दुर्योधन मतवाला था कुछ नहीं समझने वाला था

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बिहार की जनता फिलवक्त सत्ता  पक्ष और विपक्ष दोनों की जनयात्रा का गवाह बनी हुई है। एक तरफ नीतीश की अधिकार यात्रा तो दूसरी ओर लालू प्रसाद की परिवर्तन यात्रा । आम जन की तकलीफों से महरूम ये दिग्गज जनता की हिफाजत के लिये कम अपनी बयान बाजी के लिये ज्यादा दिख रहे हैं। बड़े भाई और छोटे भाई की इस यात्रा के किस्से सभी को सकते में डाल रहे हैं। लालू प्रसाद नीतीश के रवैये को जहां तानाशाही फरमान का नाम दे रहे हैं वहीं नीतीश कुमार उन्हें सबसे बड़ा जनविरोधी साबित करने पर तुले हैं। अपनी डफली अपनी राग के तर्ज पर नीतीश कुमार का वही पुराना फार्मूला, बिहार के विशेष राज्य का तो लालू प्रसाद की नजर में यह झूठ का पुलिंदा और नीतीश की धोखेबाजी है।

पर इन की यात्रा का खामियाजा भुगत रही जनता  हैरान और परेशान है इस बात को लेकर कि विरोध जो आम आदमी का हथियार था वह उग्र क्योंकर हो रहा है । काले बिल्ले , काले झंडे से विरोध का हक तो संवैधानिक है फिर  बिहार के  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अधिकार यात्रा के दौरान खगड़िया और बेगूसराय में काले झंडे दिखाये जाने का इतना पुरजोर असर हुआ कि उनकी आगे की यात्रा में एहतियातन काले कपड़े पर ही प्रतिबंध का सुझाव आ गया। हद तो तब हो गयी जब इस अघोषित नियम के पालन में भी देर नहीं हुई।  अधिकार यात्रा के क्रम में पूर्णिया की सभा में काले कपड़े को लेकर कथित तौर पर पाबंदी लगा दी गई, जिसका इस्तेमाल किसी भी तरह से विरोध के लिये न हो सके, खास तौर पर झंडे  के रूप में तो कतई नहीं।
प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो पुलिसकर्मियों ने सभास्थल पर काले  कपड़े ही नहीं रोके अलबत्ता काला बेल्ट काला टिशर्ट एवं काले छाते तक को सभास्थल तक नहीं पहुंचने दिया। लोगों की गहन जांच और सुरक्षा का हवाला देकर बेशर्मी की सारी हदे पार कर ली जब लड़कियों के शरीर से काले दुप्पट्टे भी हटवाये  गये। इस मामले पर  न तो किसी पुलिस अधिकारी ने यह स्वीकार किया और न ही सत्ता पक्ष के लोग मुंह खोलते नजर आये। पर इतनी बड़ी बात किसी की जानकारी के बिना कैसे संभव थी। नियमों की अनदेखी कर सभा स्थल पर पुलिस कर्मियों द्वारा महिलाओं के काले दुप्पट्टे हटवाना किसी चीरहरण से कम नहीं था।

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री की अधिकार यात्रा के दौरान कई जगहों पर विरोध का हवाला देकर कुछ राजनेता अपना पक्ष अवश्य रखते नजर आये पर बहुतों ने इसे महज एक अफवाह बताया या फिर यह कहकर निकल लिये कि उन्हें इस तरह की कोई जानकारी नहीं। क्या लोकतंत्र में किसी राजनेता का इस प्रकार भयभीत होना और जन प्रिय कहलाने के लिये यात्रा पर निकलना, पर किसी तानाशाह को भी मात देने वाला यह रवैया एक अलग कहानी बनायेगा? सर्वाधिक उल्लेखनीय  यह है कि नीतीश कुमार की सरकार में सबसे बड़ा योगदान महिलाओं का रहा है। महिलाओं के सशक्तिकरण को हथियार बना कर सत्ता नशीं हुई सरकार आज स्त्री के शरीर से दुप्पट्टे हटवा कर क्या दुर्योधन के चीरहरण के दृश्य को सुसाशन में नहीं दिखा रही है?

बहर हाल मामला कुछ भी हो पर लाख टके का सवाल यह है कि कल तक मजदूरी मांगने के नाम पर अपनी यात्रा में भीड़ इक्कट्ठी करने वाले नीतीश कुमार के इस अधिकार यात्रा का आखिर इतना विरोध क्यों?. इस  अधिकार यात्रा का विरोध और उसे कुचलने का तरीका कहीं से भी सिर्फ विरोधियों की साजिश का हिस्सा कहकर नहीं टाला जा सकता ,यह सुसाशन बाबू भी अच्छी तरह जानते हैं। आम जन के इस विरोध के तरीके पर आपत्ति भले हो सकती है, पर उसे कुचलने का जो तरीका सरकार के हुक्मरानों ने उठाया है वह तुगलकी फरमान को  भी पीछे धकेलता दिख रहा है। नीतीश की अधिकार यात्रा अहंकार यात्रा का अहसास कराती है। अहंकार और ऊपर से चाटुकारिता का रंग सुसाशन बाबू के लिये करेले पर नीम साबित हो सकती है।इतिहास गवाह है कि  अहंकार ने पहले भी कितने तानाशाहों  को धूल चटाया है फिर यह तो लोकतंत्र का देश है जहां आखिरी गेंद  हर हाल में  आम जन के ही पाले में आयेगी।

3 COMMENTS

  1. kon kahta hai ki purnea may kale kapre per rok tha, ye aaplogo ki create kiya huaa hai , kayi media k log hi kale kapre may the purnea may aisa kuchh nahi tha or jagah ki bat mai nahi janta

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