इन्फोटेन

प्लेबैक सिंगर के के का गाया आखिरी गाना “ख़्वाब जीते ख़्वाब हारे” राजेश मंथन ने लिखा है

मथुरा से निकलकर मुंबई में लिरिक्स राइटर के तौर पर बनाई अपनी विशिष्ट पहचान

मुंबई नगरिया में रोज़ाना कितने ही सपनों के क़िले बनते है और ढहते हैं। लेकिन फिर भी बॉलीवुड के दीवाने सपने देखना नहीं छोड़ते, क्या करें सिनेमा का जादू ही कुछ ऐसा है। कहते हैं फ़िल्में समाज का आइना होती हैं और ये आइना गीत संगीत के बिना धुंधला ही लगता है इसलिए हिंदी फ़िल्मों में गीतों का तड़का लगना बहुत ज़रूरी हो जाता है।

आज हम हिंदी फिल्म जगत की ऐसी ही एक हस्ती के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि पेशे से गीतकार हैं। उनका नाम है राजेश मंथन। वैसे फ़िलहाल लोग इन्हें मंथन नाम से जानते हैं। इनका असल नाम तो राजेश ही है, अब चूंकि इनका पेन नेम मंथन है तो ये राजेश मंथन हो गए। मंथन, उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर से आते हैं। अलीगढ़ के अंतर्गत आने वाले गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज से इन्होंने स्नातक की परीक्षा पास की।


कॉलेज के ज़माने से इन्हें शेरो शायरी करने का शौक़ हो गया था। जब भी कोई प्रोग्राम आयोजित होता तो मंच पर इन्हें कविता पाठ करने को बुलाया जाता था। अपनी युवा अवस्था में ही कॉलेज के लड़के लड़कियों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हो गए थे। इसी दौरान इनकी रचनाएं हिंदुस्तान की अधिकांश पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी थीं। इनसे जब पूछा गया कि कविताएं और ग़ज़लें लिखते लिखते इन्हें बॉलीवुड में गीतकार बनने का चस्का कैसे लग गया ? तो राजेश मंथन ने बताया, बचपन से इन्हें रेडियो पर पुराने फिल्मी गीत सुनने का शौक़ था। गायक गायिकाओं और संगीतकारों के नाम के साथ ये अमूमन सभी गीतकारों के नाम से भी परिचित थे। फिर एक वक्त ऐसा भी आया जब इनके गीत भी रेडियो और टीवी पर आने लगे। वैसे निजी तौर पर इनका फ़िल्म गीतकार बनने का कोई इरादा नहीं था और ना ही इन्होंने कभी मुंबई आने का सोचा था।

कॉलेज से डिग्री लेने के बाद इनका इरादा सरकारी नौकरी करने का था। इन्होंने नौकरी के लिए कोशिशें भी की थीं लेकिन ये बेरोजगार ही रहे। फिर परिवार के दबाव के चलते लगभग बीस वर्ष पहले इन्होंने घर से बाहर निकलने का फैसला किया और इत्तेफ़ाक़ से मुंबई की ओर रवाना हो गए। मुंबई में कोई रिश्तेदार या परिचित तो था नहीं इनका इसलिए इन्हें फाके झेलने पड़े। फिर इधर उधर धक्के खाने के बाद मंथन जी को एक्टर राज बब्बर की पत्नी और प्रसिद्ध रंग कर्मी नादिरा बब्बर के पास असिस्टेंट राइटर की नौकरी मिल गई। वहां करने को कुछ क्रिएटिव काम नहीं था, वही लिखना होता था जो वो लिखवाती थीं। तकरीबन 6 महीने तक उनके पास नौकरी की लेकिन जल्द ही वहां से इनका मोह भंग हो गया और नौकरी छोड़ दी।

लेकिन तब तक इन्होंने इतने पैसे जोड़ लिए थे की आराम से एक साल तक बिना तकलीफ़ के स्ट्रगल कर सकते थे। चार बांग्ला में किराए पर छोटा सा एक घर लेकर गीतकार बनने के लिए संघर्ष करने लगे। फिल्म मेकर्स और म्यूज़िक डायरेक्टर्स से मिलना शुरू कर दिया। शुरुआत में कुछ टीवी सीरियलों के लिए लिए टाइटल सॉन्ग लिखे। जिनमें से एक्ट्रेस आशा पारेख द्वारा निर्मित और निर्देशित कुछ धारावाहिकों के लिए बैकग्राऊंड सोंग्स भी लिखे। लगभग सात या आठ सीरियल्स के लिए गीत लिखे लेकिन इस काम में ज़्यादा पैसे नहीं मिल रहे थे।

यह सिलसिला लगभग तीन साल तक चला, फिर इन्हें एक फिल्म “मोड़ द टर्निंग प्वाइंट” के सभी गीत लिखने का मौक़ा मिला। म्यूज़िक इंडस्ट्री के सभी नामचीन गायकों ने इनके लिखे गीतों को अपनी आवाज़ दी। जिनमें कुमार सानू, सुखविंदर सिंह, सुनिधि चौहान, श्रेया घोषाल, साधना सरगम, बाबुल सुप्रियो और उदित नारायण जैसे गायक उल्लेखनीय रहे। लेकिन दुर्भाग्य से इनकी ये फ़िल्म कंप्लीट होने के बावजूद रिलीज़ नहीं हो सकी। इसके अलावा साउथ के एक डायरेक्टर की जैकी श्रॉफ, राहुल देव, और रघुवरन अभिनीत फिल्म “बैंक” फिल्म के सभी गीत लिखे लेकिन ये भी रिलीज़ नहीं हो सकी। इनका संघर्ष थोड़ा और बढ़ गया।


मंथन फ़िल्म गीतकार बनने के प्रयास में जी जान से लगे हुए थे। तभी वर्ष 2009 में इन्हें हॉलीवुड और बॉलीवुड के प्रसिद्ध डायरेक्टर जगमोहन मूंदड़ा की फिल्म “चेज़” में एक गीत लिखने को मिला जिसे प्लेबैक सिंगर्स शान और श्रेया घोषाल ने गाया था। विजय वर्मा ने इनके गीत को संगीतबद्ध किया था। वैसे जगमोहन मूंदड़ा अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उन्होंने “मानसून, बवंडर, लास्ट कॉल , शूट ऑन साइट और ऐश्वर्या राय स्टारर फिल्म “प्रोवोक्ड” जैसी इंटरनेशनल फ़िल्मों से काफ़ी नाम कमा लिया। राजेश मंथन के लिए ये वाकई बड़ा अवसर था। सबसे अच्छी बात थी, उनकी ये फिल्म थिएटर्स में रिलीज़ हुई थी। यहां से मंथन फ़िल्म गीतकार के तौर पर बॉलीवुड में दस्तक दे चुके थे।

चेज़ फ़िल्म के बाद मंथन ने बॉबी देओल और मुग्धा गोडसे की हॉरर फ़िल्म “हेल्प,” लारा दत्ता और विनय पाठक की फिल्म “चलो दिल्ली” , सुखविंदर सिंह की फिल्म “कुछ करिए”, बस एक तमन्ना, जॉन अब्राहम की फ़िल्म “आई मी और मैं” मिथुन चक्रवर्ती सुनील शेट्टी स्टारर फिल्म “एनिमी” और नील नितिन मुकेश की फ़िल्म “दशहरा ” के लिए गीत लिखे। यहां से मंथन जी को गीतकार के तौर पर पहचान मिलनी शुरू हो चुकी थी। गाने भी पॉपुलर होने लगे थे। राजेश मंथन अब तक लगभग 25 फ़िल्मों और 40 म्यूजिक वीडियोस के लिए 100 से ज़्यादा गीत लिख चुके हैं।

फिल्म “चलो दिल्ली” का टाइटल सॉन्ग, इसी फिल्म का एक और गीत “लैला ओ लैला”, एनिमी फिल्म का “भीगे नैना”, आई मी और मैं फिल्म का “मेरी जानिए” इश्क़ के परिंदे फिल्म का “दिल तोड़के जाने वाले” दशहरा फिल्म के माई रे, जोगनिया, और “हुआ शंखनाद, टाइम टू डांस फिल्म का ” हाथों से यूं” इनके लोकप्रिय गीत हैं।
वहीं दूसरी तरफ़ सारेगामा म्यूजिक कंपनी के सिंगल्स के लिए गौरावदास गुप्ता के संगीत निर्देशन में “रेशम का रूमाल” हाय हाय ये मजबूरी, सैया दिल में आना रे मंथन जी के लेटेस्ट हिट गीत हैं।
शान के गाए “मजबूर हो गए” “हुकुस बुकुस” और सुनिधि चौहान का गाया “ये रंजिशें ” भी काफ़ी सराहे गए।

साल 2022 में मंथन को एक्ट्रेस विद्या बालन के हाथों से सोनू निगम के गाए फौजी कॉलिंग फिल्म के लिए लिखे इनके गीत “भीनी भीनी सी” के लिए इंडियन म्युजिक इंडस्ट्री का प्रतिष्ठित पुरस्कार मिर्ची म्यूज़िक अवार्ड मिल चुका है।

18 अक्टूबर 2024 को इनकी फिल्म “क्रिस्पी रिश्ते” जियो ओटीटी पर रिलीज़ हो रही है। इस फिल्म में इनके तीन गीत हैं।

इनका एक गीत ” ख़्वाब जीते ख़्वाब हारे” प्लेबैक सिंगर केके ने गाया है। हालांकि केके अब इस दुनिया में नहीं हैं । दो तीन साल पहले कोलकाता में एक म्यूजिक कॉन्सर्ट के दौरान दम घुटने से उनका देहांत हो चुका है। मंथन का लिखा ये गीत ही केके की ज़िन्दगी का आख़िरी गीत साबित होगा। ये सभी गाने जल्द ही हंगामा म्यूज़िक पर सुने और देखे जा सकते हैं।
राजेश मंथन अपना एक यूट्यूब चैनल भी चलाते हैं जहां ये नवोदित गीतकारों और शायरों को लेखन से संबंधित जानकारियां देते हैं। विंटेज हिंदी सिनेमा को लेकर भी विडियोज बनाते हैं।

 

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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