जूता संस्कृति को जूता मारो
नीतू नवगीत, पटना
सामंती मानसिकता वाले लोग सदियों से अबलों और दलितों को जूता मारते आये हैं । इसे उन्होंने अपना अधिकार समझा और जूता बनाने वाले लोगों ने जूता खाने को मालिक की कृपा के तौर पर देखा । तब किसे पता था कि यही जूता सारी दुनिया में एक दिन दमित इच्छाओं की अभिव्यक्ति के अंतिम हथियार के रूप में अपनी पहचान बनायेगा । लेकिन इराक की राजधानी बगदाद में 14 दिसंबर 2008 को मुंतधर अल्-जैदी द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के ऊपर दनादन दो जूते फेंकने की घटना के बाद जूता अबलों के साथ-साथ पढ़े-लिखे लोगों का भी हथियार बन गया । फरवरी 2009 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के एक छात्र ने चीनी प्रधानमंत्री वेन-जिबाओ के ऊपर जूता फेंका तो 7 अप्रैल 2009 को दिल्ली के पत्रकार जरनैल सिंह ने भारत के गृहमंत्री पी. चिदंबरम की ओर जूता उछालकर भावाभिव्यक्ति की कि वह सिक्खों के उपर जुल्म करने वाले लोगों को बचाने वाली पार्टी का विरोध करते हैं । पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर तो अलग-अलग कारणों से अलग-अलग स्थानों पर दो बाद जूते फेंके गये । पिछले हफ्ते टीम अन्ना के सदस्यों पर भी जूते फेंके गये और अब ताजा उदाहरण देहरादून का है जहां कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी की जनसभा में कुलदीप सिंह ने उनपर जूता उछाल दिया । जूता उछालने वाला चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा था कि कांग्रेस भ्रष्टाचार की जननी है और वह बड़े बाबा का भक्त है। जार्ज बुश पर जूता फेंकने वाले इराकी पत्रकार मुंतधर अल्जैदी ने भी खुद को महात्मा गांधी का अनुयायी बताया है । उन्होंने अपनी पुस्तक द लास्ट सैल्यूट टू प्रेसीडेंट में यह भी कहा है कि भारत के लोगों को यह जानना चाहिए कि इराक की जनता के साथ क्या हो रहा है । भारत के लोग जिन परिस्थितियों में गांधीजी के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार से लड़े थे, वैसी ही लड़ाई इराकी जनता भी लड़ रही है । लेकिन हर कोई गांधी नहीं हो सकता । जिन पर जूता फेंका जाता है, वह अपने को महान बनाने की कवायद में जुट जाते हैं । अमेरिकी राष्ट्रपति ने जूता फेंके जाने के बाद कहा था कि वह इराकी व्यवस्था से दुखी नहीं है । उन्हें विश्वास है कि एक स्वतंत्र समाज विकसित हो रहा है जो कि अंतराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है । पी. चिदंबरम ने भी जूता खाने के बाद कहा था कि उनके मन में जूता फेंकने वाले के प्रति किसी प्रकार का गलत भाव नहीं है । राहुल गांधी की सभा में जूता चलने के बाद जब कांग्रेसियों ने जूता फेंकने वाले की पिटाई शुरू कर दी तो इस पर राहुल ने कहा कि उसे मारो मत उसे छोड़ दो ।
जार्ज बुश पर जूता फेंकने वाले शख्स ने भले ही जेल में नौ महीने बीताये पर वह इराकी जनता के बीच एक नायक के तौर पर उभरा । उसने जिस जूता कंपनी का जूता जार्ज बुश पर फेंका था उसकी मांग भी काफी बढ़ गई थी लेकिन उसके बाद जिस किसी ने भी किसी राजनेता की सभा या प्रेस कांफ्रेंस में जूता फेंका, उसे भले ही तात्कालिक प्रचार मिल गया हो परंतु उस उद्देश्य की पूर्ति कभी नहीं हुई जिसकी खातिर जूते उछाले गये । वस्तुतः पिछले दो सालों में जिस तरह से चर्चित व्यक्तियों की सभाओं में जूते फेंकने की घटनाये हुई हैं उन्हें ओछी हरकत ही करार दिया जा सकता है । इस तरह से जूता दिखाना या जूता मारना यदि दबंगों के लिए सही नहीं था तो फिर तथाकथित असहाय और व्यथित लोगों के लिए भी जूता एक अच्छा हथियार नहीं हो सकता । एक लोकतांत्रिक देश में नागरिकों के पास सबसे सशक्त हथियार वोट का होता है जिसका सही प्रयोग करके जनता अपनी और अपने देश की किस्मत को बदल सकती है ।
उसने जिस जूता कंपनी का जूता जार्ज बुश पर फेंका था उसकी मांग भी काफी बढ़ गई थी
यह बताता है नकली आंदोलनों का या छद्म क्रांतियों का लाभ कैसे उठाया जा सकता है!