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संजय कुमार झा के चक्रव्यूह में फँसे तेजस्वी, मुकेश सहनी ने डुबोई आरजेडी की नैय्या

चाय की दुकान पर पत्रकारों की जुटान के दौरान चर्चा

“मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री घोषित करना तेजस्वी को महंगा पड़ गया। पढ़े-लिखे लोगों को लगा कि इसे तो खैर किसी तरह झेल ही रहे हैं, अब सहनी को भी बिहार के माथे पर बैठा रहे हैं। और अंत पहर में तो वह मीडिया के दफ्तर में ही आग लगाने लगा-नक्सलियों की भाषा बोल रहा था, ‘आओ, अब लगाओ आग!’” एक पत्रकार ने कहा।

“मुकेश सहनी खुद तो डूबा ही, तेजस्वी समेत पूरे महागठबंधन को भी ले डूबा,” दूसरे पत्रकार ने कहा।

“राजद ने अपने मजबूत प्रवक्ताओं को भी सीन से बाहर कर दिया था। राजद के एक वरिष्ठ प्रवक्ता ने तो यहां तक कहा था कि पार्टी को 40 सीट से ज्यादा नहीं मिलेंगी। 40 सीट भी आ जाए तो गनीमत समझिए,” पहले पत्रकार ने कहा, “राजद के वरिष्ठ नेताओं को पता था कि पार्टी के अंदर जो कुछ चल रहा है, उसका क्या असर पड़ने वाला है। इन लोगों ने मुंह बंद रखा और राजद की लुटिया डूब गई।”
“मेरा एक प्रश्न है। चुनाव परिणाम को लेकर कोई बहस नहीं है। एनडीए की पूर्णत: जीत हुई है—अचंभित करने वाली जीत हुई है। राजद, कांग्रेस और वामपंथी बुरी तरह पिट चुके हैं। पूरा बिहार इस जीत का जश्न मना रहा है। क्या एक प्रतिशत भी यह मुमकिन नहीं है कि इस जीत में ईवीएम की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही हो?” चौथे पत्रकार ने कहा।

“आपके इस प्रश्न में मैं थोड़ा-सा अतिरिक्त तथ्य जोड़ दूं। अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे विकसित देशों में मतदान के लिए ईवीएम का इस्तेमाल नहीं होता है। ईवीएम की विश्वसनीयता पर हमेशा प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं। एक बात और—अब बंगाल की बारी है। ममता दीदी दोबारा सत्ता में नहीं आएंगी।”
“इस बार बिहार में ‘माई’ समीकरण की परिभाषा भी बदल गई थी। रिपोर्टिंग के दौरान मोतिहारी में एक मुसलमान ने कहा था—‘माई’ अब मुसलमान और यादव नहीं, बल्कि मल्लाह और यादव हो गया है,” पहले पत्रकार ने कहा।

“यादव रंगदार बनतऊ’ और ‘सटा के कट्टा’ जैसे गानों ने भी राजद को अलग-थलग कर दिया। इन गानों के साथ कई वीडियो वायरल हो रहे थे, जिनमें यादवों को अन्य पिछड़ी और दलित जातियों के खिलाफ गाली-गलौज करते दिखाया जा रहा था। इससे इन जातियों के बीच यादवों को लेकर भय का संचार हुआ। लोग तेजस्वी की संभावित सरकार को ‘यादव राज’ से जोड़कर देखने लगे,” दूसरे पत्रकार ने कहा।

“क्या ऐसे गाने राजद के शीर्ष नेताओं की सहमति से चल रहे थे? क्या उन्हें अंदाजा था कि इन गानों का मतदान पैटर्न पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है? अब ये लोग उन गायकों को नोटिस भेज रहे हैं—यह तो वही बात हो गई कि चिड़िया खेत जुगने के बाद इन्हें होश आया। अब लोग उदंडता और धक्कामुक्की पसंद नहीं करते। समय बदल गया है। सोशल मीडिया तेजी से पब्लिक ओपिनियन बनाने और बिगाड़ने में सक्षम है। सोशल मीडिया को लेकर राजद की स्थिति बंदर के हाथ में उस्तरा जैसी हो गई थी,” पांचवें पत्रकार ने कहा।

“रणनीति से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दोनों समूह की ओर से कमान संजय के हाथ में थी। राजद की कमान संजय यादव के पास थी तो जेडीयू की कमान संजय कुमार झा के पास थी। संजय यादव की टीम में आयातित हरियाणवी योद्धाओं की भरमार थी तो संजय कुमार झा खांटी बिहारियों के भरोसे कैंपेन को लीड कर रहे थे। संजय कुमार झा अनुभव, सूझबूझ और जमीनी हकीकत को समझकर रणनीति बना रहे थे और जरूरत पड़ने पर उसमें तुरंत बदलाव भी कर रहे थे जबकि संजय यादव एक तरफा आक्रमकता अपना कर मतदाताओं पर तेजस्वी यादव को आरोपित कर रहे थे। उनकी टीम के टोन में रिक्वेस्ट की भावना बिल्कुल नहीं थी। यहां तक एक मीडिया कनक्लेव में जब उनसे तेजस्वी यादव से प्रश्न पूछने को कहा गया तो उन्होंने पूछा कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए आयोजित समारोह में दूसरे राज्यों के एनडीए के मुख्यमंत्रियों के आमंत्रित करेंगे या नहीं। जब सुकेश रंजन ने उन्हें टोका कि अभी तेजस्वी जीते नहीं है, लड़ाई बाकी है तो बड़ी चापलुसी भरी उदंडता से उन्होंने जवाब दिया कि यह जंग तेजस्वी जीत चुके हैं अब सिर्फ 18 नवंबर को शपथ लेना बाकी है।”

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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