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 ‘तीन तिकड़ी’ के मायाजाल में उलझ गये तेजस्वी

संजय यादव, मनोझ झा और सुनील सिंह से नाराज हैं राजद कार्यकर्ता

पटना। तेजस्वी यादव भले ही महागठबंधन के नेता चुन लिये गये हो, लेकिन उनकी पार्टी राजद के अंदर सत्ता में आने से चूक जाने को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं हो रही है। सबसे अधिक नाराजगी तेजस्वी के कर्ताधर्ता संजय यादव, राज्यसभा सांसद व राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा और एमएलसी सुनील सिंह की तिकड़ी को लेकर है क्योंकि तेजस्वी यादव को आगे करके टिकट बंटवारे से लेकर चुनावी रणनीति तैयार करने के लिए राजद की कमान इन्हीं तीनों ने संभाल रखी थी। कहा तो यहां तक जा रहा है राजद की हार का ठिकरा ईवीएम पर फोड़ने की योजना इन्हीं तीनों ने हार से अपना पल्ला झाड़ने के लिए बनाई थी, जबकि राजद के जमीनी कार्यकर्ता और नेता इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि न तो ईवीएम में कोई गड़बड़ी हुई है और न ही अंत समय में मैन्युपूलेट करके महागठबंधन के जीते हुये प्रत्याशियों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा हराया गया है। तर्क दिया जा रहा है कि यदि ईवीएम में गड़ीबड़ी करनी होती या फिर अंत समय में प्रत्याशियों को हराने के लिए अधिकारियों को मैन्युपुलेट ही करना होता तो यह बहुत पहले हो चुका होता। राजद के नेतृत्व में महागठबंधन एनडीए के साथ सीधी लड़ाई में आता ही नहीं और न ही 75 सीट हासिल करके बिहार विधानसभा में राजद सबसे बड़े दल के तौर पर उभरता।

राजद के समर्पित कार्यकर्ता दबी जुबान से कह रहे हैं जिस तरह से संजय यादव, सुनील सिंह और मनोज झा के इशारे पर तेजस्वी यादव चलते रहे वह राजद के लिए घातक साबित हुआ।

राजद की ओर से पहली बड़ी गलती कांग्रेस के खाते में 70 सीटें डालकर की गयी और इस गलती को अंजाम देने में सबसे बड़ी भूमिका संजय यादव और मनोज झा की रही क्योंकि दोनों पर बिहार से ज्यादा दिल्ली की सियासत का असर था। चुंकि संजय यादव हरियाणा बैकग्राउंड थे और मनोज झा पर दिल्ली का इंटेलेक्चुअल नेता होना का खुमार था। इसलिए दिल्ली में कांग्रेस से उनकी नजदिकियां कुछ ज्यादा हो गयी थी। बिहार की राजनीति में कांग्रेस का आकलन हैसियत से ज्यादा करके कांग्रेस के प्रति राजद के माइंडसेट को इन दोनों ने कांग्रेस के हक में प्रभावित किया और बड़ी सहजता से कांग्रेस के खाते में 70 सीटे जाने दी। इनके प्रभाव में आकर राजद ने बिहार में न तो कांग्रेस की सांगठनिक हैसियत को तौलने की कोशिश की और न ही लोगों के बीच में कांग्रेस के प्रभाव का सही तरीके से आकलन किया। नतीजा यहा  हुआ कि 70 सीट लेने के बावजूद कांग्रेस महज 19 पर ही सिमट गई। पिछली बार के अपने 27 अंक को बरकरार रखने में नाकामयाब रही।

राजद की ओर से दूसरी सबसे बड़ी गलती वीआईपी के मुखिया मुकेश सहनी को लेकर हुई। कहा जाता है कि राजनीति में जो कुछ सार्वजनिक तौर पर होता है उसकी तैयारी पहले ही हो चुकी होती है। पटना के एक होटल में जब प्रेस कांफ्रेस के दौरान महागठबंधन की ओर से जब सीटों के बंटवारे की तस्वीर पेश की जा रही थी तो आधिकारिक तौर पर खुद को महागठबंन का हिस्सा न पाकर मुकेश सहनी ने भरी प्रेस कांफ्रेस में बगातर करके अपशकुन कर दिया। यदि राजद की शीर्ष नेतृत्व पहले से सर्तक रहता तो ऐसी नौबत ही नहीं आती। यदि राजद अपने खाते से मुकेश सहनी को सीट देना चाहता था तो इसकी सहमति पहले ही पर्दे को पीछे हो जानी चाहिए थी। लेकिन संजय यादव और मनोज झा ने इस मसले को ठीक तरह से हैंडल नहीं किया और मुकेश सहनी को टेक ग्रांटेड के तौर पर लेते रहे। मुकेश सहनी को तो विश्वास में नहीं ही लिया, तेजस्वी यादव की मानसिकता की भी मुकेश सहनी को हल्के रूप में लेने की बना दी। जबकि मुकेश सहनी को निश्चितौर पर विश्वास में लेकर चलना चाहिए था। मुकेश सहनी द्वारा बगावत का ऐलान करने के बावजूद उनको फिर से संभालने की कोशिश करना तो दूर, उल्टे उन्हें भला बुरा कह कर उन्हें उनकी औकात में लाने की कोशिश की जाती रही। महागठबंधन की ओर से किसी तरह की चूक होने की ताक में बैठी भाजपा ने मुकेश सहनी को अपने पाले में लाने में जरा भी देर नहीं की। 24 घंटे के अंदर संयुक्त रूप से प्रेस कांफ्रेस करके उन्हें 11 सीट देने का ऐलान कर दिया और इसके साथ ही रातो रात एक अच्छा खासा वोट बैंक महागठंधन से खिसककर एनडीए में शिफ्ट कर गया। अब राजद के वरिष्ठ के नेता भी यह स्वीकार कर रहे हैं कि मुकेश सहनी का महागठन से बाहर निकलना सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था में एक बड़ी रणनीतिक चूक साबित हुई। राजद को पहले ही कांग्रेस के हिस्से से 10 सीट काटकर मुकेश सहनी की झोली में डाल देना चाहिए था।

तीसरी बड़ी गलती राजद की ओर से टिकट बंटवारे की प्रक्रिया को लेकर हुई। राजद के समर्पित कार्यकर्ताओं का कहना है कि लालू यादव का दरबार टिकट चाह रखने वाले कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा खुला रहता था। हर क्षेत्र से रोज दस पांच लोग उनके पास टिकट के लिए आते थे और वह सभी से मिलते थे और उनकी बातों को गौर से सुनते थे। किसी एक व्यक्ति को टिकट देने के साथ ही उस क्षेत्र विशेष से टिकट के अन्य उम्मीदवारों को भी वह पूरी तरह से अपनी बातों से संतुष्ट कर देते थे। नतीजा यह होता था कि एक बार टिकट फाइनल होने के बाद बाकी के बचे हुये लोग पूरी ताकत से उस क्षेत्र से राजद के प्रत्याशी को फतह दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोड़ लगा देते थे। टिकट बंटवारे की प्रक्रिया में तेजस्वी यादव लालू यादव के इस मैकेनिज्म को आगे नहीं बढ़ा पाये। टिकट की चाह रखने वाले लोगों की पहुंच तेजस्वी यादव तक थी ही नहीं। इस मामले में वह संजय यादव, मनोझ झा और सुनील सिंह की आंखों और कानों से देख और सुन रहे थे। कई सीटों पर भीतरघात हो सकता है यह सूंघने में वह नाकामयाब रहे। एक सोची समझी रणनीति के तहत उनके दिल-दिमाग में यह बात बैठा दी गई थी कि वह बिहार के भावी मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। उनके लिए बेहतर होगा कि वह एक बार नये सिरे से अपने इर्दगिर्द बुने गये मायाजाल से बाहर निकल अपनी पार्टी की जमीनी कार्यकर्ताओं का मन टटोले।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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