अंदाजे बयां

ये जगह नहीं है मेरे काम की …….!

इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, प्रबंधक, बैंकिंग या फिर शिक्षक बनना हमेशा से ही युवाओं का टशन रहा है। कोई समाजसेवक बन कर जहाँ समाज के हितों के लिए कुछ करना चाहता है तो साथ ही नाम कमाने की ललक भी उनमें जाहिरी तौर पर होती है। जो पढ़ने – लिखने में मेधावी हैं, वो कुछ अपने बल पर तो कुछ धन और सिफारिश का सहारा लेकर अपना मक़सद हासिल कर लिते हैं।

लेकिन एक सवाल जो एक अरसे से चला आ रहा है, वो भी राजनीतिक गलियारे से कि क्यों एक कर्मठ और निष्ठावान युवा राजनीति से कोसों दूर रहता है? क्यों वो नहीं चाहता कि वो भी राजनेता बनकर देश के लिए कुछ करे? क्यों वो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने का ख्वाब नहीं देखता ?
इसका जवाब यदि ढूँढा जाय तो जो वजह सामने निकालकर आती है वह है राजनीति में व्याप्त अनाचार, धूर्तता, हैवानियत और लालच। सत्ता पाने की सनक में न तो कोई रिश्ता देखता है, ना ही किसी अनाचार की परवाह करता है।
फिल्मों को समाज का वास्तविक आइना माना जाता है तो 2001 में आई एस शंकर निर्देशित फ़िल्म “नायक : द रियल हीरो ” में स्पष्ट दिखाया गया था कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बलराज चौहान (अमरीश पूरी) किस तरह भ्रष्टाचार के सहारे जनता को लूट कर अपना खज़ाना भरता है। जब नायक यानी शिवाजीराव गायकवाड़ (अनिल कपूर) जो एक जर्नलिस्ट है, एक चुनौती के तहत एकदिनी मुख्यमंत्री बनता है। बाद में भी उसपर जानलेवा हमले होते हैं। आखिरकार तमाम जद्दोजहद के बाद उसे जनता का समर्थन मिलता है और काफी कुछ खोने के बाद मुख्यमंत्री बन पाता है।
अगर आज के फ़िल्मीं परिदृश्य पर नज़र डालें तो प्रकाश झा निर्देशित फ़िल्मराजनीति” इसका उदाहरण है । ये फ़िल्म जो कि राजनैतिक पृष्ठभूमि पर ही फिल्माई गयी है, में स्पष्ट दिखाया गया है कि किस तरह सियासत और सत्ता के भूखे राजनेता एक दूसरे के खून के प्यासे हो बन जाते हैं, कैसे विदेश में पढ़ रहा सीधा सादा समर ना चाहते हुए भी राजनीति में आता है और ज़बरदस्ती थोपी गयी शैतानियत के बल पर अपनों के लिए अपने ही लोगों को गाजर मूली की तरह काटते हुए सत्ता की चरम सीमा पर पहुँचने में सफल होता है।

ज़ाहिर है एक प्रतिभाशाली किन्तु निर्मल स्वभाव का व्यक्ति राजनीति में कदम रखने से हिचकने पर विवश होगा। ऐसे हालात उसे ये कहने पर मज़बूर कर देंगे कि …….. ये जगह नहीं है मेरे काम की ………….!

बीना पाण्डेय

इलाहाबाद

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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One Comment

  1. kitan bhi samaj seva karne ka feeling kyo na ho , ye samaj dil ke saaf suthra rahne ke baad bhi , use beimaan hi kahte hai, kyoki aaj ka politics nischay hi bahut ganda ho gaya hai.

    politics aaj ke samay me vahi kar sakte hai jinke paas , power, money, political hierarchy nahi to bahut dikkat hai, man ki baat man me hi dabane me bhalai nazar aati hai,

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