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हिंदी सिनेमा में संवादों का प्रयोगवादी संसार

सिनेमाई व्याकरण में संवादों की एक विशद भूमिका होती है। सिंगल स्क्रीन से मल्टीप्लेक्स तक के सफर में हिंदी संवादों के साथ जमकर प्रयोग किए गए हैं। यही वजह है कि 70 फीसदी हिंदी फिल्मों को सेंसर बोर्ड ए सर्टिफिकेट  दे रहा है और बाक्स आफिस इन फिल्मों की सफलता की कहानी बयान कर रहा है।

विक्रमादिक्कय मोटवाने की फिल्म ‘उड़ान’ में रोनित रॉय जब अपने किशोर बेटे से पूछता है, सेक्स-वेक्स किए हो कि नहीं तो हममें से अधिकतर दर्शक सहज तरीके से थिएटर में बैठे रहते हैं। ‘उड़ान’ बाप-बेटे के दिनों-दिन परिपक्व होते जा रहे संबंधों की बेरहमी से चीर-ज़ड़ करती है। बॉक्स ऑफिस आंड़ों पर नजर डालें तो साल 2010 में सबसे सफल फिल्में ए सर्टिफिकेट वाली ही थीं। इनमें निर्माता विशाल भारद्वाज की फिल्म इश्किया सबसे पहले रिलीज हुई थी। फिल्म के संवाद खुद विशाल ने लिखे थे। गालियों का जमकर प्रयोग किया गया था। फिल्म की पृष्ठभूमि फैजाबाद, गोरखपुर और भोपाल से जुड़ी थी। इस वजह से हिंदी भी खूब बोली गई थी। इसके ठीक बाद आई दिवाकर बनर्जी की फिल्म लव सेक्स और धोखा के पंजाबी मिक्स हिंदी के वन लाइनर्स और गालियां लोगों की जुबां पर छा गईं। फिल्म में दिवाकर के ही लिखे गानों ने भी खूब धूम मचाई। जिसमें तू गंदी अच्छी लगती है, तू नंगी अच्छी लगती है और लव सेक्स और धोखा डार्लिंग, सब सेक्स और धोखा प्रमुख रहे। यह वही दिवाकर बनर्जी थे जिनकी ‘खोसला का घोसला’ को डिस्ट्रीब्यटर्स ने खरीदने से इनकार कर दिया था। 26 नवंबर के आतंकी हमलों की आड़ में उनकी ओए लकीकी ओए’ कम चर्चा का शिकार होकर रह गई। हालांकि इस फिल्म को बाद में बेस्ट डायलॉग्स का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। इसमें भी जबर्दस्त संवाद लिखे गए थे। इनमें जिसका पता नहीं होता उसका पता नहीं होता काफी चर्चित रहा था। 

हिंदी संवादों की बात हो और प्रकाश झा की फिल्म राजनीति की चर्चा न हो, यह कैसे संभव हो सकता है। तीन घंटे से अधिक रन टाइम वाली इस फिल्म के सभी संवाद हिंदी में थे। इन दिनों हिंदी फिल्मों में गालियों के बिना संवादों की चर्चा बेमानी हो चली है। हां ये बात और है कि कुछ फिल्म मेकर्स हिंदी की बजाय अंग्रेजी में गालियों के प्रयोग को तवज्जों दे रहे हैं। संवादों की चर्चा के बिना निर्देशक मिलन लुथरिया की हालिया हिट फिल्म वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई को बिसारा नहीं जा सकता। फिल्म में शुरू से अंत तक एक के बाद एक भारी-भरकम संवाद थे। जिसमें क्लाइमेक्स सीन का संवाद दाऊद इब्राहीम को आधार बनाकर लिखा गया था कि वो मुंबई के बाहर बैठा मुंबई पर राज र रहा है। अभिषेक शर्मा की तेरे बिन लादेन’ भी अपने गीत ही इज ए गुड लुकिंग उल्लू दा पट्ठा के लिए खासी चर्चा बटोर ले गई। यह गाना ही नहीं, प्रतीक है हिंदी सिनेमा में हिंदी के साथ कैसे प्रयोग हो रहा है? 

चुलबुल पांडे की बदनाम मुन्नी ने बॉक्स ऑफिस पर साल की सबसे बड़ी ओपनिंग ली है। दिलीप शुक्ला और अभिनव सिंह कश्यप का लिखा एक संवाद बेहतरीन हिंदी का उदाहरण है अरे पांडे जी, याद आया कि भाभी जी कैसी हैं’, जवाब मिलता है, जीवित हैं सरकार इससे शुद्ध हिंदी का उदाहरण आपको खोजे से भी कई मीडिया माध्यमों में नहीं मिलेगा। हिंदी सिनेमा में संवादों ने न सिर्फ हिंदी को जीवित रखा है बल्कि लगातार इसका परिवर्धन कर रहे हैं। निर्देशक  मणिशंकर की आने वाली फिल्म नॉआउट का एक संवाद जल्द ही सिनेमाघरों में गूंजेगा, जब नेता के किरदार में गुलशन ग्रोवर कहेंगे पॉलीटिक्स से अच्छा कोई बिजनेस है? अगर है तो मैं उसे ही जॉइन र लेता हूं।

दुर्गेश सिंह

इकसवी सदी में फिल्म और इसकी सामाजिक प्रासांगिकता विषय पर शोध करने वाले दुर्गेश सिंह इन दिनों मुंबई में एक प्रतिष्ठित अखबार से जुड़े हुये हैं। पीआर आधारित फिल्मी पत्रकारिता से इतर हटकर वैज्ञानिक नजरियें से ये तथ्यों की पड़ताल करते हैं। कहानी लेखन के क्षेत्र में भी अपनी सृजनात्मक उर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनका संपर्क कोड है, फोन- 09987379151 09987379151

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One Comment

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