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सजा नहीं, नीतीश का प्रदर्शन लिखेगा लालू एरा के खात्मे की पटकथा

लालू एरा अब ढलान पर सरकने लगा है…. ११ साल तक चुनाव नहीं लड़ पाने की सजा मास्टर स्ट्रोक है… पर इस युग की कहानी का अंत सबसे ज्यादा नीतीश पर निर्भर है…नीतीश जिस तेजी से लोगों का आह्लाद खो रहे वो लालू के आभामंडल के सरकने की गति को थाम भी सकती है…बिहार के सीएम ने बड़ी राजनीतिक-प्रशासनिक गल्तियां की तो संभव है २०१४ के चुनाव तक आरजेडी के प्रभाव में कोई कमी न आए… इसलिए कि लालू की मुश्किलों के वक्त यादव जाति के लोग चट्टानी एकता दिखाते हैं… ये देखना दिलचस्प होगा कि मुसलमान क्या करते हैं..?   मुसलमान बड़े ही रणनीतिक अंदाज में वोटिंग पैटर्न दिखाते हैं… इन्हें अहसास होगा कि अब लालू का साथ छोड़ दूसरों का दामन थामने में भलाई है तो वे लालू का साथ छोड़ देंगे…. यहां याद दिलाना उचित होगा कि जगन्नाथ मिश्र कभी मुसलमानों के सबसे चहेते हुआ करते थे…. देश भर में…इस कांग्रेसी मुख्यमंत्री को मुहम्मद जगन्नाथ तक कहा जाने लगा था…. लेकिन बाद में मुसलमानों ने उनका साथ छोड़ दिया … वो दौर भी दिखा जब जगन्नाथ मिश्र अपने बेटे की चुनावी जीत के लिए मुसलमानों की चिरौरी करते पाए गए…. ये देखना दिलचस्प होगा कि अल्पसंख्यक समाज लालू का साथ किस गति से छोड़ना चाहता है… भरोसा तोड़ने की उनकी रफ्तार धीमी हुई तो फिर लालू के पुत्रों को अनुभव हासिल करने और एक तिरस्कृत नहीं किए जा सकने वाले राजनीतिक शक्ति बना लेने का मौका मिल जाएगा… ये इस बात पर भी निर्भर करेगा कि आरजेडी के बड़े नाता बगावत कर पार्टी को न तोड़ें…जो लोग लालू की लोकप्रियता के कायल रहे हैं वे भूल जाते हैं कि लालू को कभी थंपिंग मेजोरिटी हासिल नहीं हुई… कभी जेएमएम तो कभी कांग्रेस का साथ लेना पड़ा सरकार बनाने में… ऐसा क्यों हुआ..? उन्होंने अपने समर्थकों को बेकाबू हद तक जगाया… जातीए वैमनस्य पैदा कर… पर उनकी ताजपोशी किसी आंदोलन का प्रतिफल नहीं थी… रघुनाथ झा के मैदान में कूद पड़ने के कारण वो सीएम बन गए थे… और रामसुंदर दास हार गए… कर्पूरी ठाकुर की तरह जमीनी स्तर पर काम करते-करते उंचाई पर नहीं पहुंचे थे वे… क्राति की उपज(जेपी आंदोलन की विरासक का श्रेय लालू या नीतीश को नहीं दिया जाना चाहिए)  नहीं थे सो पराभव संभव है… कोई पारदर्शी विजन नहीं था… और न ही उसके अनुरूप कार्यनीति…प्रशासन को हड़काया… पर उसके डेलिवरी सिस्टम को असरदार बनाने के लिए नहीं… उल्टे उनके राज में यही प्रशासन लूटखसोट में नेताओं का खूंखार साझीदार बन बैठा…..  करिश्मा और देसी अंदाज के बल पर चमके … लिहाजा सीएम बनने के बाद जिन पिछड़ों को जगाया वो अपना हिस्सा लेने किसी भी सोशल इंजीनियारिंग का हिस्सा बन सकते थे और ऐसा हुआ भी… लालू कहते कि राजनीति में कोई मरता नहीं… पर उन्हें पता है कि हाशिए पर जरूर धकेल दिया जाता है… खुद उन जैसों ने वीपी सिंह को धकेला था… ये तो सत्ता का निष्ठुर चरित्र है… लालू जितना जल्द इसे समझ अपनी वागडोर सौंपें उतना ही अच्छा रहेगा उनकी राजनीतिक विरासत के लिए…बिहार की राजनीति में तीसरा कोन बने रहने के लिए…पर एक क्रेडिट लालू प्रसाद को जरूर मिलना चाहिए… अन्ना के आंदोलन के बाद से जो माहौल बना… लालू के जेल जाने के कारण हुक्मरानों को सबक जरूर मिलेगा…

संजय मिश्रा

लगभग दो दशक से प्रिंट और टीवी मीडिया में सक्रिय...देश के विभिन्न राज्यों में पत्रकारिता को नजदीक से देखने का मौका ...जनहितैषी पत्रकारिता की ललक...फिलहाल दिल्ली में एक आर्थिक पत्रिका से संबंध।

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