मात खाती जिंदगी (कविता)
मात खाती जिंदगी मुझसे सवाल करती है
और मैं उसे यकीन दिलाता हूं
उस विजय का
जिसके लिए
कई लोगों ने अपनी जिंदगियों को दांव पर लगाया है
जब लोग भाग रहे थे पैसों के पीछे
उस समय होती थी मेरे हाथ मार्क्स की किताब
जब लोग झूमते थे दशहरा में नगाड़ों की थाप पर
तब मैं खोया रहता था
लेनिन के अचंभित करने वाले कारनामों में
बुतपरस्ती से दूर वर्गविहीन समाज
पूंजीवाद का नाश
धर्म की छाती पर तर्क का हथौड़ा
अनगिनत समस्याओं में उलझी हुई जिंदगी को सुकून की राह
सबकुछ सब के लिए है
फड़फड़ाते पन्नों की आवाज गूंजती है मेरे कानों में
भूखमरी और बेकारी के इस दौर में
खूंखार हो चुकी जिंदगी मुझसे सवाल करती है
मुझे डराती है
हुक्मरानों के नाम से
पूंजीपतियों को नाम से
पूंजी की ताक में रहने वाले बिचौलियों के नाम से
शीशे की चहारदीवारी में बैठकर
चाबुक चलाने वाले मैनजरों के नाम से
कहती है घुटने के बल चलना सीख लो
नहीं तो रेंगने के काबिल भी नहीं रहोगे
नये दौर में जंग की सूरत बदल गई है
सारे पुराने हथियार तब्दील हो गये हैं
सूदखोरी ने संस्थागत रूप अख्तियार कर लिया है
सीख लो इन तौर तरीकों को
पूरी दुनिया की फौज खड़ी है
असलहों के साथ
इसके खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों को
नेस्तानाबूत करने के लिए
वैसे तुम्हारे जैसे लोगों को
ठिकाना लगाने के लिए हथियारों की जरूरत नहीं पड़ेगी
बेकारी कैंसर की तरह की तुम्हारे जिस्म को
खोखला कर देगी
तुम्हारे माथे पर नाकामी की मुहर ठोक देगी
और फिर तुम तमाशा बन जाओगे
जिंदगी की आंखों में आंख डालकर मैं कहता हूं
बेशक मेरा जिस्म टूट सकता है
लेकिन मेरे दिमाग को गुलामी की आदत नहीं
जिंदगी तू यकीन कर मुझमें
और यदि मुझमें यकीन न हो
तो खुद में तो यकीन कर
और यदि खुद में भी यकीन न हो तो
चल एक बाजी और जाये
उस दिन के लिए, जहां बेबसी जैसी कोई चीज नहीं रहे
सबकुछ झोंक कर लड़े
फिर कभी न लड़ने के लिए
अंतिम प्रहार, अंतिम आघात
ताकि तू भी शर्मिंदा न हो
मेरे जिस्म में जगह पाकर