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गौरवशाली श्री श्री बड़ी देवी जी मारूफगंज : 204 वर्षो से बांग्ला पद्धति से हो रही है पूजा अर्चना

आशीष कुमार सिंह, पटना सिटी

पट दोना सिटी। राजधानी ही नहीं बल्कि बिहार में श्री श्री बड़ी देवी जी मारूफगंज की पूजा अर्चना प्रसिद्ध है । शहर को आपदा एवं विपदा से बचाव के लिए श्री श्री बड़ी देवी जी की पूजा 1818 ईस्वी से आरंभ हुई जो की अभी तक अनवरत जारी है । भगवती की प्रतिमा का निर्माण के लिए कलाकार पश्चिम बंगाल और पुरोहित कोलकाता से आते हैं।

श्री श्री बड़ी देवी जी न्यास समिति मारूफगंज के सचिव डॉ राजेश कुमार ने बताया कि वर्षो पहले मंडी प्राकृतिक आपदा और विपदा से जूझ रही थी। कहा जाता है की 1818 से पहले यहां बंगाली परिवार की ओर से देवी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना होती थी। इसके बाद से मारूफगंज के व्यापारियों के सहयोग से पूजा आरंभ हुई । यहां बंगाली परिवार की ओर से ही बांग्ला पद्धति से पूजा का अनुष्ठान कराया जाता है। पष्ठी को अर्ध रात्री के बाद भगवती का पट खुल जाता है।
आकर्षण का केंद्र होता था संगीत समारोह
दशहरा पूजा में मारूफगंज पूजा समिति की ओर से आयोजित संगीत समारोह पूरे बिहार में आकर्षण का केंद्र होता था। देश के हर एक बड़े कलाकार की यह चाहत होती थी, कि यहां के मंच और श्रोता से रूबरू होने का मौका मिले । देश के बड़े फनकार यहां के मंच को शुभोभित कर चुके हैं।
खोईचा मिलन का अदभुत नजारा
प्रदेन अध्यक्ष अनुमंडल पदाधिकारी बताते है कि विसर्जन के लिए शोभा यात्रा निकाला जाता है जिसमे हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। उस दिन पूरे मंडी को बंद रखा जाता है । शेख बूचर की चौराहा के पास श्री श्री बड़ी देवी जी मारूफगंज एवं श्री श्री बड़ी देवी जी महाराजगंज का मिलन होता है। दोनों बहनों के बीच खोईचा का आदान प्रदान किया जाता है और दोनों देवी की पूजा अर्चना व आरती करने के पश्चात शोभा यात्रा विसर्जन के लिए आगे बढ़ जाती है । इस अलौकिक दृश्य को देखने के लिए हजारों लोग पहले से एकत्र रहते हैं। इस बार मा का आगमन हाथी पर और नौका पर गमन हो रहा है ।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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