जो सुनायेगा दिखायेगा,वही बच पायेगा
सुधीर राघव
क्या जो बांचा जाए सिर्फ वही साहित्य है? क्या जो लिखे वही लेखक है? क्या जो बोले वही वक्ता है? क्या जो प्रस्तुत करे वही प्रस्तोता या अभिनेता ? दूसरी ओर क्या जो पाठक है वही श्रोता भी नहीं है? क्या जो श्रोता है वही दर्शक भी नहीं है? अब साहित्यकार के सामने वह समाज है, जो कम पाठक कम श्रोता और ज्यादा बड़ा दर्शक है। ऐसे में सिर्फ कागद कारे करके पाठक वर्ग खड़ा नहीं किया जा सकता। अब लेखक को संपूर्ण रचेयता बनना होगा, जो साहित्य सुनायेगा दिखायेगा, वही बच पायेगा।
हिन्दी साहित्य को जनता-जनार्दन के बीच ले जाना है तो आज के साहित्यकारों को कबीर बनना होगा। मसि कागद छुओ नहीं कलम गही न हाथ। इसके बावजूद उनसे संपूर्ण साहित्य पुरुष कौन है। उनका खरा और निर्भीक साहित्य स्कूलों और विश्वविद्यालयों के लिए आज भी रहस्यवाद बना हुआ है। तुलसी, सूर, कबीर और मीरा की कहा आज भी हर हिन्दुस्तानी को दिन में एक-दो बार सुनने को मिलता है और वह साथ गुनगुनाये बिना नहीं रह पाता। दूसरी और आज के हमारे हिन्दी साहित्यकार हैं। उनकी शिकायत है कि हिन्दी पट्टी के लोग ही नहीं पढ़ रहे हैं। उन्हें पढ़ने की आदत डालनी होगी। अब सवाल उठता है कि कितने लोग आदत बदलें और कैसे बदलें जब एक लेखक कागद कारे करने की अपनी आदत बदलकर आधुनिक साधनों के इस्तेमाल की आदत नहीं अपना पा रहा तो एक अरब की जनता (यह मानते हुए कि बाकी दस करोड़ देश में लेखक होंगे) खुद को क्यों बदले। हिन्दी पट्टी के साठ करोड़ लोगों के पास तो अपनी नाचने गाने की और भी समृद्ध तथा शानदार परंपरा है।
खड़ी बोली की बृज पट्टी में आज भी कृष्ण लीला, भजन और तीज के गीत उतने ही लोकप्रिय हैं। पीढ़ियों से सुहागिनें और कन्यायें इन्हें गा रही हैंए कभी बासी नहीं हुए। राजस्थान का कालबेलियाए ढोलामारू जैसे किस्से हरियाणा की रागनियां क्या कभी बासी होंगी। मध्यप्रदेश का लोक गीत ससुराल गेंदा फूल हो या भोजपुरी का मुन्नी बदनाम हुई जब सुनाया गया और दिखाया गया तो बच्चे-बच्चे की जुवान पर गूंज रहा है।
(सुधीर राघव के ब्लाग sudhirraghav.blogspot.com से साभार )
Bilkul shahi kaha …. yahi kaaran hai ki ….. “kuch baat hai ki hasti mitati nahi hamaari, sadiyon raha hai dushman daure jahan hamaara….”
bhut khoob….. likha h…
Bahut Badhia Likha hai Bhai…………………………………….
bahut khub likha hai aap ne.