परिवर्तन के लिए सपने देखना है जरूरी : विभूति नारायण राय
अमित विश्वास//
कवि सम्मेलन ने लोगों का मन मोहा
सहरसा, 08 नवम्बर, 2012; कला, संस्कृति तथा साहित्य संस्थान, बटोही द्वारा कला ग्राम, सहरसा में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्योत्सव में अकादमिक सत्र की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय ने आज वृहस्पतिवार को ‘समकालीन सृजन की चुनौतियां’ विषय पर कहा कि वर्तमान समय की चुनौतियां जाति व्यवस्था व भूमि का असमान वितरण है। इस पर हमारा ध्यान होना चाहिए। आज के युग में खासकर नई पीढ़ी अर्थ की अंधी दौड़ या लूट-खसोट में ही अपना हिस्सा तलाशने लगी है। सपने देखना और परिवर्तन की बात करना लोगों ने बंद कर दिया है, जो कि उचित नहीं है। हमें परिवर्तन के लिए सपने देखना जरूरी है। वह समय आएगा कि विश्व की एकध्रुवीय व्यवस्था समाप्त होगी और बहुध्रुवीय व्यवस्था कायम होगी, जो बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है।
विभूति नारायण राय ने कहा कि कोई भी रचनाकार अपने ही समय की चुनौतियों से जूझता है और तात्कालीन समय का यथार्थ ही उनके साहित्य में व्यक्त होता है। 25-30 साल पूर्व का समय और आज का समय भिन्न-भिन्न है। खास तौर से सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व एकध्रुवीय हो गया और अमेरिका ही एकमात्र नियंत्रणकर्ता हो गया है। वह कहता है कि जनसंहारक हथियार किसी अमुक देश के पास है और अकारण युद्ध थोपता है, जिसमें न जाने कितनी जानें चली जाती हैं, और बाद में पता चलता है कि वहां जनसंहारक हथियार था ही नहीं। कोई पूछने वाला नहीं है कि आखिर ऐसा आपने क्यों किया, इस पर हमें सेाचने की जरूरत है। मीडिया की नकारात्मक भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में साक्षरता की दर निश्चित रूप से बढ़ी है। मीडिया का कहना है कि साहित्य के पाठक घटे हैं जबकि हम पाते हैं कि पाठकों की संख्या बढ़ी हैं, दुनिया के दस सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली अखबारों में चार-पांच अखबार हिंदी के हैं। मीडिया आज अवैज्ञानिक तर्कों को जायज ठहराने लगा है। ऐसे में हमें बौद्धिकता से एक बेहतर समाज निर्माण के बारे में सोचने की जरूरत है।
इस अवसर पर आयोजित कवि गोष्ठी आकर्षण के केंद्र में थी। स्थानीय कवियों ने शोषण की चीत्कारें, बाजारवाद और लोक कलाओं पर आधारित कविताओं का पाठ कर श्रोताओं को खूब रिझाया। कवि डॉ. वरूण कु. तिवारी, डॉ. सिद्धेश्वर कश्यप तथा अन्य कवियों ने अपनी चुनींदा कविताओं का पाठ किया। गज़लकार एहसान शाम ने अपनी गज़ल ‘अपने होठों पे हंसी, रूह में ग़म रखते हैं, देखिये हम भी क्या जीने का हुनर रखते हैं, आप हाथों में लिये फिरते हैं तलवार तो क्या, हम नहीं डरते कि हाथों में कलम रखते हैं, से खूब तालियां बटोरीं। संचालन करते हुए डॉ. विनय कु. चौधरी ने कोसी अंचल की पूर्व दशा को इन शब्दों में रेखांकित किया- ‘कोसी की अभिशप्त धरा पर, टाट-फूस के ही बनते घर, छत की तो कल्पना दूर, खपड़ैल भी नहीं यहां मयस्सर’। इस अवसर पर कलाग्राम में अतिथियों द्वारा वृक्षारोपण भी किया गया। कार्यक्रम में डॉ.सूर्यनाथ गोप, डॉ.सुभाष चन्द्र यादव, डॉ.सुरेन्द्र नारायण यादव, डॉ.ओ.पी.भारती, डॉ.गजाधर यादव, अमित विश्वास, डॉ.अखिलेश अखिल,बटोही के सचिव डॉ.महेन्द्र सहित बड़ी संख्या में कोसी अंचल के साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।