वाइमर रिपब्लिक और मोदी
जर्मनी के वाइमर रिपब्लिक को दुनिया का सबसे मजबूत रिपब्लिक माना जाता था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यह अस्तित्व में आया था। राष्ट्रवाद को सर्वोपरि मानने वाला एडॉल्फ हिटलर शुरु से ही वाइमर रिपब्लिक से नफरत करता था। संसदीय परंपरा में उसे जरा भी यकीन नहीं था। वह कहा करता था कि सांसदों के दिमाग को बंदूक के बट से ही ठीक किया जा सकता है। जर्मनी की सत्ता पर काबिज होने के बाद उसने वाइमर रिपब्लिक को पूरी तरह से मटियामेट करके जर्मनी को सैनिक तंत्र के रास्ते पर धकेल दिया। इस सैनिक व्यवस्था में हिटलर सर्वोपरि था। दिल्ली पर काबिज होने के बाद पीएम मोदी भी इसी रास्ते पर चलते हुये दिख रहे हैं। मोदी के एक साल के कार्यकाल में मंत्रियों तक की स्थिति कमजोर हुई है। मंत्री यस मैन होकर रह गये हैं। मंत्रियों पर उन अधिकारियों को हावी कर दिया है जो गुजरात के दिनों से ही पीएम मोदी के चहेते रहे हैं और मोदी के हर इशारे को समझते हैं। खबर तो यहां तक आ रही है कि मंत्री लोग भी इन अधिकारियों से भयभीत हैं। उन्हें यहां तक कहा जा रहा है कि अपने प्राइवेट पीए के लिए वे आरएसएस से जुड़े लोगों का ही इस्तेमाल करें। मंत्रियों पर पहले से ही कड़ी नजर रखी जा रही है, और अब साथ में आरएसएस से जुड़ें लोगों को प्राइवेट सचिव रखने के अघोषित फरमान से साफ हो रहा है कि मोदी सरकार को अपने जीते हुये सांसदों और मंत्रियों पर भी यकीन नहीं है। मोदी की नजरों में विश्वसनीय होने के लिए आरएसएस से जुड़ा होना जरूरी है। आरएसएस के सहारे पीएम मोदी देश में अघोषित रूप से एक सैनिक तंत्र को विकसित कर रहे हैं। संवैधानिक पदों पर भी ऐसे लोगों को बैठाया जा रहा है जिनका जुड़ाव आरएसएस से है।
गिरीराज सिंह जैसे मंत्री का जिनका संबंध आरएसएस से है सार्जनिक सभाओं में विपक्ष के नेताओं को सियार बता रहे हैं। इसी से समझा जा सकता है कि संसदीय परंपरा और संसदीय प्रणाली की उन्हें कितनी समझ है या फिर इसमें कितना यकीन करते हैं। इस तरह की बातें करके वह विगत में भी अपनी कुंद बुद्धि का कई बार परिचय दे चुके हैं। पीएम मोदी की सत्ता प्रणाली में ऐसे ही लोग सटीक बैठते हैं। ऐसे लोगों के सहारे ही डेमोक्रेसी में विरोध के स्वर को सियारों की आवाज करार देने की मानसिकता से मोदी सरकार लबरेज है। नये शासन प्रणाली में गिरीराज सिंह जैसे लोगों की ज्यादा जरूरत है, जो कभी सवाल न पूछे और विपक्ष पर ऊंची आवाज में हल्ला बोले।
विपक्ष की आवाज को सियारों की आवाज घोषित करने के बाद गिरीराज सिंह बार-बार उन्हें गोबेल भी कह रहे थे। गोबेल हिटलर का प्रचार मंत्री था। कहा करता था एक झूठ को यदि सौ बार दोहराओ तो वह सच हो जाता है। गोबेल की तरह राष्ट्रवाद का एकतरफा इस्तेमाल आरएसएस की फितरत है। जो हिन्दू एजेंडो के खिलाफ है वह गैर राष्ट्रवादी है गद्दार है। अब इसे थोड़ा सा और परिष्कृत कर दिया गया है, जो पीएम मोदी के खिलाफ है वह गैर राष्ट्रवादी है, गद्दार है. सियार है, गोबेल है। इसका सीधा मतलब है मोदी के राज में नमो नमो जपो। ठीक वैसे ही जैसे पूरा जर्मनी वाइमर रिपब्लिक के खात्मे के बाद हेल हिटलर जपने लगा था। यदि हिन्दुस्तान और यहां के संविधान को मोदी सरकार से खतरा नहीं भी है तो, इतना तो साफ पता चल रहा है कि कार्य प्रणाली में तब्दीली हुई है, वन मैन बैंड की बात तो विदेशी मीडिया भी कर रही है। इंग्लैंड की पत्रिका दि इकॉनोमिस्ट ने लिखा है कि भारत की मोदी सरकार वन मैन बैंड की तरह है।
जर्मनी में हिटलर के उत्थान में पूंजीपत्तियों की अहम भूमिका थी। हिटलर जर्मनी में नस्लीय नफरत फैलाने के साथ-साथ पूंजीपत्तियों का विश्वास भी हासिल कर रहा था। पूंजीपत्तियों को यकीन था कि हिटलर का राष्ट्रवाद उन्हें और पूंजी बनाने के मौका देगा। मोदी को भी देश के पूंजीपत्तियों का जबरदस्त समर्थन मिला है। खासकर गुजरात के पूंजीपति तो पुरी तरह से मोदी के साथ हैं और मोदी भी उन्हें अधिक से अधिक कमाई के लिए भरपूर मौका मुहैया कराने में जुटे हैं। पूंजीपत्तियों के इशारे पर विकास के नाम पर देश के किसानों की जमीन छिनने की तैयारी की जा रही है। किसान लामबंद होकर मोदी सरकार के इस कदम का जोरदार विरोध कर रहे हैं, बावजूद इसके सरकार भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर अड़ी हुई है। बेबाक जुबान में कहा जा सकता है कि मोदी सरकार पूंजीपत्तियों के हक में किसानों को जमीन से बेदखल करने के लिए कमर कसे हुये है। इस विधेयक का विरोध करने वालों को मोदी सरकार के मंत्री सियार कह रहे हैं। इतना ही नहीं आरएसएस के लोगों को जमीन अधिग्रहण के मामले में खासतौर पर गुमराह करने के लिए लगाया गया है।
जर्मनी में हिटलर के सत्ता में आने के बाद से वहां नस्लीय हिंसा की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई थी। मोदी के सत्ता में आने के बाद से अपने देश में भी नस्लीय हिंसा की घटना में बढ़ोतरी हुई है। दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में चर्च पर हमले हुए हैं। अब तो यह खबर भी आ रही है कि कंपनियों में मुसलमानों को सिर्फ उनके धर्म की वजह से ऊंचे पदों पर नौकरी नहीं दी जा रही है। देश में मोदी मेक इन इंडिया का नारा बुलंद कर रहे हैं लेकिन मेक इन इंडिया करने वाली कंपनियों के ऊंचे पदों पर मुसलमानों के लिए नौकरी नहीं है। मतलब साफ है कि अंदरखाते व्यवस्थित तरीके से ऐसे एजेंडों को आगे बढ़ाया जा रहा है जो देश के लिए खतरनाक है।