अंदाजे बयां

सिताब दियारा की अतृप्त यात्रा

( विरेन्द्र कुमार यादव ) लोकनायक जयप्रकाश नारायण का पैतृक गांव सिताब दियारा का कुछ हिस्सा बिहार में है अधिकांश उत्तर प्रदेश में । कहते हैं इसमें  तीस से अधिक टोले हैं । उसमें से एक टोला शहर सा बन गया है बबुलवना टोला । इसका नया नाम जयप्रकाश नगर हो गया है । यहाँ संचालित हो रहे जयप्रभा ट्रस्ट आधुनिक संसाधनों से लैस है । यह मूलतः जयप्रकाश जी का पैतृक टोला लाला टोला है , जो सरयू नदी की पेटी में बसा हुआ है । यहाँ एक पुराना मकान है , जिसे वहाँ के लोग जेपी का पैतृक आवास बताते हैं । जयप्रकाश नगर उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का हिस्सा है , जबकि सिताब दियारा का लाला टोला छपरा जिले के रिविलगंज प्रखंड का हिस्सा है ।

पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की जनजागरण यात्रा के कारण सिताब दियारा अचानक सुर्खियों में आ गया । मेरा अनुमान था कि छपरा से 15-20 किलो मीटर की दूरी पर कोई दियारा होगा , जहाँ से घूम-फिर कर शाम तक पटना वापस आया जा सकता है । सुबह पौने सात बजे पटना से बस पकड़ा । बस करीब सवा नौ बजे तक छपरा पहुँची । मैंने अपने एक साथी गुड्डु राय को फोन किया । उन्होंने बताया कि सिताब दियारा के लिये बस स्टैंड के पास से गाड़ी खुलती है । कुछ दूसरे विकल्प भी बताये । इस दौरान सिताब दियारा के लिये खुलने वाली गाड़ी मिल गयी । उसमें कुछ खराबी थी , जिसे ड्राइवर बनवा रहा था । इस बीच पास के ही दुकानदार से सिताब दियारा के बारे में जानकारी हासिल की । फिर ड्राइवर से पूछा कि लौटना कब है ।उसने बताया कि गाड़ी अगले दिन सुबह में लौटेगी । मेरी परेशानी बढ़ने लगी । हमे लगा कि अब वापस पटना लौटते हैं । इस बीच जब हमने गुड्डु राय को बताया कि सिताब दियारा से आज लौटना संभव नहीं है तो उन्होंने कहा कि आप वहां पहुँचिए, वापसी की व्यवस्था करा देंगे । एक उम्मीद जगी वापस लौटने की । इस दौरान इस विकल्प पर भी विचार करने लगे कि  यदि वापसी संभव नहीं हुआ तो कहाँ रुका जा सकता है । इस संबंध में दो बाते समझ में आयी । पहली यह कि जय प्रभा ट्रस्ट में ठहरा जा सकता है या फिर प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश जी के गाँव में । फिर भी लौट आने की बात दिमाग से निकल नहीं रही थी । करीब साढ़े ग्यारह बजे जीप खुली । गाड़ी में सभी यात्री सिताब दियारा के ही थे । बगल वाले व्यक्ति से मैंने बातचीत का सिलसिला शुरु किया । कभी बात हो रही थी तो कभी दोनों चुप । गाड़ी छपरा से रिविलगंज से होते हुये मांझी की ओर बढ़ रही थी । सिताब दियारा से जितना हम करीब होने की सोच रहे थे , वह उतना ही दूर जा रहा था । जब गाड़ी मांझी जयप्रभा सेतु पर चढ़ी तो मैंने पूछा कि कहां है सिताब दियारा , अब तो यूपी आयेगा । बगल वाले यात्री ने बताया कि हम लोग जयप्रकाश नगर जा रहे हैं।

मांझी पुल पार करते हुये मैं इस बात में उलझा रहा कि सिताब दियारा यूपी में है या बिहार में । बगल वाले यात्री से कहा कि हमें लाला टोला जाना है , उन्होनें कहा कि लाला टोला में कुछ नहीं है, सब तो जयप्रकाश नगर में है ,  चलिये हम भी वहीं चलेंगे ।  बांध पर हमलोग सिताब दियारा की ओर बढ़े जा रहे थे । इस बीच मैंने सहयात्री से बताया कि एक पत्रकार हैं हरिवंश जी । उनका घर दियारा में ही है । हम भी उन्हीं के अखबार में काम करते हैं । उन्होंने दाहिनी ओर हाथ बढ़ाते हुये कहा कि वह गांव है दलजीत टोला  , इसी गांव के रहने वाले हैं हरिवंश सिंह ।  उनका अपना परिवार यहाँ कोई नहीं रहता , लेकिन और लोग हैं। एक के बाद एक टोला पार करते जा रहे थे हम । जय प्रकाश नगर से पहले गाड़ी थोड़ी देर तक रुकी । उसी समय हमारे सहयात्री ने एक व्यक्ति से परिचय कराया । ये हैं हरिवंश सिंह परिवार के । औपचारिक परिचय के बाद उन्होंने अपना नाम गुड्डु सिंह बताया । वे भी उसी गाड़ी पर सवार होकर जयप्रकाश नगर की ओर जाने लगे , क्योंकि जयप्रकाश नगर से ही लगा हुआ है दलजीत टोला । जयप्रकाश ट्रस्ट के पास मैं उतर गया । करीब डेढ़ बज रहा था , उनहोंने कहा कि ट्रस्ट घुमिये । शाम तक हम आयेंगे तब घर ले चलेंगे ।

        अब मैं ठहरने या न ठहरने के द्वंद से भी निकल गया था क्योंकि एकदम अपरिचित जगह में परिचित का भरोसा मिल गया था । गलियों से होता हुआ मैं जेपी ट्रस्ट के छोटे वाले गेट के पास पहुंचा । वहां शिलापट्ट पर ट्रस्ट के संबंध में जानकारी दी गयी थी । उसे पढ़ने के बाद अंदर प्रवेश किया । अद्भुत जगह , अतुलनीय व्यवस्था । वातावरण भी एकदम प्राकृतिक एवं शांत । उसके सामने पटना का सचिवालय व विधानसभा परिसर की व्यवस्था भी गौण लगी । यहां के प्रभारी कौन हैं,एक व्यक्ति से पूछा । उन्होंने बताया अशोक जी । अशोक जी से मुलाकात हुई। उन्हें मैने बताया कि मैं पटना से आया हूँ । मुझे जाना था लाला टोला और पहुंच गये जयप्रकाश नगर । पानी पीने के बाद एक दो लोग आकर बैठ गये । उन्होंने दावा किया कि जयप्रकाश जी की जन्म स्थली बबुलवना था । लाला टोला में कुछ नहीं है । उनका स्मारक यहां बना हुआ है । वह सामने वाली जगह पर उनका जन्म हुआ है , जहां उनका स्मारक बना हुआ है । मैंने स्मारक देखने की इच्छा जतायी । उनलोगों ने एक आदमी के साथ मुझे स्मारक तक भेजा । स्मारक के बाहर जयप्रकाश जी की एक प्रतिमा लगी हुयी थी और उस पर नारा लिखा हुआ था – संपूर्ण क्रांति अब नारा है , भावी इतिहास हमारा है ।

मैं स्मारक भवन में गया और जल्दी-जल्दी वापस लौट आया । मुझे अब पटना जाने की फिक्र सताने लगी थी । जेपी ट्रस्ट परिसर में जयप्रकाश जी भव्यता के साथ बिराजमान थे , लेकिन मैं कुछ भी ठीक से देख नहीं सका । उनका कक्ष उनके सामान और उनसे जुड़ी जानककारियाँ अगल बगल के कमरों में ही थी, लेकिन उनके दर्शन की इच्छा नहीं हो रही थी क्योंकि सारा ध्यान वापसी पर था । इस बीच लोगों से बातचीत करता रहा । ट्रस्ट ,पदाधिकारी , सदस्य संगठन , संचालन की बात होती रही लेकिन मेरा धयान पटना लौटने पर अटक गया था । इसी दौरान मैंने गुड्डु राय को फोन लगाया। उनसे कहा कि सिताब दियारा तो पहुँच गये हैं , लेकिन लौटने की समस्या हो गयी है । उनहोंने वहाँ आलोक जी अथवा संजीव जी के बारे में पूछा , पर दोनों में से कोई नहीं थे । उन्होंने कहा कि जो सामने हैं उनसे मेरी बात करवाइये । सामने बैठे भाई को मैंने फोन दिया । उनसे उनकी बात हुई, फिर गुड्डु राय ने मुझसे कहा कि आप जयप्रकाश नगर चले गये हैं। आप लाला टोला वाले ट्रस्ट में चले आइये । वहां से आलोक जी कोई व्यवस्था करा देंगे । थोड़ी देर बाद फोन पर आलोक जी से भी बात हुई।

इस बीच एक साथी आये और अपने साथ मोटर साइकिल से लाला टोला की ओर ले चले । जयप्रकाश नगर से बांध होते हुये हमलोग लाला टोला की ओर बढ़ रहे थे । बांध से पुल पार कर फिर एक टोले में गये । करीब दो बीघे में फैला एक दलदली मैदान था जो क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है । वहाँ आलोक जी के बारे में पूछा । मुझे बताया गया कि ट्रस्ट पर होंगे । हमलोग कई पगडंडियों से होते हुये ट्रस्ट तक पहुँचे । वहाँ पर आलोक जी से मुलाकात हुई । इसके बाद गाड़ी वाले साथी लौट गये । आलोक जी मुझे एक घर के परिसर में ले गये , जो जेपी का पैतृक निवास है । वहाँ भी एक जयप्रभा ट्रस्ट का बोर्ड लगा हुआ था । मैंने पूछा कि एक ट्रस्ट वहाँ भी है और एक ट्रस्ट यहां भी है , कुछ समझ में नहीं आ रहा है । इसके बाद आलोक जी ने ट्रस्ट की स्थापना की कहानी बतायी । जबकि मेरा ध्यान इस बात पर था कि किस गाड़ी से हम मांझी तक पहुँच सकते हैं। ट्रस्ट के बाहर दूर-दूर तक सरयू का सुरम्य वातावरण ध्यान खींच रहा था, लेकिन मन सरयू के आंचल से बाहर निकलने को बेचैन था । हमलोग पैदल बांध की ओर तेजी से बढ़ रहे थे । इस तेजी में एक पैर यूपी में होता था तो दूसरा बिहार में । इस इलाके में न जमींन पर सीमा रेखा है और न मन मिजाज पर , जीवन शैली भी दोनों प्रदेश के लोगों की एक । यूपी और बिहार में एक ही पहचान थी कि जिस इलाके में पीपीसी सड़क थी , वह यूपी में था और जहां सड़क नहीं थी वह बिहार में था । लाला टोला भी बिहार में है , जहां संपूर्ण क्रांति के नायक जेपी के पैतृक निवास तक पहुंचने के लिये पीपीसी सड़क तक नहीं है ।

      बांध पर पहुंचने वाले ही थे कि एक जीप सामने आयी । उसे हाथ दिया तो ड्राइवर ने रोक दिया । ड्राइवर ने कहा कि जगह है तो बैठ जाइये । जगह नहीं थी पर किसी तरह पिछले हिस्से में बैठ गये । आलोक भाई को धन्यवाद करते गाड़ी खुल गयी । जब मैं उस गाड़ी में बैठा तो मुझे मालूम नहीं था कि गाड़ी कहां तक जायेगी । बगल वाले से पूछा , भाई साहब मुझे मांझी जाना है , यह गाड़ी जायेगी न । उन्होंने कहां , यह सिवान तक जायेगी वहां से मांझी के लिये गाड़ी मिलेगी । सिवान पहुंचने के बाद मांझी के लिये गाड़ी का इंतजार करने लगा । एक बस आयी देखकर दौड़ा , मालूम पड़ा कि यह बस सिताब दियारा जायेगी । यह बस जयप्रभा ट्रस्ट जयप्रकाश नगर द्वारा ही संचालित थी । सिवान मोड़ पर खड़े-खड़े मैं यही सोचता रहा कि सिताब दियारा को देखने और समझने का सपना अतृप्त ही रह गया । न बबुलवना को ठीक से देख-समझ पाया और न लाला टोला को । यहां के लोगो से भी ठीक से परिचय नहीं हो पाया । करीब दो घंटे के सिताब दियारा के भागमभाग में न वहां का भूगोल समझ पाया और न समाज । यह भी नहीं समझ पाया कि सिताब दियारा गंगा की गोद में है या सरयू के आंचल में । कई लोगों के साथ बैठकर बातचीत भी की लेकिन उनका नाम भी नहीं पूछ पाया ।

सिवान से मांझी के लिये टेम्पो आयी और उससे मांझी पुल पर बिहार की सीमा में आया । इसके बाद मैंने राहत की सांस ली । वहां से छपरा की गाड़ी मिली और छपरा से पटना आ गये । इस दौरान सिताब दियारा के लोग , वातावरण , समाज , संस्कृति और लोगों के रहन सहन को लेकर भी विभिन्न तरह के विचार दिमाग में आते –जाते रहे । अपनी पंद्रह घंटे की यात्रा में मात्र दो घंटे सिताब दियारा में रहा और शेष अवधि यात्रा और इंतजार में ही बीत गयी । पटना की ओर आते समय मैं गाड़ी में बैठा-बैठा यही सोच रहा था कि सिताब दियारा जाते समय हमारे सामने एक ही सोच थी जयप्रकाश जी का गांव और आडवाणी जी की जनचेतना यात्रा । लेकिन वापसी में सिताब दियारा के कई रुप हमारे सामने थे । जैसे बिहार का सिताब दियारा , यूपी का सिताब दियारा , चंद्रशेखर का सिताब दियारा , हरिवंश का सिताब दियारा , नीतीश का सिताब दियारा , सरयू का सिताब दियारा , गंगा का सिताब दियारा लेकिन इसमें से किसी सिताब दियारा को समग्रता से नहीं देख-समझ पाया । सरयू  की गोद में खड़ा होने के बाद कई सवाल भी दियारा में उत्पन्न हुये , पर इनका जवाब नहीं खोज पाया । सिताब दियारा की हमारी यह अतृप्त यात्रा तृप्त होगी या नहीं , यह तो समय बतायेगा , लेकिन सरयू ने जो सबाल खड़े किये हैं उसके जवाब तलाशने की कोशिश की ही जा सकती है।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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3 Comments

  1. लिखा तो अच्छा लेकिन इतनी बेचैनी में यात्रा करने की आवश्यकता ही नहीं थी…यह सीवान कहाँ से आ गया बीच में…लगता है कुछ गड़बड़ हो गया यात्रा में…

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