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इन कमीने मीडिया वालों को भगाओ : सुजाता सिन्हा

तेवरआनलाईन, पटना

जिस वक्त सुजाता सिन्हा और उसके भाई बाबू को प्रयास भारती संस्था के लोगों ने घर से निकला उस वक्त उसका चेहरा शून्य था। उसके चेहरे पर किसी भी तरह के भाव नहीं थे। फिर अचनाक उसकी नजर मीडिया के लोगों पर पड़ी तो उसका चेहरा गुस्से से तमतमा गया। मीडिया वालों को देखते ही वह चीखते हुये बोली, इन कमीने मीडिया वालों को भगाओ यहां से। सब के सब हरामी है। साधु यादव के तलवे चाटते हैं।” सुजाता सिन्हा खुद अखबार नहीं आंदोलन है का नारा बुलंद करने वाले अखबार प्रभात खबर में काम करती थी। कभी पत्रकारितका को लेकर वह काफी संवेदनशील थी। आखिर सुजाता के साथ ऐसा क्या हुआ कि आज वह खुलेआम पत्रकारों को गालियां दे रही हैं, और साथ ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के साले साधु यादव का नाम ले रही है?

वैसेआस पड़ोस के लोग यही कह रहे हैं कि सुजाता मानसिक रुप से बीमार है। उसकी बातों पर यकीन नहीं किया जा सकता है। लेकिन जिस तरह से सुजाता के पिता सरकारी सेवा में एक ऊंचे ओहदे पर थे और अचानक गायब हो गये थे। इसी उसकी  उसकी मां भी गायब हो गई थी और फिर बहन भी। इसके बाद वह बुरी तरह से डर गई थी। और इस डर का यह नतीजा हुआ कि उसने अपने भाई के साथ अपने आप को घर में ही कैद कर लिया गया।

यदि मीडिया में काम करने वाले एक पत्रकार पर यकीन करें तो सुजाता इसके पहले मीडिया के माध्यम से अपने जान की रक्षा की गुहार लगाने की कोशिश कई बार कर चुकी थी। उस समय लालू का अंधकार युग अपने चरम पर था। उसकी बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। यहां तक जिस अखबार में वह काम करती थी उस अखबार के लोग भी कान में तेल डाले पड़े रहे। अब नीतीश कुमार का सुशासन आ गया है। लेकिन जिस यंत्रणा से सुजाता एक लंबे समय तक गुजरी है उसकी भरपाई नहीं हो सकती है। सुजाता और उसके परिवार वालों की ओर से कोई एआरआई भी दर्ज नहीं कराया गया है। ऐसे में इस मामले में किसी तरह की कार्रवाई की कोई गुंजाईश फिलहाल नहीं दिखती है। वैसे एक एक करके जिस तरह से सुजाता सिन्हा के माता-पिता और बहन गायब हुये हैं उससे सवाल तो कई उठते हैं। सुजाता को मानसिक रूप से बीमार कह कर खारिज कर देना एक बीमार समाज को ही चित्रित करता है।

कहा तो यहां तक जा रहा है कि शिवपुरी स्थित सुजाता के पिता के मकान और जमीन पर कुछ लोगों की नजर थी और फिर एक निश्चित योजना के तहत एक एक करके उसके परिवार के सदस्यों को ठिकाने लगा दिया गया और उसे मानसिक रूप से बीमार घोषित कर दिया गया। बहरहाल मामला चाहे जो हो, सुजाता को लंबे समय तक एक नरकभरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर होना पड़ा। पत्रकार बनकर कलम चलाने वाली सुजाता आज पत्रकारों को गालियां दे रही हैं, क्या बीमार सुजाता के कहे गये शब्दों का वाकई मे कोई अर्थ है।     

 

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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