नक्सलियों के निशाने पर सियासतदान

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छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर जिस तरह से नक्सलियों ने हमला कर करके करीब दो दर्जन लोगों को मौत के घाट उतार दिया है उससे संकेत मिलता है नक्सली अपनी स्ट्रेटजी में बदलाव लाने की ओर अग्रसर हैं। अब तक ये लोग मुख्यरूप से सुरक्षा बलों या फिर पुलिस के जवानों को टारगेट करते थे। हालांकि यदाकदा राजनीतिज्ञों पर भी हमले का रिकार्ड रहा है, लेकिन अब इनलोगों ने सीधे तौर पर सामूहिक रूप से  सियासतदानों की हत्या करने की रणनीति अपना ली है। सूबे में आगामी चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पूरी तरह से एक सियासी यात्रा थी, जिस पर नक्सलियों ने एक सोची समझी रणनीति के तहत कहर बरपाया है। मतलब साफ है कि अब नक्सली सियासी दलों के बीच खौफ पैदा करना चाहते हैं ताकि आने वाले दिनों में तमाम सियासी दल उनकी मुखालफत करने के पहले हजार बार सोचे। नक्सलियों के मनसूबे को भांपते हुये कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने भी अपनी प्रतिक्रिया में यह कहकर कि यह लोकतंत्र पर हमला है स्पष्ट संकेत दिया है कि इस तरह के हमलों को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मुस्तबिल में नक्सलियों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई में और भी तेजी आने की संभावना है और स्वाभाविक है इसकी प्रतिक्रिया भी उसी पैमाने पर होगी।
कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा को जिस तरह से 50 से अधिक गोलियां मारी गई उससे साफ पता चलता है कि उनको लेकर नक्सलियों के मन में अथाह गुस्सा था। महेंद्र कर्मा सलवा जुडूम के जरिये नक्सलियों से लंबे से जमीनी स्तर पर लोहा ले रहे थे। हालांकि बाद में इस संगठन पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। नक्सलियों पर चौतरफा हमला करने में इस संगठन ने अहम भूमिका निभाई थी। नक्सली इस संगठन से नफरत करते थे और इस संगठन के संस्थापक महेंद्र कर्मा पर कई मतर्बा हमला भी कर चुके थे। नक्सलियों का मानना था कि महेंद्र कर्मा आदिवासियों के बीच में फूट डालकर नक्सली आंदोलन को अंदर से तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। आखिरकार परिवर्तन यात्रा के दौरान महेंद्र कर्मा नक्सलियों के हत्थे चढ़ ही गये। जानकारी के मुताबिक कर्मा की हत्या करने के पहले नक्सलियों ने बर्बरता के साथ उनकी पिटाई की। जिस वक्त उनकी पिटाई हो रही थी उस वक्त सभी कांग्रेसी नेता खड़े होकर तमाशा देख रहे थे। कर्मा की पिटाई को देखकर उनके रोंगटे खड़े हो गये थे। नक्सलियों का इरादा अतिवादी कार्रवाई करते हुये पूरी तरह से नेताओं को भयभीत करने का था। महेंद्र कर्मा की हत्या करने के साथ -साथ उन लोगों ने पूर्व विधायक उदय मुदलियार और गोपी माधवानी को भी मार डाला। वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल को भी गोलियां मारी गई हालांकि अभी वह जिंदगी और मौत के जूझ रहे हैं।
नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला बस्तर जिले की जीरम घाटी के करीब किया है। यह इलाक दुर्गम है। नक्सली इस तरह के हमले की चेतावनी पिछले कुछ समय से दे रहे थे। इसके बावजूद उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। यहां तक परिवर्तन यात्रा में शामिल तमाम कांग्रेसी नेता भी इस मुगालते में जी रहे थे  कि नक्सली उनकी किसी राजनीतिक यात्रा पर हमला नहीं करेंगे। उनकी सीधी टक्कर पुलिस बल या फिर अर्द्धसैनिक बलों से है। यहां तक कि सूबे के मुख्यमंत्री रमन सिंह भी यही मान कर चल रहे थे कि नक्सली सामुहिक रूप से सियासतदानों पर हमला नहीं करेंगे। लेकिन अब नक्सलियों को लेकर इनका भ्रम पूरी तरह से टूट चुका है।    राज्य के नक्सलरोधी अभियान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मुकेश गुप्ता ने बताया कि करीब दो सौ से ढाई सौ की संख्या में हथियारों से लैस नक्सलियों ने इस यात्रा पर हमला बोल दिया और गोलीबारी शुरू कर दी। नक्सलियों को इस काफिले में शामिल लोगों के बारे में पूरी जानकारी थी। उन्हें ये भी पता था कि इस हमला का सीधा असर दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय पर पड़ेगा। इसके बावजूद उन लोगों ने इस घटना को अंजाम दिया। सूबे में कांग्रेस ने परिवर्तन यात्रा की शुरुआत 12 अप्रैल को की थी। इसका मुख्य उद्देश्य राज्य में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर लोगों को कांग्रेस के हक में गोलबंद करना था। इस परिवर्तन यात्र पर हमला करके एक तरह से नक्सलियों ने सूबे में कांग्रेस की चुनावी मुहिम बाधित करने की पूरी कोशिश की है।
जानकारों का कहना है कि पिछले कुछ अरसे से जिस तरह से छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है उससे नक्सलियों की पैठ आम लोगों के बीच कमजोर होती जा रही है। नक्सलियों को अपने संगठन में भर्ती करने के लिए नये रंगरुटों की भी कमी हो रही है। ये लोग अपनी खोई हुई जमीन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। अभी हाल में ही बीजापुर जिले के  के बासागुड़ा इलाके में हुई कथित मुठभेड़ के बाद पुलिस नें दावा किया था  कि उसने 17 नक्सलियों को मारा है। लेकिन वहां के स्थानीय लोग इसे फर्जी मुठभेड़ करार दे रहे थे। नक्सलियों द्वारा भी इस बात का जोर शोर से प्रचार किया जा रहा था कि इस मुठभेड़ मारे गये तमाम लोग निर्दोष थे। नक्सलियों के साथ इनका कोई संबंध नहीं था। बहरहाल मामला जो इस घटना के बाद से नक्सली आम लोगों के बीच में अपनी पैठ बनाने की जुगत में थे। परिवर्तन यात्र पर हमला करके उन्होंने आम लोगों के बीच में यह संदेश देने की कोशिश की है कि चुनाव से इस क्षेत्र की तस्वीर नहीं बदलने वाली है, क्योंकि नक्सलियों का प्रभाव आज भी इस क्षेत्र में बरकार है।
इस हत्या कांड के बाद छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग उठने लगी है। हालांकि घायलों को देखने के लिए रायपुर पहुंचे राहुल गांधी नेताओं से संयम बरतते हुये सूबे में राष्टÑपति शासन पर राजनीति न करने की सलाह दी है। जानकारों का कहना है कि यदि सूबे में राष्टÑपति शासन लगाने की कवायद होती है तो इसका फायदा नक्सलियों को ही मिलेगा। नक्सली लोगों को यह बात समझाने की कोशिश करेंगे उनकी मर्जी के खिलाफ कोई भी चुनी गई सरकार यहां सही तरीके से काम नहीं कर सकती है। फिलहाल केंद्र सरकार द्वारा स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए  छत्तीसगढ़ में कोबरा कमांडो समेत 600 से ज्यादा सीआपीएफ जवान भेजे गए हैं। ये जवान वहां पर सघन तलाशी अभियानी चलाकर उन नक्सलियों को हिरासत में लेने की कोशिश करेंगे जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया है। यदि इस तलाशी अभियान के दौरान आम लोग भी इसकी चपेट में आते हैं तो किसी को अश्चर्य नहीं होना चाहिए। और यदि ऐसा होता है तो नक्सली इसका फायदा उठाने की कोशिश जरूर करेंगे। सरकार के साथ-साथ जवानों को बदनाम करना हमेशा ही नक्सलियों के एजेंडे में शामिल रहा है। नक्सलियों से प्रभावशाली तरीके से निपटने के लिए लोगों का एतमाद हासिल करना जरूरी है। एक तरफा पुलिसिया कार्रवाई से नक्सलियों को शासन के खिलाफ झूठा प्रचार करने का अवसल मिलेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि नक्सली बंदूक के बल सत्ता पर काबिज होने की असफल कोशिश लंबे समय से कर रहे हैं। लेकिन इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए अब तक प्रत्यक्ष रूप से सियासतदानों को इन्होंने कभी निशाने पर नहीं लिया था। नक्सलियों के बदलते हुये रुख को देखकर तमाम सियासी दलों में नक्सलियों को लेकर नये सिरे से चिंतन मंथन का दौर शुरु हो गया है। नक्सलियों ने एक झटके में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा, बस्तर संभाग के प्रभारी व राजनांदगांव के पूर्व विधायक उदय मुदलियार, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके पुत्र दिनेश पटेल, स्थानीय कार्यकर्ता गोपी माधवानी समेत 17 कांग्रेसियों को मौत के घाट उतार कर सूबे में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व काही सफाया कर दिया है। नक्सलियों का यह कहर दूसरे दलों पर भी बरप सकता है। अब यह देखना रोचक होगा कि नक्सलियों की स्ट्रेटजी में आए इस बदलाव से सियासी दल कैसे निपटते हैं। अब तक स्थानीय राजनीतिज्ञ नक्सलियों के साथ गलबहियां करके ही चलने में अपनी भलाई समझते रहे हैं। कांग्रेस महासचिव ने राहुल गांधी ने यह कह कर सभी सियासी दलों को सचेत करने की कोशिश की है कि यह हमला सिर्फ कांग्रेस पर नहीं है बल्कि जनतंत्र पर है।

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