लिटरेचर लव
रक्षा-बंधन(कविता)
अनुजय प्रताप सिंह ‘रवि’,
तू जिस रूप में है मेरी बहना।
तेरी रक्षा है मुझको करना।
माँ बहन बेटियां या पत्नी।
क्यूँ बेटियाँ ही हैं घृणा।
रक्षा का है कैसा बंधन।
ये आबरू ही उसका गहना।
केवल है धागा ही बचा।
जब करना ही है उससे घृणा।
खलती है सबको बेटियाँ।
फिर माँ को अब न माँ कहना।
वो भी किसी की बेटी ही।
बेटी से ना नफरत करना।
जिस रूप में है मेरी बहना।
तेरी रक्षा है मुझको करना।
रक्षा का है वादा तूझसे।
धागा नहीं वादा करना ।।