महाराष्ट्र में पानी की लूट
मानसून की लगातार बेवफाई की वजह से पूरा महाराष्ट्र भीषण जल संकट के दौर से गुजर रहा है। सूबे में कई इलाके ऐसे हैं, जहां पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। लोग एक-एक बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। गांवों की स्थिति तो बदतर है ही, कई शहरों में भी पानी के लिए मारा-मारी मची हुई है। विदर्भ के कई हिस्सों में पूरी तरह से सूखा जैसी स्थिति बनी हुई है। लोगों के साथ-साथ जानवरों को भी खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अब तो लोगों ने अपने जानवरों को भी खुला छोड़ना शुरू कर दिया है ताकि अपनी मनमर्जी से वे पानी की तलाश करके अपनी जान बचा सकें। जलस्रोतों के सूख जाने की वजह से कई गांव तो पूरी तरह से उजाड़ हो चुके हैं। इसके बावजूद अति प्रमुख लोगों द्वारा धड़ल्ले से पानी की बर्बादी की जा रही है। ऊपर से सूखे को लेकर नेताओं की संवेदनहीन बयानबाजी से स्थिति और भी बिगड़ती जा रही है।
मजे की बात है कि इस सूखे से प्रभावीशाली तरीके से निपटने के बजाय महाराष्ट्र में बीयर कंपनियों के पानी के कोटे में भरपूर इजाफा किया जा रहा है। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक मिलेनियम बियर इंडिया लिमिटेड को जनवरी, 2012 में 12880 मिलियन लीटर पानी दिया जा रहा था, जिसे नवंबर 2012 तक बढ़ाकर 22140 मिलियन लीटर कर दिया गया। इसी तरह फॉस्टर इंडिया लि. को जनवरी 2012 में 8887 मिलियन लीटर पानी मिलता था। आज इसे 10,100 मिलियन लीटर पानी दिया जा रहा है। इतना ही नहीं, इंडो – यूरोपियन ब्रेवरीज को जनवरी 2012 में 2521 मिलियन लीटर पानी दिया जा रहा था, जो अब बढ़कर 4701 मिलियन लीटर तक पहुँच गया। इसके अलावा औरंगाबाद ब्रेवरीज को हाल ही में जारी पानी के कोटे को 14,000 से 14621 मिलियन लीटर कर दिया गया। कहा जा रहा है कि केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार इन बीयर कंपनियों पर खासे मेहरबान हैं। चुनाव में धन की जुगत इन्हीं कंपनियों से होती है। यही वजह है कि बीयर की इन कंपनियों के हितों को ध्यान में रखकर इनके पानी के कोटे में इजाफा किया गया है। मतलब साफ है कि किसानों के हिस्से का पानी बीयर कंपनियों के खाते में जा रहा है और किसान पानी के अभाव में अपने बाल-बच्चों और जानवरों के साथ अपना गांव-घर छोड़ने के लिए मजबूर हैं।
इन दिनों महाराष्ट्र में टैंकर घोटाले की भी खूब चर्चा है। विदर्भ के दूरदराज के सूखाग्रस्त इलाकों में लोगों तक पानी पहुंचाने के लिए टैंकरों के ठेके कांग्रेस और एनसीपी के छुटभैया नेताओं को दिया गया है। चूंकि स्थानीय स्तर पर बूथ मैनेजमेंट में इन छुटभैये नेताओं की अहम भूमिका होती है, इसलिए सूखे के बहाने इन्हें जनकल्याण करने के साथ-साथ कमाई करने का भी मौका दिया गया है। लेकिन ये छुटभैये नेता पानी के बदले लोगों से मनमाना पैसा वसूलने में लगे हुये हैं। सूखे की वजह से इन ठेकेदारनुमा नेताओं के ऊपर हरियाली छायी हुई है। ऊपर से तुर्रा ये छोड़ रहे हैं कि जनता की भलाई के लिए पूरा जोर लगाए हुये हैं। लेकिन पानी की आसमान छूती कीमतों की वजह से लोगों में खासी नाराजगी है। केंद्र सरकार द्वारा सूखे से निपटने के लिए 17 सौ करोड़ रुपये का पैकेज भी जारी किया गया था, लेकिन यह पैसा कहां गया, किसी को पता नहीं। लोग बड़ी बेबाकी के साथ कह रहे हैं कि इस सूखे की वजह से कई नेताओं को मलाई खाने का पूरा मौका मिल रहा है। नेता से लेकर आला अधिकारी तक सूखे के नाम पर केंद्र से मिली रकम का बंदरबांट करने में लगे हुये हैं।
मजे की बात है कि इस सूखे के बीच राजनेताओं और संतों से लेकर फिल्मी हस्तियां तक भी पूरी तरह से असंवेदनशील रुख अख्तियार किये हुये हैं। अपने व्यवहार से यह साबित कर रहे हैं कि इस सूखे का इन पर कोई असर नहीं है। कुछ दिन पहले खुद को महान संत बताने वाले आसाराम बापू ने अपने एक जलसे में जमकर पानी की बर्बादी की थी। इसे लेकर जब उनसे सवाल पूछा जाने लगा तो उन्होंने भड़कते हुये कहा था कि धार्मिक अनुष्ठान में पानी की बर्बादी नहीं होती है। काफी हो-हल्ला मचने के बाद उनके धार्मिक अनुष्ठानों के लिए की जा रही पानी की आपूर्ति को रोक दिया गया था। ताजा खबर के मुताबिक वनमंत्री पतंग राव कदम के औरंगाबाद दौरे के लिए हजारों लीटर पानी यूं ही बर्बाद कर दिया गया। भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे पानी के लिए औरंगाबाद में अनशन पर बैठे हुये थे। उन्हें मनाने के लिए पतंग राव कदम हेलीकॉप्टर से औरंगाबाद पहुंचने वाले थे। हेलीपैड पर धूल का गुबार न उड़े, इसके लिए हेलीपैड के इर्द गिर्द हजारों लीटर पानी का छिड़काव किया गया। बेहतर होता हेलीपैड के इर्दगिर्द छिड़का जाने वाला यह पानी जरूरतमंद लोगों को मुहैया कराया जाता। लेकिन अधिकारियों ने इस दिशा में सोचने की जहमत ही नहीं उठाई। उन्हें तो बस इस बात की चिंता थी कि हेलीकाप्टर के उतरते समय पतंग राव कदम का ड्रेस न खराब हो। इस तरह की असंवेदनशीलता साफ तौर पर दर्शाती है कि सरकारी महकमा सूबे में सूखे को लेकर कतई गंभीर नहीं है। मजे की बात है कि गोपीनाथ मुंडे पानी के मसले को लेकर ही अनशन पर बैठे हुये थे, फिर भी पानी की बर्बादी की गई।
फिल्मों से अकूत कमाई करने वाली फिल्म इंडस्ट्री के लोग भी सूखे को लेकर पूरी तरह से असंवेदनशील रवैया अख्तियार किये हुये हैं। जिस तरह से शाहरुख खान की फिल्म ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ की शूटिंग के दौरान व्यापक पैमाने पानी की बर्बादी की गई, उससे स्थानीय किसान काफी नाराज हैं। इस फिल्म की शूटिंग धोम डैम के किनारे मुगांव में की गई। वहां पर बगीचे का एक बहुत बड़ा सेट लगाया गया। बगीचे को हराभरा रखने के लिए सतारा डैम से पानी छोड़ा गया। स्थानीय किसानों का कहना है कि एक तो वहां के लोग बूंद- बूंद के लिए तरह रहे हैं और दूसरी ओर फिल्म वाले पानी जाया कर रहे हैं। इस पानी का इस्तेमाल कम से कम जानवरों की प्यास बुझाने के लिए तो हो ही सकता है।
किसानों को पानी मुहैया कराने को लेकर महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार के विवादास्पद बयान को लेकर पहले ही काफी हंगामा हो चुका है, इसके बावजूद जल प्रबंधन को लेकर कोई ठोस कदम उठाने की कोशिश नहीं की जा रही है। जल आपूर्ति विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि कम से कम 88 तालुकाओं में पानी का गम्भीर संकट है। मुम्बई भी गम्भीर जल संकट का सामना कर रही है। अभी मानसून आने में वक्त है। यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि इस बार मानसून महाराष्ट्र पर मेहरबान ही रहेगा। ऐसे में जल संकट को लेकर एक स्पष्ट योजना तो सरकार के पास होनी चाहिए और इसी नीति के केंद्र में महाराष्ट्र की आम जनता और किसान को रखा जाना चाहिए न कि बीयर कंपनी और फिल्म वालों को।