इंदिरा आवास योजना में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोहा लेता गरीबन दास

0
39

बिहार में इंदिरा आवास योजना में जबरदस्त धांधली हो रही है। मुखिया और पंचायत सचिव इंदिरा आवास योजना की राशि को पूरी तरह से गड़प कर रहे हैं और इनके खिलाफ शिकायत करने वालों को सरेआम पीटा जा रहा है। सूबे के कई गांवों में तो मुखिया और पंचायत सचिव के डर से लोग अपना मुंह तक खोलने के लिए तैयार नहीं है। सुशासन में न्याय की गुहार लगाना गुनाह माना जा रहा है। यहां तक कि मुख्यमंत्री दरबार में भी न्याय की मांग करने वालों को जलील किया जा रहा है। एक और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सेवा यात्रा करके लोगों तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर बिहार सरकार के तमाम बड़े ओहदेकार लोगों को डरा-धमकाकर मुख्यमंत्री के जनता दरबार से दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं। ताजा उदाहरण है गरीबनदास का।

समस्तीपुर जिले के हरपुरबोचहा गांव के रहने वाले गरीबन दास लंबे समय से इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत अपने लिए एक अदद घर पाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वहां के मुखिया प्रेमशंकर सिंह और पंचायत सचिव ने इनका जीना मुहाल कर रखा है। इंदिरा आवास में हो रहे घोटाले के खिलाफ जब इन्होंने आवाज बुलंद की तो इन्हें स्थानीय गुंडों से जमकर पिटवाया गया। इस संबंध में जब शिकायत करने के लिए वह विद्यापति नगर थाने में गये तो वहां  भी उन्हें धमकाया गया। इसके साथ ही पुलिस ने किसी के भी खिलाफ रिपोर्ट लिखने से इन्कार कर दिया। काफी भागदौड़ करने के बाद वह थाने में मामला दर्ज कराने में सफल रहे। इसके बाद उन्हें लगातार जान से मारने की धमकी मिलती रही।

गरीबन दास का कहना है कि मुखिया प्रेमशंकर सिंह और पंचायत सचिव फर्जी लोगों के नाम पर इंदिरा आवास का राशि निकाल रहे हैं। कई लोगों को आवास बनाने के नाम पर रकम मिल चुका है लेकिन वे लोग आवास नहीं बना रहे हैं। सारे पैसों का बंदरबाट हो चुका है। इस संबंध में गरीबनदास ने जब आरटीआई दाखिल करके दलसिंहसराय अनुमंडल पदाधिकारी से जानकारी मांगी तो पहले तो उन्हें टालने की कोशिश की गई, लेकिन अपनी जिद पर अड़े रहने की वजह से उन्हें आधी अधूरी जानकारी उपलब्ध करा दी गई, वह भी काफी भागदौड़ करने के बाद। यह तो एक बानगी मात्र है। अमूमन बिहार के सभी जिलों में इंदिरा आवास के तहत निर्धन परिवार के लोगों को दी राशि को व्यवस्थित तरीके से गड़पने का अभियान चल रहा है। मुखिया और पंचायत पदाधिकारी इसे कमाई का एक प्रमुख जरिया मान बैठे हैं। पूरा तंत्र इसी में लिपटा हुआ है।

इंदिरा गांधी आवास परियोजना में हो रही धांधली की खबरें कोई नई बात नहीं है। दूर दराज के जिलों में तो स्थिति और भी बदतर है। मिली जानकारी के मुताबिक मुखिया ऐसे लोगों को रकम दिलाने की पहल कर रहे हैं जो मुखिया का जेब भरने में सक्षम है। इस परियोजना से जुड़े पदाधिकारी भी ऐसे मुखिया को प्रोत्साहित करन में लगे हुये हैं क्योंकि निकासी की गई राशि का एक बड़ा हिस्सा उनकी जेब में भी आता है। कोशिश तो यही होती है कि धांधली से संबंधित कोई भी मामला थाने तक नहीं पहुंचे, यदि कभी कोई व्यक्ति थाना पहुंचता भी तो उसे इस तरह से प्रताड़ित किया जाता है कि वह थाने का रास्ता ही भूल जाता है। सबकुछ खामोशी के साथ हो रहा है।

मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी इस तरह के मामलों को नहीं पहुंचने दिया जाता है। पूरे तंत्र को अंदर से ही मड़ोड़ दिया गया है, ताकि इस तरह कोई भी मामला प्रकाश में नहीं आ सके। सूबे में एक भी ऐसा जिला नहीं है जहां इंदिरा आवास योजना की रकम की लूट खसोट नहीं हो रही है। गरीबन दास जैसे लोगों को दरकिनारा करने के लिए पूरा तंत्र खड़ा है। लोग अब यहां तक कहने लगे हैं कि नीतीश कुमार के सुशासन में गरीबों के लिए कोई जगह नहीं है। जिस तरह से नीतीश कुमार ने अधिकारियों को बे-लगाम छोड़ दिया है उससे तो यही लगता है कि बिहार में पूरी तरह से अफसरशाही हावी है। कायदे कानून को अपने हक में तोड़ मड़ोड़ करने में इन अधिकारियों को महारत हासिल है। कुछ लोग तो लालू के शासन की भी दुहाई देते हुये कहने लगे हैं कि कम से कम लालू के समय अधिकारियों के ऊपर नेताओं का लगाम रहता था। यहां तक कि छुटभैये नेताओं से भी अधिकारी थरथर कांपते थे। किसी भी तरह की गड़बड़ी होने की स्थिति में अधिकारियों के खिलाफ धरना प्रदर्शन आम बात थी। लेकिन सुशासन में अधिकारियों के दिन बदल गये हैं। इतना ही नहीं जब से नीतीश कुमार ने भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुहिम छेड़ने की बात की है तब से काम के रेट में भी इजाफा हो गया है। इसके पीछे अधिकारियों का तर्क यही है कि रिस्क अधिक है इसलिये अब पैसे ज्यादा लगेंगे। मजे की बाद यह है कि पैसा बटोरने के लिए अधिकारियों ने अपना मौडस अपरेंडिस भी बदल लिया है। पहले दफ्तर में ही सरेआम घूस लिया जाता था लेकिन अब लेन देने का मामला दफ्तर से कहीं दूर अधिकारी के किसी चहेते के घर में निपटाया जाता है।

चाणक्य ने कहा था कि भ्रष्टाचार और अधिकारियों का संबंध जल और मछली की तरह है। मछली कब पानी पी लेती है किसी को पता नहीं चलता, इसी तरह अधिकारी कब पैसे गड़प जाते हैं कहना मुश्किल है। बिहार के संदर्भ में यह उक्ति पूरी तरह से सही बैठ रही है। अब देखना यह कि सुशासन की डफली पर बिहार के लोग कब तक थिरकते हैं, हालांकि सुशासन का ज्वार कुछ कम होने लगा है, परत-दर-परत बिहार की कई भयावह सच्चाइयां सामने आ रही है। गरीबन दास जैसे लोग मजबूती के साथ अपने वजूद के अहसास कराते हुये अपने हक की आवाज बुलंद करने लगे हैं। सुशासन के प्रचार की आंधी में सच्चाई को दफन करना आसान नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here