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bihar mahotsav delhi प्रसाद रत्नेश्वर के नेतृत्व में बिहार महोत्सव की टीम दिल्ली रवाना, विदा करने स्टेशन पहुंचे संस्कृति प्रेमी

संवादाता, मोतिहारी। bihar mahotsav delhi :


आगामी 20 जनवरी को दिल्ली के सरिता विहार में आयोजित बिहार महोत्सव प्रथम आयोजन-2003 के साथियों का ‘ सारथी सम्मान ‘ एवं अगले आयोजन के लिए तैयारी समिति की बैठक में भाग लेने मोतिहारी से एक टीम बुधवार को सप्तक्रांति ट्रेन से रवाना हो गयी। इस उत्साही टीम का नेतृत्व दिल्ली में बिहार महोत्सव के प्रणेता एवं संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के इज़ेडसीसी के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में सदस्य प्रसाद रत्नेश्वर कर रहे हैं।

नुक्कड़ नाटकों का आयोजन होगा

bihar mahotsav delhi श्री रत्नेश्वर ने इस मौके पर बताया कि 20 जनवरी के आयोजन के बाद बिहार महोत्सव की टीम दिल्ली के अलग- अलग हिस्सों में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से बिहारियों को अपनी गौरवशाली कला-संस्कृति पर गर्व करने, धरोहरों को सहेजने तथा आपस में एकजुट होने के लिए प्रेरित करेगी। इसके लिए मोहन कुमार गुप्ता, संजीव सेठ, नीरज कुमार, राकेश कुमार वर्मा, राममनोहर भूषण एवं रोहित कुमार गिरि की अगुआई में दलों का गठन कर लिया गया है। दिल्ली में बिहार महोत्सव का मार्च-अप्रैल में होने वाला मुख्य आयोजन राष्ट्रीय एकता और विश्व बंधुत्व की एक सांस्कृतिक पहल के रूप में प्रतिष्ठित होगा। उत्तर बिहार की सांस्कृतिक राजधानी चम्पारण अपनी राज्येतर गतिविधियों के चलते सुर्खियों में रहा है।

ये सदस्य रहे उपस्थित

bihar mahotsav delhi  टीम के सदस्यों एवं उन्हें समारोहपूर्वक विदा करने वाले उपस्थित संस्कृतिप्रेमियों में सुधांशु कुमार पाण्डेय, विनय कुमार, ओमप्रकाश सिंह, धीरज शर्मा, दीपक शर्मा, विकास तिवारी, आलोक कुमार, नितेश कुमार के नाम शामिल हैं। इस मौके पर बापूधाम मोतिहारी के स्टेशन अधीक्षक दिलीप कुमार भी उपस्थित थे।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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