हुये उन्हें यकीन था कि महिला पत्रकार उनकी बदमिजाजी का विरोध नहीं करेगी, लेकिन जब महिला पत्रकार ने स्पष्ट कर दिया कि अपने आबरू पर हमले को वह किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगी तो तरुण तेजपाल उससे माफी मांगने का ढोंग करने लगे।
गोवा पुलिस की सक्रियता के बाद जब तरुण तेजपाल को लगने लगा कि अब पुलिस उन पर शिकंजा कसने के लिए कमर कस रही है तो अपने शातिराना दिमाग का इस्तेमाल करते हुये वो पीड़िता के घरवालों को भी सॉफ्ट टोन में धमकाने की कोशिश करने लगे। इतना ही नहीं धमकी के साथ-साथ वह इमोशनली ब्लैकमेल करने की नीति पर भी चलते रहे। पीड़िता ने तरुण तेजपाल के इस कदम का भी खुलकर विरोध करते हुये जब यह कहा कि तरुण तेजपाल और उनके हितैषी उनके परिवार से दूर रहे तब उनकी चिंताएं और बढ़ गई। इधर गोवा पुलिस जिस तेजी से दिल्ली में धावा बोलकर तहलका के दफ्तर को खंगालने और वहां काम करने वाले पत्रकारों से पूछताछ करने लगी उससे तरुण तेजपाल के पसीने छूटने लगे। अपने तरीके से उन्होंने पुलिस को मैनेज करने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह गोवा पुलिस के सामने पेशी से बेचते रहे। उनके तिकड़मी दिमाग मे बस एक ही प्रश्न कौंध रहा था कि खुद को कैसे पुलिस की गिरफ्त में आने से बचाये।
स्टिंग ऑपरेशनों के माध्यम से दूसरे के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार करने वाले तरुण तेजपाल गोवा पुलिस की जांच पड़ताल के अंदाज से घबरा कर डिफेंसिव होते चले गये। खुद को कानून के शिंकजे में फंसता देखकर अंतत: अपने बचाव के लिए उन्होंने कानून का सहारा लेना ही मुनासिब समझा। आनन फानन में उन्होंने दिल्ली की एक अदालत में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर कर दी, लेकिन अदालत ने उनकी याचिका पर विचार के लिए आगे की तारीख डालकर स्पष्ट संकेत दिया कि उनका गुनाह राहत के काबिल नहीं है। अदालत के रवैयै से तरुण तेजपाल को आभास हो गया कि यदि उन्होंने जल्द की कुछ नहीं किया तो उन्हें जेल की हवा खानी पड़ सकती है। इस बीच पुलिस से बचने के लिए वह कानूनी तिकड़म तो करते ही रहे, खुद को भूमिगत भी कर लिया।
खुद को बचाने के लिए तरुण तेजपाल जितना तिकड़म कर रहे हैं, उसका नकारात्मक प्रभाव उनकी छवि पर पड़ रहा है। अब तक उनकी पहचान एक तेज तर्रार पत्रकार के रूप में होती थी, लेकिन महिला पत्रकार की इज्जत पर हमला और हमले के बाद खुद को बचाने की उनकी तिकड़म की वजह से उनकी छवि पत्रकारिता के महानायक से महाखलनायक के रूप में बनती जा रही है।….बेहतर होता तिकड़मों के बजाय तरुण तेजपाल खुद को न सिर्फ पुलिस के सामने पेश करते, बल्कि पूरे मामले की जानकारी सारी दुनिया को भी देते। बेबाकी के लिए जाने जाने वाले स्टिंग के किंग से इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है।