मानसिक रूप से ठहर गये हैं बड़बोले बाबा रामदेव
भ्रष्टाचार को लेकर बाबा रामदेव लंबे समय से लोगों के बीच अलख जगाने में
लगे हैं। स्वाभिमान भारत मंच के तहत उन्होंने हर स्तर पर लोगों से
भ्रष्चार को लेकर कम्युनिकेट भी किया है। अब वे चार जून से दिल्ली में
सत्याग्रह करने के मूड में है। सत्याग्रह छेड़ने से पहले वे यह भी दावा
कर रहे हैं कि देश के कोने-कोने में भ्रष्टाचार को लेकर लोग उनके साथ
सत्याग्रह करेंगे। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी को माता की उपाधि देने
वाले बाबा रामदेव का अब तक रुख कांग्रेस विरोधी ही रहा है। अब देखना है
कांग्रेस बाबा रामदेव को लेकर क्या रणनीति अपनाती है। वैसे जिस तरह से
कांग्रेस ने अन्ना हजारे के आंदोलन की संवैधानिक तरीके से हवा निकाल दी
उसे देखते हुये कहा जा सकता है कि बाबा रामदेव के सत्याग्रह का इस्तेमाल
भी वो अपने तरीके से कर ले जाएगी।
बाबा रामदेव योग के अच्छे जानकार हैं, इसमें शक की कोई गुंजाईश नहीं है।
देशभर में उनकी लोकप्रियता की प्रमुख वजह योग ही है। बाबा रामदेव ने
लोगों को प्रैक्टिल स्तर पर योग करने के लिए प्रेरित किया। भारत के लोगों
में वैसे भी साधु संतों के लिए श्रद्धा का भाव रहता है। बाबा रामदेव के
गेरुआ वस्त्र की ओर भी लोग अच्छी खासी संख्या में आकर्षित हुये। शुरुआती
दौर में बाबा रामदेव सिर्फ योग पर केंद्रित थे। बाद के दिनों वे राजीव
दीक्षित से प्रभावित हुये और उनके पर कांग्रेस विरोधी रंग चढ़ता गया।
भ्रष्टाचार और कालेधन के मुद्दे क बाबा रामदेव ने जोर से पकड़ा और इसमें
योग का तड़का मिलाते रहे। भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं को फांसी पर
चढ़ाने तक की बात करते रहे।
राजीव दीक्षित से बाबा रामदेव को एक नया नजरिया मिला था। राजीव दीक्षित
के समय बाबा रामदेव के भाषणों में ओज और संतुलन हुआ हुआ करता था, जबकि
उसके पहले वे किसी भटके हुये नजर आते थे। राजीव दीक्षित की मौत के बाद
बाबा रामदेव मानसिक रूप से ठहर से गये है जिसका साफ मतलब है कि बाबा राम
देव के अंदर दूर तक सोच पाने की क्षमता नहीं है। अब वैचारिक बिखराव बाबा
रामदेव में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वे उन्हीं तथ्यों को दोहरा
रहे हैं, जो राजीव दीक्षित द्वारा दिये गये हैं। उनके समर्थकों की संख्या
अच्छी खासी है, जो खासतौर से योग की वजह से है। राजनीतिक सोच के साथ
सक्रिय कार्यकर्ताओं और समर्थकों की आज भी उनके पास कमी है।
बोफोर्स तौप सौदे को प्रतीक की तरह इस्तेमाल करते हुये भ्रष्टाचार के
मुद्दा को वीपी सिंह ने भी जोर शोर से उठाया था। उस वक्त आम जनता ने
स्वस्फूर्त रूप से वीपी सिंह के साथ हो गई थी। यहां तक की राजीव गांधी के
नेतृत्व में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। यह देश का
दुर्भाग्य रहा है कि भ्रष्टाचार से फिर भी इसे निजात नहीं मिला। मुद्दे
बदलते गये, आरक्षण, राममंदिर जैसे मुद्दों ने भ्रष्चाचार को नेपथ्य में
धकेल दिया। अन्ना हजारे ने जब लोकपाल बिल को लेकर आंदोलन छेड़ा तो
भ्रष्चाचार से त्रस्त लोगों की उम्मीद एक फिर जागने लगी, लेकिन शांति
भूषण और प्रशांत भूषण को जिस तरह से कमिटी में शामिल किया उसे देखकर फिर
लोग निराश हो गये। वैसे लोकपाल विधेयक का ड्रामा अभी भी जारी है। इन
दोनों के खिलाफ बाबा रामदेव ने भी उंगली उठाई थी लेकिन बाद में दबाव में
आकर चुपी साध ली।
अब बाबा रामदेव अकेले भ्रष्टाचार और काले धन को लेकर झंडा उठाने चले हैं।
बाबा राम देव आत्ममुग्धता के शिकार हैं। योग के दौरान उन्हें यह कहते
हुये अक्सर सुना जाता है कि अमेरिका जैसे देश में धनाठ्य महिलायें
उन्हें शादी करने को कहती है। इसके अलावा टीवी शो में भी सेक्स बम की छवि
वाली महिलाओं के साथ तकरार करने में मजा आता है। अब ये देखना दिलचस्प
होगा कि बड़बोले बाबा रामदेव का यह आंदोलन क्या चमत्कार दिखाता है। इस
तरह के आंदोलनों का इस्तेमाल करने में कांग्रेस माहिर है। पर्दे के पीछे
क्या खिचड़ी पकती है, कह पाना मुश्किल है। वैसे कई कांग्रेसी नेता अभी से
इस आंदोलन को लेकर सक्रिय हो गये है।
मैं दावा करता हूँ कि बाबा का यह अनशन का फैसला सौ प्रतिशत मूर्खतापूर्ण है और यह असफल तो होगा ही और इससे कोई लाभ नहीं होगा। राजीव दीक्षित के साथ बैठकर उनकी बातों पर अपनी टिप्पणी देते रहने भर से बाबा की अपनी सोच नहीं बन पायी है। यह बात बाबा को समझ में न तो आ रही लगती है और न कोई उन्हें सही रास्ता बताने वाला है। ऐसा लगता है कि भारत में सिर्फ अविकसित मानसिकता वाले लोग ही हर विचार के बाद बचते आए हैं। भगतसिंह गए, कोई पैदा नहीं हुआ। सुभाष चन्द्र बोस गए, कोई पैदा नहीं हुआ, अभूतपूर्व गाँधी गए, कोई पैदा नहीं हुआ फिर अब राजीव दीक्षित गए और उनका आंदोलन भी उसी पुराने रास्ते पर चल पड़ा है।
भारत में गाँधी जी ने सत्याग्रह और हड़ताल क्या शुरु कर दिया सभी पागलों को यह हथियार की तरह ही लगा और जब चाहें कहीं सत्याग्रह और कहीं हड़ताल जैसी चीजें शुरु कर देते हैं। बाबा के दिमाग पर अभी अस्थायी सनक सवार है। उसे उतरने में या उसमें डूब जाने में कुछ ही समय लगेगा।
लेकिन ऐसा लग रहा है कि अभी भारत में निरंकुश शासन है और जनता घोंचू की तरह पड़ी हुई है। और एक रास्ता थोड़ा-थोड़ा अच्छा दिख रहा था वह भी बंद हो जाएगा। यह भारत स्वाभिमान शुरु तो हुआ किसी अन्य संगठन की तुलना में हजार गुनी तेज गति से लेकिन अब यह कहाँ जाएगा, यह अंधेरे में है। भारत में या किसी भी देश में जब तक जनता की आँख नहीं खुलती तब तक क्रान्ति दिमाग और दिल में दिखती है। अब पता नहीं भारत में कोई ऐसा पैदा होगा भी या नहीं जो गाँधी की तरह जन आंदोलन को साकार करेगा।
………और अन्त में बाबा भी गए ऐसा लगता है। वैसे बाबा का अपना काम चल जाएगा।