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जनहित की बातों को प्रेस प्राथमिकता दें : डीएम अवनीश कुमार सिंह

लालमोहन महाराज, मुंगेर

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर प्रेस की बदलती हुई प्रकृति पर शुक्रवार को कर्ण चौरा स्थित स्थानीय जिला प्रशासन सभागार में परिचर्चा जिला पदाधिकारी अवनीश कुमार सिंह की अध्यक्षता में आयोजित की गई. उन्होंने कहा कि प्रेस की दुनिया में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तन आए हैं, परंतु मीडिया जनहित की बातों को प्राथमिकता दें जिससे लोगों को न्याय मिल सके । जब समाचार पत्रों का व्यवसायीकरण अधिक होता है तब समाचारों की गुणवत्ता तथा सच्चाई भी प्रभावित होती है।
सभागार में उपस्थित प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों से जिला पदाधिकारी श्री सिंह ने कहा कि समाचार प्राप्ति के इस सकारात्मक पहलू को स्वीकार करना चाहिए। समाचारों की गति में तेजी आने तथा वैज्ञानिक तकनीकी के कारण अन्य गुणवत्ता में वृद्धि हुई है। इसे देखते हुए संवाददाताओं को अंतिम रूप से सही खबरों को ही जन-जन तक पहुंचाना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि एक पत्र में किसी घटना के बारे में जो कुछ लिखा जाता है वह पूर्ण सही नहीं होता है । अन्य पत्र उससे कुछ हटकर समाचार प्रकाशित करते हैं, इस दोषको भी गूगल के माध्यम से कई अखबारों पर दृष्टि डालने पर अब समझ लिया जाता है। दूसरे सोशल मीडिया के क्षेत्र में जो स्थानीय करण समाचारों में आया है वह अच्छी बात है। बशर्ते उसमें सत्य तथा न्याय को स्थान मिलना चाहिए।
विषय प्रवेश करते हुए जनसंपर्क पदाधिकारी राघवेंद्र कुमार ने कहा कि अब वह समय आ गया है जब समाचारों की तह तक संवाददाता या दृश्य मीडिया वाले शीघ्र पहुंच जाते हैं । उन्हें समाचार प्राप्ति में विशेष कठिनाई अब नहीं होती है। अवधेश कुमार ने कहा कि अखबार जब से हिंदुस्तान में शुरू हुआ है पहले एक अखबार ,बाद में स्थानीय स्तर पर भी कई अखबारों में शुरू हो गया, इसका संक्षिप्त इतिहास बताया ।
दैनिक जागरण में उप संपादक रहे मधुसूदन आत्मीय ने कहा कि निर्धारित विषय अधूरा है .प्रेस की बदलती हुई प्रकृति में सकारात्मक तथा नकारात्मक पक्ष पर विचार किए बिना इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है कि वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद प्रेस उसके स्वामी और सरकार की वर्तमान में क्या दिशा और दशा है। श्री आत्मीय ने कहा कि एक समय था जब पत्रकारों को कुछ भी मानदेय नहीं मिलता था उन्हें समाज सेवा के रूप में इस क्षेत्र में प्रवेश मिलता था ,किंतु जब जीविका का सवाल आया तो बछावत आयोग जैसी संस्थाओं ने प्रेस के कर्मियों के लिए वेतनमान निर्धारित किया जो अखबार के मालिक पत्रकारों को नहीं देते हैं। इस स्थिति में सरकार भी उन पर दबाव नहीं डालती है कि इतना कुछ तो उन्हें मिलना चाहिए जिससे अपने साथ परिवार की दाल रोटी चल सके। उन्होंने कहा कि निचले स्तर के प्रेस कर्मियों में जो इमानदारी की कमी देखी जा रही है उसके लिए अखबार के मालिक दोषी हैं। प्रेस की बदलती हुई प्रकृति के संदर्भ में अखबार के मालिकों तथा सरकार को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि जमीनी स्तर से समाचार एकत्र करने वाले संवाददाताओं को सरकार द्वारा निर्धारित मानदेय दिया जा सके। ऐसा न होने के कारण अवकाश प्राप्त करने वाले पत्रकार या उप संपादक सह संपादक सरकार की ओर से घोषित पेंशन पाने से वंचित है। प्रेस के बदलते हुए परिवेश में ऐसे अवकाश प्राप्त मीडिया कर्मी को भी पेंशन देकर न्याय किया जाना चाहिए।
इस अवसर पर भारतीय पत्रकार संघ के प्रदेश अध्यक्ष सह प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र “आज “मुंगेर के ब्यूरो प्रमुख लालमोहन महाराज ने कहा कि संवाददाता को समाचार संकलन करने के दौरान सुरक्षा देने और घटनास्थल तक पहुंचने का साधन प्रेस और सरकार की ओर से मुहैया कराया जाना चाहिए ताकि उन्हें समय पर घटनास्थल पहुंचने तथा वास्तविक तथ्य से अवगत होने में कठिनाई ना हो। पत्रकारों को तब अपनी पहचान देने में कठिनाई होती है जब उनसे आई कार्ड मांगा जाता है। प्रेस की ओर से पहचान पत्र शायद ही मिल पाता है. इस स्थिति में वह एक पत्रकार होते हुए प्रशासन अथवा घटना से संबंधित लोगों की राय आसानी से ले नहीं पाते हैं। श्री महाराज ने कहा कि समाचार जगत में तभी क्रांति आ सकती है तथा सामाजिक जीवन में सुधार हो सकता है ,जब पत्रकार सुरक्षित रहें तथा जीविका की समस्या उनके सामने ना रहे ।इस अवसर पर त्रिपुरारी मिश्रा, सुनील सोलंकी, नवीन झा, मनीष कुमार , संतोष कुमार, अतहर खान आदि थे।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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