आम आदमी का संविधान

निर्भय देवयांश

एक आदमी जिसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं
आखिर यही आदमी सबसे अधिक चिंता क्यों करता है
हमलोगों के बारे में, देश दुनिया के बारे में
खोजता है इंसानियत को घास-फूस में
पेड़ पौधे कटने से यह चिल्लाता है
आधी रात को दंगा-फसाद की अफवाह से डरता है
भगवान ने इसे इतना लाचार क्यों बनाया ?
आखिर कब तक यह सोचेगा ?
इसे पता नहीं है लोकतंत्र की परिभाषा
धर्म निरपेक्षता से तो चिढ़ता है यह
यह आदमी आज भी जी रहा है
आदिवासी तरह
विकास से कोसो दूर
रहने वालों को पता नहीं है
संविधान की किस धारा में
उसे जीवन जीने का मौलिक अधिकार मिला है।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here