बिहार में मीडिया को ही विपक्ष की भूमिका निभानी होगी
बिहार पूरी तरह से नीतीशमय हो गया है। विपक्ष का तो पूरी तरह से सफाया ही हो गया है। कहा जाता है कि शक्ति व्यक्ति को भ्रष्ट करती है, और संपूर्ण शक्ति व्यक्ति को संपूर्ण रूप से भ्रष्ट कर देती है। नीतीश कुमार के चुनावी मैनिफेस्टो की प्राथमिकताओं में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शामिल है। भ्रष्टाचार को जड़ मूल से समाप्त करने के लिए नीतीश कुमार किस तरह के मैकेनिज्म इजाद करते हैं अभी देखना बाकी है। बिहार की जनमत का विश्लेषण करें तो स्पष्ट हो जाता है कि यहां के लोगों ने भ्रष्टाचार को जड़ मूल से समाप्त करने के पक्ष में मतदान किया है और एक तरह से यह राष्ट्रीय स्तर पर फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ भी जनमत है।
विपक्षरहित सरकार खतरनाक होती है। कब निरंकुशता पर उतर आये सरकार को भी पता नहीं चलता। सरकार के फैसले की आलोचना करने वाला यदि कोई नहीं हो तो सरकार में शामिल लोगों के भटकने की पूरी गुंजाईश रहती है। बिहार की जनता ने विपक्ष को दरकिनार कर दिया है। ऐसे में मीडिया की भूमिका अब महत्वपूर्ण हो जाती है। लेकिन जिस तरह से नीतिश कुमार ने मीडिया को नियंत्रित कर रखा था उसे देखते हुये कहा जा सकता है कि अब मीडिया नीतीश कुमार और उनकी सरकार के खिलाफ मुंह खोलने की स्थिति में बिल्कुल नहीं है। तमाम अखबार और चैनल अब नीतीश कुमार की डफली बजाने के लिए खुद की ओर से बाध्य हैं। ऐसे में नीतीश कुमार के ऊपर ही यह जिम्मेदारी आ गई है कि मीडिया की स्वतंत्रता को और ऊभार दें। बड़े समूह के अखबार और चैनल तो विज्ञापन के लालच में नीतीश कुमार के कार्यों और नीतियों की तरफ बिल्कुल उंगली नहीं उठाएंगे। विगत के अनुभवों से यह स्पष्ट हो चुका है। छोटे और मझोले अखबार इस काम को बखूबी कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए भी उन्हें सरकार की ओर से प्रोत्साहन की जरूरत पड़ेगी। वैसे भी बिहार के विकास को यदि सही दिशा देना है तो छोटे और मझोले अखबारों के लिए फलने-फूलने का पूरा माहौल देना पड़ेगा। बिहार के सुदूर इलाकों में आज भी बड़ी तादाद में छोटे और मझोले अखबार निर्भिक अंदाज में अपना काम कर रहे हैं। बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में इनकी भुमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। सरकार की खामियों को उजागर करने के लिए इन्हें चौतरफे प्रोत्साहन की जरूरत है। पढ़ने और पढ़ाने की संस्कृति बिहार में आज भी कायम है। इसे और भी सींचने की जरूरत है। यदि सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती है तो भी इन्हें बेखौफ होकर अपनी भूमिका का निर्वाह करना ही होगा। स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचारियों का पर्दाफाश करके ये नीतीश सरकार के काम को और आसान ही करेंगे।
बिहार में वेब जर्नलिज्म का एक नया दौर शुरु हो चुका है। बिहार को लक्ष्य करके रोज नई–नई साइटें आ रही हैं। बिहार से बाहर बैठे लोग इन साइटों के माध्यम से अपने आप को बिहार से जुड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं। बिहार में वेब जर्नलिज्म को भी एक स्वस्थ्य माहौल देने की जरूरत है। विभिन्न मंत्रालयों के तमाम कार्यों को हाई टेक मॉड में लाना होगा। यहां के सचिवालय को भी इस ओर खास ध्यान देना होगा ताकि सूचानाओं के प्रवाह में और तेजी आये। बिहार सरकार यदि वेब जर्नलिज्म को भी मान्यता दे दे तो शायद यह देश का पहला राज्य होगा जहां ऐसा होगा। वेब जर्नलिज्म में काम करने वाले पत्रकारों को भी वे सारी सहूलियतें दी जाये जो प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों को दी जाती है तो इनकी पहुंच सूचनाओं तक सरलता से होती जाएंगी।
यदि नीतीश कुमार की टीम के मंत्री लोग भी बिहार से निकलने वाली साइटों पर भ्रमण करना शुरु कर दें तो उन्हें बहुत सारी चीजों को नई रोशनी में देखने का अवसर मिलेगा। वैसे भी युवाओं ने बहुत बड़ी संख्या में नीतीश कुमार के विकास के नारे से प्रभावित होकर मतदान किया है। बिहार में युवा पीढ़ी नेट का धड़ाधड़ इस्तेमाल कर रही है। युवाओं को लेकर बनने वाली योजनाओं पर उनके मन और मिजाज को समझने के लिए नेट जर्नलिज्म को बढ़ावा देना नीतीश कुमार की सरकार के हित में ही होगा। ग्रामीण बिहार के साथ-साथ शहरी बिहार को भी हाई टेक के पैटर्न पर तो लाना ही होगा। नीतीश कुमार की सबसे बड़ी चुनौती है इन दोनों के बीच सही संतुलन बनाकर चलना। छोटे और मझोले अखबारों के साथ-साथ वेब जर्नलिज्म को बढ़ावा देकर नीतीश सरकार चारों तरफ इनफॉर्मेशन की बाढ़ ला सकते हैं। देश दुनिया में बहने वाली चौतरफा हवाओं को स्थानीय लोगों के हितों से जोड़कर चलना बेहतर होगा। यदि बेबाक शब्दों में कहा जाये तो बिहार में मीडिया को ही विपक्ष की भूमिका निभानी होगी। सूचनाओं को बिना किसी लाग लपेट के सही तरीके से प्रस्तुत करके न सिर्फ मीडिया की गरिमा को बहाल किया जा सकता है, बल्कि पूर्ण बहुमत में आई सरकार को भी सचेत रखा जा सकता है। यह नहीं भूलना चाहिये कि देशभर में मीडिया के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की खबरें आ रही हैं। ऐसे में बिहार की मीडिया देश की मीडिया को भी एक नई दिशा दे सकती है।
क्या मजाक कर रहे हैं । बिहार का मीडिया दलाल बनकर रह गया है । इन दलालों से आप अपेक्षा करते हैं विपक्ष की भुमिका निभाने की , उपर से देश को नई दिशा । आलोक जी रसातल में चला गया है बिहार का मीडिया ।