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बाल संप्रेक्षण गृह हैं या जेल ?

बीते दिनों क्राई और एमनेस्टी इंटरनेशनल के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग को भेजी विस्तृत रिपोर्ट में आगरा और मथुरा जिलों के बाल संप्रेक्षण गृहों  को जेल बताते हुए कई अहम कमियों का खुलासा किया. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टाफ को किशोर अधिनियम के बारे में ही पता नहीं है. बाल कल्याण समिति भंग है और कई बच्चों पर कई जघन्य अपराधों के आरोप में हैं. संप्रेक्षण गृहों में क्षमता से दो गुना अधिक तक बच्चे बंद हैं. 6 कमरों में 30 बच्चों को रखने की क्षमता होती है लेकिन यहां केवल 2 कमरों में ही 62 बच्चों को बंद किया हुआ हैं. बाकी के कमरे अन्य उपयोग के लिए काम में लिए जा रहे हैं. खेल का मैदान तो दूर पढ़ाई की कोई व्यवस्था भी नहीं है. रियाजुद्दीन वर्ष, पटवारी सिंह, कालू सिंह, अभिनिक सिंह और राबिन सिंह 12 साल से भी कम उम्र के बच्चे हैं. वही दूसरी तरफ मेघ सिंह और अकील पर 18 साल से अधिक की उम्र का आरोप  है. इनमें मेघ सिंह की एक साल की बच्ची भी है और कहा जा रहा है कि उसे 18 साल से कम दर्शाकर बंद किया गया है.

एक अन्य किशोर बीएसए कालेज में एलएलबी का छात्र है. उस पर अपहरण और बलात्कार का आरोप है. सवाल किया गया है कि क्या एलएलबी का छात्र और एक बच्ची का पिता 18 साल से कम उम्र के हो सकते हैं? साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि कई बच्चे 3 माह से अधिक समय से बंद हैं जिनमें अकील 4 माह, अनीस 8 माह , विशाल 17 माह, संजीव 21 माह, पटवारी सिंह 1 साल और कृष्णा 2 साल से बंद हैं.

आयोग से अपील की गयी है कि आगरा व मथुरा के किशोर संप्रेक्षण ग्रहों में बंद किशोरों का मेडिकल परीक्षण कराया जाए. सुधार के लिए कड़े निर्देश जारी किए जाएं और उनका सख्ती से पालन हो. स्टाफ को किशोर न्याय अधिनियम से प्रशिक्षित किया जाए.

शिरीष खरे

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय, भोपाल से निकलने के बाद जनता से जुड़े मुद्दे उठाना पत्रकारीय शगल रहा है। शुरुआत के चार साल विभिन्न डाक्यूमेंट्री फिल्म आरगेनाइजेशन में शोध और लेखन के साथ-साथ मीडिया फेलोसिप। उसके बाद के दो साल "नर्मदा बचाओ आन्दोलन, बडवानी" से जुड़े रहे। सामाजिक मुद्दों को सीखने और जीने का सिलसिला जारी है। फिलहाल ''चाइल्ड राईट्स एंड यू, मुंबई'' के ''संचार विभाग'' से जुड़कर सामाजिक मुद्दों को जीने और समझने का सिलसिला जारी है।

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