लिटरेचर लव

अच्छा लगता है….(कविता)

नलिन

तेरे संग दो पल बिताना अच्छा लगता है,

अब तो तन्हाई मेँ भी गुनगुनाना अच्छा लगता है।

यूँ तो, नीँद नहीँ आती है आजकल रातभर,

पर कभी सोते-सोते भी जाग जाना अच्छा लगता है।

 तेरे संग दो पल बिताना अच्छा लगता है….

 चाँदनी रात हो और हो तारो भरा अम्बर,

और दूर तक फैला हो शान्त समुन्दर।

तेरे-मेरे बीच अब ना रहे कोई अन्तर,

ऐसे मेँ तेरा बाँहोँ मेँ मेरी खो जाना अच्छा लगता है।

 तेरे संग दो पल बिताना अच्छा लगता है….

 खोता हूँ मैँ यादोँ मेँ जब,

तेरी कल की बातोँ मेँ जब।

सोचकर ख्यालोँ मेँ और बसाकर निग़ाहोँ मेँ तुझेँ,

भीँगीँ पलको संग मुस्कुराना अच्छा लगता है।

 तेरे संग दो पल बिताना अच्छा लगता है….

 मैँ क्योँ बाँटू आधा-आधा,

क्योँ तुझसे करुँ कोई वादा।

सब कुछ तेरा और तू है मेरी,

सब देकर तुझे तेरा हो जाना अच्छा लगता है।

 तेरे संग दो पल बिताना अच्छा लगता है….

अब तो तन्हाई मेँ भी गुनगुनाना अच्छा लगता है….

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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