लाइफलाइन वेंटिलेटर पर, कैसे मनाएं राज्योत्सव ?
बस्तर। राज्योत्सव मनाने की तैयारियां जोर-जोर से चल रही हैं। छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस पर राज्य भर में उत्सव मनाया जाएगा । उत्सव मनाना भी चाहिए। 23 वर्षों पूर्व जब एक नवम्बर को नया राज्य बना तब बस्तरवासी पुलकित हो उठे थे। क्यों ना हो नया राज्य जो बना था ! लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गये, वैसे-वैसे जनता की आंखें भी खुलती गई। विकास के नाम पर नये राज्य वाली सरकार बस्तर में नक्सली समस्या का ढोल पीटने में मशगूल हो गई । यातायात की समस्या से जूझ रहे बस्तरवासियो की पीड़ा जानने की किसी को फुर्सत नहीं ? धन्य है हमारे बस्तर के नेता !
सर्पीली केशकाल घाटी में आये दिन सैकड़ो यात्री फंसते रहते हैं। ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब घाट में भीषण जाम ना लगा रहता हो। दरअसल दस मोड़ वाले केशकाल घाट में नौ किलोमीटर का सफर अब बस्तरवासियों को रूलाने लगा है। ऐसा लगता था राज्य विभाजन के पूर्व मध्यप्रदेश में बस्तर की आवाज राजधानी भोपाल तक ठीक से पहुंच नहीं पाती थी। नया राज्य बनने के बाद राजधानी और बस्तर के बीच का फासला काफी घट गया है। लगा नए राज्य में कम से कम केशकाल घाट की समस्या से जनता को निजात मिल जाएगी। लेकिन केशकाल घाट मरम्मत को मोहताज हो गया। जगदलपुर – राव घाट- रेलमार्ग निर्माण के सपने में खलल क्या पड़ा जगह-जगह फोरलेन निर्माण के पोस्टर लगाये जाने लगे।
प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष किरण सिंह देव बस्तर निवासी हैं। चुनाव भले ही हार गए हो किंतु कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज भी बस्तरिया हैं। इसके बावजूद केशकाल घाट में होने वाले बाईपास निर्माण पर दोनों पार्टी के नेता रहस्यमयी चुप्पी साधे हुए है। सच्चाई तो यह है कि केशकाल घाट के जाम में फंसे रहने वाले गंभीर किस्म के मरीज, यात्री बसों की सीटों में खामोश दुबकी महिलाओं तक को अब बरबस स्वर्गीय बलिराम कश्यप एवं महेंद्र कर्मा जैसे नेता याद आने लगे हैं। काश, महेंद्र कर्मा या बलिराम कश्यप फिर से जीवित हो उठते ?
राज्य बने 23 वर्ष गुजर गए किंतु केशकाल घाट की 9 किलोमीटर लंबी सड़क तक ठीक से नहीं बन पाई! यह कैसा विकास है ? बस्तर विकास के इस माडॅल पर सार्वजनिक रूप से बहस होनी चाहिए। लिखने का गर्ज यह की बस्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग-30 पर पडने वाला केशकाल घाट बस्तर वासियों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं। बस्तर के लिए रसद से लेकर तमाम जरूरत की वस्तुएं इसी मार्ग से पहुंचती हैं। फलतः इस मार्ग को राज्य में लाइफ लाइन की उपमा मिली हुई है। लेकिन चिंता की बात यह है कि सरकार और जनता के नुमाईनंदे उक्त लाइफ लाइन को वेंटिलेटर पर छोड़ रखा है। ऐसे में जनता राज्योत्सव का लुफ्त उठाये तो उठाये कैसे ?
राजेंद्र कुमार तिवारी, (अध्यक्ष)
आंचलिक समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, बस्तर (छत्तीसगढ़)