ब्लागरी

पत्थर की खादानों में लाश बिछाते नौकरशाही, सफेदपोश व खनन माफिया

शिव दास 

 गरीबी, बेरोजगारी, जिम्मेदारी और लाचारी से बेहाल विंध्य क्षेत्र के आदिवासियों की संस्कृति का अस्तित्व खतरे में है । लाल किले पर अपनी अनोखी लोकनृत्य कला “करमा”, “झूमर” आदि का लोहा मनवा चुके आदिवासियों की संस्कृति, मौत का कुआँ बन चुकी पत्थर की खदानों में दम तोड़ रही है। विंध्य पर्वत श्रृंखला की गोद में आबाद सोनभद्र, मिर्जापुर, चन्दौली और सिंगरौली (मध्य प्रदेश) जनपद की पत्थर की खदानों में हर दिन एक व्यक्ति की औसत दर से मौत हो रही है मरने वालों में अधिकतर अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति वर्ग के होते हैं । उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल जनपद सोनभद्र में ही आदिवासियों एवं परंपरागत वन निवासियों के आकड़े चौकाने वाले हैं।

इस पिछड़े एवं अति नक्सल प्रभावित जनपद के खनन क्षेत्रों में हर माह एक दर्जन की औसत दर से आदिवासियों एवं परंपरागत वन निवासियों की मौत हो रही हैं। अगर इन आकड़ों में दलितों और मजलूमों की मौत की संख्या जोड़ दें तो खनन क्षेत्र में ही मौतों का आकड़ा हर दिन एक व्यक्ति की मौत के आकड़े को पार कर जाएगा।

सिर्फ मीडिया रिपोर्टों की बात करें तो सोनभद्र के विभिन्न खनन क्षेत्रों में  साल 2009 में  एक सप्ताह (2-9 अक्टूबर) के दौरान आधा दर्जन लोग काल के गाल में समा चुके हैं। पिछले साल 9 अक्टूबर को ओबरा थाना क्षेत्र के रासपहाड़ी स्थित एक अवैध पत्थर की खदान में टीपर पलट गया। इस घटना में झारखंड के भवनाथपुर थाना अन्तर्गत चंदनी गांव निवासी राम प्रसाद पाल का 24 वर्षीय टीपर चालक पुत्र जगतपाल की मौत हो गई । इसी दिन, चोपन थाना अन्तर्गत डाला स्थित  पत्थर की एक खदान में दो दिन पूर्व घायल हुए 27 वर्षीय नारसिंह की भी मौत हो गई। नारसिंह राबर्ट्सगंज कोतवाली क्षेत्र के रघुनाथपुर निवासी बलिराम का पुत्र था। 7 अक्टूबर का दिन चालीस वर्षीय महावीर के लिए अच्छा नहीं रहा । ओबरा थाना अन्तर्गत बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र की एक पत्थर की खदान में काम करते समय महावीर गंभीर रूप से घायल हो गया। खदान संचालक घायल महावीर को लेकर गायब हो गए। खबर लिखे जाने तक महावीर की हालत का पता नहीं चल पाया था। करमा थाना अन्तर्गत खैरपुर गांव निवासी विपत के 35 वर्षीय पुत्र कमला के लिए 5 अक्टूबर का दिन जीवन के सफर का आखिरी दिन बन गया। कमला अपने ही गांव की पहाड़ी पर हो रहे अवैध खनन का शिकार हो गया। पत्थर की खदान में विस्फोट के दौरान कमला की मौत हो गई। भदोही जनपद के कपसेठी निवासी 42 वर्षीय पेटी ठेकेदार राकेश सिंह के लिए 4 अक्टूबर का दिन अभिशाप बन गया । डाला पुलिस चौकी क्षेत्र के काशी मोड़ स्थित खनन क्षेत्र की पहाड़ी पर राकेश सिंह का पैर फिसल गया और वह मौत का कुआं बन चुकी पत्थर की खदान में गिर गए । इससे राकेश सिंह की मौत हो गयी । विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म दिन भी खनन क्षेत्र में शान्ति नहीं ला सका। मध्य प्रदेश के बैढ़न थाना अन्तर्गत पवर गांव निवासी छोटेलाल का 30 वर्षीय पुत्र लल्लन एक ट्रक पर खलासी का काम करता था । गांधी जयंती की रात वह ट्रक के साथ डाला खनन क्षेत्र स्थित एक क्रशर प्लांट में गिट्टी लोड करने गया । ट्रक के डाला में सोते समय लल्लन के ऊपर पोकलैन से गिट्टी लोड कर दी गई । इससे लल्लन की मौके पर ही मौत हो गयी । एक सप्ताह के अन्दर खनन क्षेत्र में ताबड़तोड़ हुई मौतों के बाद भी अवैध खदान संचालकों के प्रति जिला प्रशासन का रवैया उदासीन बना हुआ है। जिला प्रशासन की इसी रवैये के कारण अक्टूबर माह के पूर्व में भी कई मौतें हो चुकी है। बीती 29 सितम्बर को ओबरा थाना अन्तर्गत बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में 11,000 वाट के विद्युत तार की चपेट में आकर एक मजदूर की मौत हो गयी। मिर्जापुर के लालगंज थाना अन्तर्गत पंतनगर निवासी ट्रैक्टर चालक शिवनाथ यादव के लिए 22 सितम्बर का दिन काल बन गया। शिवनाथ राबर्ट्ससगंज कोतवाली क्षेत्र के सुकृत खनन क्षेत्र में बोल्डर लदे ट्रैक्टर को लेकर गन्तव्य को जा रहा था। अचानक ट्रैक्टर-ट्राली बेकाबू होकर एक पत्थर की खदान में पलट गया। इसमें शिवनाथ की मौत हो गयी ।

 दुद्धी कोतवाली अन्तर्गत रन्नो गांव निवासी 32 वर्षीय मजदूर उमाशंकर के लिए ड्रिलिंग का काम 18 अगस्त को काल बन गया। चोपन थाना क्षेत्र के बारी स्थित एक पत्थर की खदान में उमाशंकर ड्रिलिंग का काम कर रहा था। अचानक एक बड़ा पत्थर उमाशंकर के ऊपर गिर गया जिससे उसकी मौत हो गयी । 12 अगस्त का दिन भी खनन क्षेत्र के मजदूरों के लिए अच्छा नहीं रहा । जब पूरा देश स्वतन्त्रता दिवस मनाने की तैयारी में जुटा था उस समय भी कुछ मजदूर अपनी जिंदगी की अंतिम सांसे गिन रहे थे। ओबरा थाना अन्तर्गत बैरपुर निवासी 30 वर्षीय मजदूर कैलाश और राबर्ट्सगंज कोतवाली क्षेत्र के खैराही गांव निवासी रुपशाह का 20 वर्षीय पुत्र छोटेलाल अपने कुनबे का खर्च चलाने के लिए मौत का कूआं बन चुकी पत्थर की खदान में काम करने बिल्ली-मारकंडी खनन क्षेत्र में गया । 12 अगस्त के दिन बिल्ली-मारकुंडी स्थित एक पत्थर की खदान में कैलाश और छोटेलाल काम कर रहे थे । अचानक दोनों पैलोडर की चपेट में आ गए। दोनों की मौके पर ही मौत हो गयी । घोरावल थाना क्षेत्र के मझली-हिनौती गांव निवासी नरेश कोल के बुढ़ापे का सहारा उनका 24 वर्षीय पुत्र संजय 27 जून को अमिलौधा गांव स्थित एक अवैध मोरम की खदान में भगवान को प्यारा हो गया। संजय के ऊपर मोरम का ढुहा गिर गया और उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया। 26 जून का दिन भी मजदूरों की मौत का गवाह बना । चोपन थाना क्षेत्र के पटवध गांव के पास बोल्डर लदा ट्रैक्टर-ट्राली पलट गयी। इस दुर्घटना में भटवा टोला निवासी गौरी के 20 वर्षीय पुत्र पप्पू सिंह की मौत हो गयी। अन्य दो मजदूर 18 वर्षीय नागेंद्र और 55 वर्षीय डंगर गम्भीर रूप से घायल हो गये। पन्नूगंज थाना अन्तर्गत किरहुलिया ग्राम सभा के कटरी टोला निवासी दो सगे भाइयों अर्जुन चेरो (40 वर्ष) व बल्ली चेरो (35 वर्ष) समेत शिव कुमार यादव के कुनबे के लिए 21 जून का दिन मातम में तब्दील हो गया । कटरी टोला के पास जंगल वन विभाग की जमीन पर बन रहे चेकडैम में खुदाई करते समय अर्जुन, बल्ली और शिवकुमार के ऊपर मिट्टी का टीला गिर गया। इससे उनकी मौत हो गयी।

12 मई को डाला पुलिस चौकी क्षेत्र के बारी स्थित एक अवैध पत्थर की खदान में ट्रैक्टर-ट्राली पलटने से ट्रैक्टर चालक अखिलेश कुशवाहा की मौत हो गयी । इस घटना के कुछ दिनों पहले बारी खनन क्षेत्र के ही अन्य पत्थर की खदान पत्थर का टीला गिरने से दो मजदूरों की भी मौत हुई थी।
 चालू वर्ष की 25 अप्रैल भी खनन क्षेत्र के लिए कौतुहल का दिन ही रहा । डाला पुलिस चौकी क्षेत्र के ही काशी मोड़ स्थित एक अवैध पत्थर की खदान में पत्थर की टीला गिरने से पन्नूगंज थाना क्षेत्र के दिनारे गांव निवासी 40 वर्षीय राम चरित्र गोंड़ व चोपन थाना अन्तर्गत मारकुंडी ग्राम सभा के कुशहिया टोला निवासी 45 वर्षीय जयराम अगरिया की मौत हो गयी । साथ ही अन्य पांच मजदूर गम्भीर रूप से घायल हो गये । इस हादसा के पूर्व भी चालू वर्ष में अवैध पत्थर की खदानों में दर्जनों दुर्घटनाएं हुई हैं, जिसमें सैकड़ों मजदूरों के सांस की डोर टूट गयी। काशी मोड़ स्थित पत्थर की खदान में हुआ विस्फोट इनमें से प्रमुख घटना है जिसमें तीन मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गयी और दर्जनों मजदूर गंभीर रूप से घायल हो गये थे। इस घटना के कुछ दिनों पूर्व ही बारी स्थित पत्थर की एक खदान में संदिग्धावस्था में महिला का शव मिला था । इसके अतिरिक्त बारी स्थित जय बजरंग स्टोन क्रशर प्लांट के डग में ट्रैक्टर-ट्राली पलटने से मुस्लिम युवक की मौत, कोठा टोला स्थित श्यामलाल केशरी के क्रशर प्लांट के डग की दीवार ढहने से तीन मजदूरों की मौत, काशी मोड़ स्थित संजय तिवारी की खदान में ट्रैक्टर-ट्राली पलटने से चालक की मौत, लंगड़ा मोड़ स्थित खदान में ट्रैक्टर ट्राली पलटने से एक मजदूर की मौत और एक घायल, सुभाष स्टोन की खदान में एक मजदूर की मौत, अग्रहरी स्टोन के पास आवास में भोजन कर रहे मजदूर के सिर पर पत्थर का टुकड़ा गिरने से मौत, बारी स्थित गिरीबाबा के पास पत्थर की खदान में बाइक सवार और ट्रैक्टर चालक की मौत और माता प्रसाद की खदान में टीला गिरने से एक पेटीदार की मौत सरीखी दर्जनों घटनाएं खनन क्षेत्र में घट चुकी हैं। ये वे घटनाएं हैं जो मीडिया के माध्यम से आम जन तक पहुंची । इसके अलावा खनन क्षेत्र में अन्य सैकड़ों मौतें होती है जिनका पता मीडिया प्रतिनिधियों को नहीं हो पाता है । कुछ का पता हो भी पाता है तो पुलिस इन मौतों का अन्य कारण बताकर मामले को रफा-दफा कर देती है। भ्रष्टाचार के आंकठ में डूबे जिला प्रशासन की उदासीनता और जनप्रतिनिधियों की वादा खिलाफी ने मजदूरों में भय पैदा कर दिया है । एक के बाद एक हो रही आदिवासियों समेत मजलूमों की मौतों की सच्चाई कोई भी बोलने को तैयार नहीं है

 क्यों होती हैं ये मौतें ?

यह एक पहेली है। फिर भी पूर्व में हुई मौतों के कारणों पर गौर करें तो तीन बातें प्रमुख रूप से सामने आती हैं। पहला विंध्य क्षेत्र की पत्थर की खदानों में काम करने वाले अधिकतर मजदूर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के उन परिवारों के होते हैं जो गरीबी का दंश झेल रहे होते हैं। जंगलों में निवास करने वाले भूमिहीन आदिवासी एवं पारंपरिक वन निवासी मजदूर पत्थर, मोरम, मिट्टी, बालू, कोयला आदि की खतरनाक खदानों में विस्फोटक पदार्थों के इस्तेमाल और खनन के लिए प्रशिक्षित नहीं होने के कारण मौत का कूआँ बन चुकी पत्थर की खदानों में जरा-सी चूक पर अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं। विंध्य क्षेत्र की पत्थर की खदानें 50 मीटर से लेकर 200 मीटर तक गहरी हो चुकी हैं । इन खदानों में काम करना अप्रशिक्षित मजदूरों के लिए शेर की माद में घुसने के बराबर है। दूसरा, विंध्य क्षेत्र में डोलो स्टोन, सैंड स्टोन, लाइम स्टोन, कोयला, बालू, मोरम आदि का अकूत भंडार है। इन खनिज पदार्थों के दोहन के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के माफियाओं और सफेदपोशों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। सत्ताधारी पार्टियों के नुमाइंदे बनकर मलाईदार मंत्रालयों की कुर्सी सम्भाल रहे कुछ सफेदपोशों ने विंध्य क्षेत्र से धन उगाही के लिए बकायदा अपने एजेंटों को तैनात कर दिया है और शासन के मानकों की धज्जियां उड़ाकर अवैध खनन एवं परिवहन को बढ़ावा दे रहे हैं । भ्रष्टाचार के आंकठ में डूबी नौकरशाही और सफेदपोशों के चलते खनन माफियाओं ने पूरे विंध्य क्षेत्र में अराजकता का माहौल पैदा कर दिया है । खनन माफिया विंध्य की पहाड़ियों पर खुलेआम अवैध खनन करवा रहे हैं । साथ ही खनन विभाग द्वारा जारी एमएम 11 परमिट के बिना मिट्टी, मोरम, बालू, बोल्डर आदि का परिवहन करवा रहे हैं । इन बातों की पुष्टि जिला प्रशासन द्वारा गठित टीम के छापेमारी में भी आए दिन हो रही है । पत्थर की खदानों के लिए शासन द्वारा निर्धारित मानक को खनन क्षेत्र में कोई भी खदान संचालक पूरा नहीं कर रहा है । खननक्षेत्र में मौत का कूआं बन चुकी पत्थर की गहरी खदानों में सुरक्षा के कोई भी इंतजाम नहीं है । खदान अथवा क्रशर प्लांट को जाने वाले रास्ते तारकोल और खड़ंजा युक्त नहीं है । ना ही किसी पत्थर की गहरी खदान के चारों ओर बाउंड्रीवाल बनाया गया है । सुरक्षा के इन इंतजामों के अभाव में मजदूरों की मौत बड़े पैमाने पर हो रही है । तीसरा, अवैध खनन और परिवहन को रोकने के लिए जिला प्रशासन ने टास्क फोर्स की टीमें गठित की है, लेकिन ये टीमें औपचारिकता मात्र बन कर रह गयी है । समाज सेवियों की बार-बार शिकायत पर कभी कभार ये टीमें खनन क्षेत्रों में छापा मारती है तो बड़ी मात्रा में अवैध खनन और परिवहन का मामला प्रकाश में आता है। टीम द्वारा औपचारिकता पूरा करते हुए अवैध क्रशर प्लांट व बिना एमएम 11 की परमिट वाले वाहनों को सीज किया जाता है। इसके कुछ ही घंटों बाद खनन व परिवहन माफियाओं के प्रभाव के चलते सीज वाहन सड़कों पर दौड़ने लगते है और क्रशर प्लांट क्षेत्र में शोर मचाते हुए जहर उगलने लगते हैं। इतना ही नहीं जिला प्रशासन की उदासीनता और सत्ता में बैठे सफेदपोशों की शह के चलते खनन माफिया अब खान विभाग की टीम पर हमला भी बोलने लगे हैं । कुछ दिनों पहले ही खान विभाग के एक सर्वेयर ने जिलाधिकारी से खनन माफियाओं से सुरक्षा को गुहार लगाई थी । विंध्य क्षेत्र खासकर सोनभद्र जनपद के खनन क्षेत्रों में पूर्वांचल के माफियाओं की दखलदांजी ने मजदूरों समेत अन्य मजलूमों की मौतों में इजाफा कर दिया है । जनपद में हो रही हत्याओं के प्रति जिला प्रशासन की उदासीनता और खनन माफियाओं के डर से खनन क्षेत्र में हो रही मौतों की सच्चाई बोलने में हर व्यक्ति खतरा महसूस कर रहा है। इसके चलते पुलिस महकमा खनन क्षेत्र में हो रही हत्याओं को दुर्घटना करार देकर सच्चाई का दम घोट रहा है ।

 मौत का कुआं बन चुकी पत्थर की खदानों में क्यों जान गंवाते हैं मजदूर ?

विंध्य क्षेत्र का सोनभद्र, मिर्जापुर, चन्दौली, सिंगरौली (म0प्र0), गढ़वा (झारखंड), भभुआ (बिहार) आदि जनपद आदिवासी बहुल जनपद है । विंध्य क्षेत्र में निवास करने वाले परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं । इन परिवारों में शिक्षा और सरकारी योजनाओं के प्रति जागरुकता का घोर अभाव है । साथ ही क्षेत्र में कल-कारखानों की स्थापना के बाद विस्थापन और भूमिहीनता का दंश झेल रहे आदिवासियों, परंपरागत वन निवासियों, दलितों समेत मजलूमों के सामने रोजगार का संकट खड़ा है । तकनीकी क्षेत्र में कुशलता का अभाव, सरकार की वादाखिलाफी और भ्रष्टाचार में डूबी नौकरशाही के चलते विंध्य क्षेत्र के निवासियों के सामने रोटी की जुगाढ़ की समस्या, सुरसा के मुह की तरह खड़ी है । बेरोजगारी, जिम्मेदारी और लाचारी से बेहाल विंध्य क्षेत्र बाशिदों के लिए मौत का कूआं बन चुकी पत्थर, बालू, मोरम आदि की अवैध खदानें पेट में लगी आग को शांत करने के जुगाड़ के रूप में सहायक सिद्ध हो रही है । महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना समेत केन्द्र और राज्य सरकार की अन्य योजनाएं भ्रष्ट नौकरशाही और जनप्रतिनिधियों की वादाखिलाफी के कारण विंध्य क्षेत्र के परिवारों को राहत नहीं दे पा रही हैं । इन कारणों के चलते बेबश एवं लाचार विंध्य क्षेत्र के गरीब पत्थर, मोरम और बालू की खदानों में दम तोड़ने को मजबूर हैं ।

परिवार पर कहर बनकर टूट रहा है मजदूरों की मौत

चोपन थाना अन्तर्गत मारकुंडी ग्राम सभा के आदिवासी बहुल कुशहिया टोला निवासी चालीस वर्षीय जयराम अगरिया अपने 11 सदस्यीय परिवार का खर्च चलाने के लिए डाला खनन क्षेत्र की पत्थर की खदानों में मजदूरी करते थे । चालू वर्ष की 25 अप्रैल को डाला पुलिस चौकी क्षेत्र के काशी मोड़ स्थित पत्थर की एक खदान में जयराम अगरिया, पन्नूगंज थाना क्षेत्र के दिनारे गांव निवासी 45 वर्षीय रामचरित्र गोंड़ की पत्थर का टीला गिरने से मौत हो गयी। इस दुर्घटना में अन्य पांच मजदूर की गंभीर रूप से घायल हो गए । जयराम अगरिया की मौत का कहर इन दिनों उनके परिवार पर कहर बनकर टूट रहा है । जयराम के परिवार में उनकी पत्नी जिरमन, तीन लड़के बाबूलाल (20 वर्ष), पिन्टू (15 वर्ष), बहू सुकुवारी (18 वर्ष ), पोती सोनिया (एक वर्ष), दो पुत्रियां अनीता (8 वर्ष ) व सुनीता (5 वर्ष ) हैं । इसके अलावा जयराम के 70 वर्षीय विकलांग ससुर लक्ष्मण और 65 वर्षीय सास सुकुवारी की जिम्मेदारी भी परिवार के मुखिया पर है । मिट्टी की दीवार पर टूटी-फुटी छाजन के घर में रहकर पूरा परिवार अपने जीवन की नैया पार लगाने की कोशिश कर रहा हैं । सरकारी कागज पर जयराम के नाम करीब सात बीघा पथरीली जमीन तो दर्ज है लेकिन वास्तविकता में इस जमीन से परिवार को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती । जयराम अगरिया के 11 सदस्यीय कुनबे के मुखिया के नाम गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार का राशन कार्ड बना है लेकिन सरकारी राशन की दुकान से अनाज खरीदने के लिए समय पर पैसे की भी व्यवस्था नहीं हो पाती है । महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत बनने वाले जॉब कार्ड का भी लाभ परिवार को नहीं मिल रहा हैं । जयराम अगरिया की पत्नी के नाम महामाया आवास तो मिला है लेकिन 11 सदस्यीय कुनबे का गुजर बसर नहीं हो पा रहा है । करीब बीस वर्षों से रह रहे जयराम अगरिया के वृद्ध सास व ससुर को आज तक एक भी सरकारी सहायता का लाभ नसीब नहीं हो पाया है । बच्चों की पढ़ाई-लिखाई बंद हो गई हैं । जयराम अगरिया की मौत के बाद परिवार के खर्चे की जिम्मेदारी जिरमन और बाबूलाल पर आ गई है। बेरोजगारी की दंश झेल रहे परिवार के दोनों सदस्य मौत का कुआं बन चुकी पत्थर की खदानों में पत्थर तोड़ने अल सुबह डाला चले जाते है और देर शाम करीब 50 मीटर की दूरी तय कर वापस घर आते हैं । पत्थर की खदानों में काम करते समय परिवार के दोनों व्यक्तियों की कब मौत हो जाए और पूरा परिवार दाने-दाने को मोहताज हो जाए, इस बात का भय पूरे परिवार को हमेशा सालता रहता है । कुछ ऐसा ही हाल रामचरित्र गोड़ समेत अन्य आदिवासी एवं परंपरागत वन निवासी उन मजदूरों के परिवार का भी है जो पत्थर की खदानों में दम तोड़ चुके हैं। कुछ ऐसा ही हाल पन्नूगंज थाना अन्तर्गत किरहुलिया ग्राम सभा के कटरी टोला निवासी अर्जुन चेरो (40 वर्ष) व बल्ली चेरो (35 वर्ष) के परिवार का भी है । अर्जुन चेरो और बल्ली चेरो बीती 21 जून को पास में वन विभाग की ओर से बन रहे चेकडैम में अपने साथी मजदूर शिव कुमार यादव के साथ काम कर रहे थे । अचानक तीनों के ऊपर मिट्टी का ढूहा गिर गया और तीनों की मौत हो गयी । शासन की ओर से तीनों के परिवार वालों को एक-एक लाख रूपये की आर्थिक सहायता दी गयी लेकिन सरकार की अन्य सुविधाओं का लाभ परिवारों को नहीं मिल पाया है । इस कारण अर्जुन चेरो और बल्ली चेरो के परिवार पर संकट के बादल मड़रा रहे हैं । भूमिहीन अर्जुन चेरो के परिवार में उनकी 32 वर्षीय पत्नी फुलझरी, 65 वर्षीय मां भगमतिया, दो बेटियां समुन (12 वर्ष) व रीना (6 वर्ष), पुत्र शुजुल (एक वर्ष), रामबाबू (3 वर्ष) है । वहीं बल्ली चेरो के परिवार में उनकी 30 वर्षीय पत्नी कौशिल्य (33 वर्ष) व एक वर्षीय पुत्री चन्द्रावती है । पूरा परिवार मिट्टी के घर में रहकर जीवन यापन करता है । अर्जुन चेरो की मौत के बाद से ही उनकी पत्नी फुलझरी बीमार चल रही है । 12 वर्षीय बेटी सुमन समेत सभी भाइयों एवं बहनों की पढ़ाई छूट गयी है । सुमन परिवार के नाम बने जॉब कार्ड पर काम करती है । पूरे परिवार को अभी तक मात्र 14 दिन का रोजगार मिला है। गरीबी रेखा के नीचे का जीवन यापन करने वाले परिवार का कार्ड बना है लेकिन अनाज सिर्फ एक बार ही मिल पाया है । इस समय पूरा परिवार दाने-दाने के संकट से जूझ रहा है ।

 अर्जुन चेरो और बल्ली चेरो का परिवार एक मामले में खुशनसीब रहा कि शासन ने तत्काल आर्थिक सहायता मुहैया करा दी,लेकिन अवैध पत्थर की खदानों में मरने वाले मजदूरों को ये खुशनसीबी हासिल नहीं होती । मजदूरों के विरोध प्रदर्शन के बाद जयराम अगरिया, रामचरित्र गोंड़ के परिवार को तो खदान संचालकों की ओर से एक-एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता तो मिल गयी लेकिन अन्य मजदूरों के परिवार वालों को एक फूटी कौड़ी भी मयस्सर नहीं होती है। खनन माफिया पुलिस की मिलीभगत से पूरे मामले को ही रफा-दफा कर देते हैं । पत्थर की खदानों में मरने वाले सैकड़ों मजदूरों के परिवार इन दिनों दाने-दाने को मोहताज हो गये हैं और भूखमरी की कगार पर हैं । अगर समय पर इन परिवार के सदस्यों को रोजगार और सरकारी योजनाओं की सहायता नहीं मिली तो विंध्य क्षेत्र में भूखमरी और कुपोषण से मरने वाली संख्या में इजाफा हो सकता है ।

 खनन क्षेत्र में मजदूरों की मौत के मामले में प्रशासन की भूमिका

विंध्य क्षेत्र खासकर सोनभद्र के खनन क्षेत्र में हो रही मजदूरों की मौत के लिए प्रशासन की भूमिका संतोषजनक नहीं हैं । सोनभद्र के जिला खान अधिकारी कार्यालय के आंकड़ों की मानें तो उत्तर प्रदेश उप खनिज (परिहार) नियमावली 1963 के प्रावधानों के तहत डोलो स्टोन के 138 खनन पट्टे, सैंड स्टोन के 89 खनन पट्टे व बालू/मोरम के 42 खनन पट्टे यानी कुल 269 खनन पट्टे स्वीकृत हैं । बुनियादी तौर पर खान विभाग के आंकड़े वास्तविकता से कोसों दूर हैं । बिल्ली, मारकुंडी, डाला, चोपन, बारी, रासपहाड़ी, सलखन, खैराही, सुकृत, घोरावल, पकरहट, बहुअरा आदि खनन क्षेत्र का निरीक्षण करने पर इनकी तादात हजारों में है जो पूरी तरह अवैध हैं। खनिज पदार्थों के परिवहन में भी खनन माफियाओं द्वारा बड़े पैमाने पर राजस्व चोरी की जा रही है । फिर भी प्रशासन मौन है । अवैध परिवहन की बात कई बार जिला प्रशासन के छापे में सामने आ चुकी हैं । खनन क्षेत्र में अवैध खनन की पुष्टि जिला खान अधिकारी भी कर चुके हैं। पूर्व जिला खान अधिकारी एके सेन द्वारा अपना दल के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति मंच के जिलाध्यक्ष राधेश्याम भारती को 11 जून, 2009 को लिखे पत्र में बिल्ली-मारकुंडी के आराजी संख्या- 4596, 4597, 4599, 4845 4838 में अवैध खनन की बात स्वीकार किया गया है और इसे बंद कराने का दावा कर रहे हैं । जबकि उक्त आराजी संख्या पर अवैध खनन और परिवहन जारी है । इतना ही नहीं,खनन क्षेत्र में हो रही ताबड़तोड़ मौतों और अवैध खनन के बाद भी जिला प्रशासन राराबर्ट्सगंज तहसील के अन्तर्गत बरदिया, बिल्ली-मारकुंडी, सुकृत, लोढ़ी, बहुअरा व सिरसिया हकुराई में डोलो स्टोन, सैंड स्टोन और लाल मोरम के खनन के लिए बकायदा टेंडर जारी कर पट्टा आवंटन को अंजाम दे रहा हैं । वैध खदानों की आड़ में अवैध खनन व परिवहन कर रहे खनन माफियाओं पर अंकुश लगाने में असफल प्रशासन की कारगुजारियों के कारण खनन क्षेत्र में मजदूरों की मौतों में इजाफा हो रहा है । विंध्य क्षेत्र में अवैध खनन और परिवहन पर यथाशीघ्र अंकुश लगाने की जरूरत है । अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब आदिवासियों की लोक संस्कृति इतिहास के पन्नों में ही पढ़ने की मिलेगी ।

(साभार :    http://thepublicleader.blogspot.com/)

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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