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डॉ. विनय कुमार इंडियन सायकिएट्रिक सोसायटी के अगले अध्यक्ष निर्वाचित

पटना । बिहार के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. विनय कुमार इंडियन सायकएट्रिक सोसायटी के प्रेसिडेंट इलेक्ट चुने गए हैं। इसके साथ ही वे पहले बिहारी बन गये हैं,  जो इंडियन सायकिएट्रिक सोसायटी के अगले अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। अब वे अगले वर्ष लगभग इसी समय प्रेसिडेंट का पद सम्भालेंगे।

डॉ. विनय कुमार इस पद तक पहुँचने वाले पहले बिहारी हैं। इससे पहले वे  इंडियन सापकिएट्रिक सोसायटी के राष्ट्रीय महासचिव सहित सारे महत्त्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके हैं। वे बिहार और पूर्वी क्षेत्र के अध्यक्ष भी रहे हैं और अपनी हर भूमिका में वे श्रेष्ठ रहे हैं। यह बिहार के लिए गौरव की बात है। बहुआयामी प्रतिभा के धनी डॉ. विनय ने इंडियन सामकिएट्रिक सोसायटी के लिए मनोचिकित्सा से सम्बंधिटत सात किताबों का सम्पादन भी किया है और ये कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही गयी है।
डॉ. विनय हिंदी के सुपरिचित कवि व लेखक भी हैं। हाल में लोकपिक्षिणी सहित इनके चार कविता संग्रह आई हैं। इनकी दो गद्य पुस्तकें मनोचिकित्सक के नोट्स” और “मनोचिकित्सा संवाद भी हैं। दोनों ही किताबें बेहद लोकप्रिय हुई हैं। मनोचिकित्सक के नोट्स के लिए इन्हें अयोध्या प्रसाद सम्मान भी मिला है। डॉ. विनय एक सहृदय एवं अत्यंत सफल चिकित्सत ही मन स्वास्थ्य के क्षेत्र में जागरूकता के लिए भी जाने जाते हैं। वे वर्षों तक अख़बारों में कॉलम लिखते रहे हैं और दूरदर्शन में सौ से भी अधिक कार्यक्रम किए। मनोचिकित्सा के क्षेत्र में सामुदायिक कार्यों के लिए  इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के “एन रामचंद्र मूर्ति सम्मान से सम्मानित हुए।
आपको बता दें कि इंडियन सायट्रिक सोसायटी भारतीय मनोचिकित्सकों का पहला और सबसे बड़ा संगठन है, जिसकी स्थापना 07  जनवरी 1947 को इंडियन साइंस कांग्रेस, दिल्ली के दौरान हुई थी। सिर्फ सात सदस्यों के साथ शुरू हुई यह संस्था आज 7 हजार से भी अधिक सदस्यों ने मनोचिकित्सकीय शोध शिक्षा एवं समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय है। यह बिहार के लिए गौरव की बात है कि इंडियन सायक्रएट्रिक सोगावटी का पहला कॉन्फ्रेन्स 1948 में पटना में हुआ था और उसी वर्ष इस संगठन का निबंधन भी हुआ था। आज यह संगठन पूरे देश में अपनी 33 क्षेत्रीय राज्य और स्थानीय शाखाओं के साथ मनोचिकित्सा के क्षेत्र में सक्रिय है।

 

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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