अच्छा लगता है….(कविता)
तेरे संग दो पल बिताना अच्छा लगता है,
अब तो तन्हाई मेँ भी गुनगुनाना अच्छा लगता है।
यूँ तो, नीँद नहीँ आती है आजकल रातभर,
पर कभी सोते-सोते भी जाग जाना अच्छा लगता है।
तेरे संग दो पल बिताना अच्छा लगता है….
चाँदनी रात हो और हो तारो भरा अम्बर,
और दूर तक फैला हो शान्त समुन्दर।
तेरे-मेरे बीच अब ना रहे कोई अन्तर,
ऐसे मेँ तेरा बाँहोँ मेँ मेरी खो जाना अच्छा लगता है।
तेरे संग दो पल बिताना अच्छा लगता है….
खोता हूँ मैँ यादोँ मेँ जब,
तेरी कल की बातोँ मेँ जब।
सोचकर ख्यालोँ मेँ और बसाकर निग़ाहोँ मेँ तुझेँ,
भीँगीँ पलको संग मुस्कुराना अच्छा लगता है।
तेरे संग दो पल बिताना अच्छा लगता है….
मैँ क्योँ बाँटू आधा-आधा,
क्योँ तुझसे करुँ कोई वादा।
सब कुछ तेरा और तू है मेरी,
सब देकर तुझे तेरा हो जाना अच्छा लगता है।
तेरे संग दो पल बिताना अच्छा लगता है….
अब तो तन्हाई मेँ भी गुनगुनाना अच्छा लगता है….
wo mere bich nehi aye , mai unke bichme kyu ayun,unke subha aur samoka ekvi pal mai kyun payun.
Really a romantic poem. So nice.