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एक हीरो के रूप में उभरे हैं रणवीर यादव

खगड़िया में कार्बाइन लहराते हुये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बचाव करने के बाद रणवीर यादव हीरो के रूप में उभरें हैं। राजनीति में सैद्धांतिक मूल्यों की अहमियत से इन्कार नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके साथ ही राजनीति के व्यवहाहिक पक्ष को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। खगड़िया में जिस तरह से लोगों का एक समूह हिंसक हो उठा था और कुछ भी कर गुजरने पर आमादा था उसके परिणाम घातक हो सकते थे। ऐसे में यदि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बचाने के लिए रणवीर यादव ने उग्र रुप अख्तियार किया हो तो इसमें बुरा क्या है ? एक बेहतर कार्यकर्ता अपने चहेते नेता को बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाने से नहीं हिकचकेगा।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि भीड़ की शक्ल में कुछ लोगों ने उन पर जानलेवा हमला किया था। जर्मनी का शासक एडोल्फ हिटलर तो इस तरह के कार्यकर्ताओं को बेहद पसंद करता था और अपने आंदोलन की सफलता के लिए ऐसे कार्यकर्ताओं को पार्टी के लिए जरूरी समझता था। डेमोक्रेटिक पोलिटिक्स में भी व्यवहारिक तौर पर ऐसे कार्यकर्ताओं को बेहद पसंद किया जाता है, जो अपने नेता के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो। रणवीर यादव एक उम्दा कार्यकर्ता के रूप में ही पेश आये हैं। देर सवेर पार्टी नेतृत्व की ओर से उन्हें इसका ईनाम जरूर मिलेगा, व्यवहारिक राजनीति का यही तकाजा है।

किसी नेता की लोकप्रियता और विरोध में चोली-दामन का संबंध है, दोनों एक दूसरे के साथ-साथ रहते हैं। इसमें दो राय नहीं है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता अभी आसमान छू रही है, अत: उनके कट्टर शत्रु होने भी स्वाभाविक हैं। डेमोक्रेटिक नार्म्स में विश्वास करने वाला राजनेता अपनी दुश्मनी को राजनीतिक दांव-पेंच तक सीमित रखता है, जुलूस, धरना-प्रदर्शन, बयानबाजी आदि इसके हथियार होते हैं। लेकिन बिहार की मिट्टी को अच्छी तरह से जानने वाले लोग इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं कि यहां राजनेताओं को खून की होली खेलने से भी गुरेज नहीं है। खगड़िया में नीतीश कुमार पर जिस तरह से हमला किया गया उससे साफ पता चलता है कि हमलावरों की नीयत ठीक नहीं थी, वे खतरनाक इरादों से लैस थे। उनका निशाना सीधे तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही थे। बहरहाल इस मामले की जांच हो रही है, लेकिन इतना तो तय है कि हमलावर किसी बड़ी अनहोनी को अंजाम देने की फिराक में थे। पुलिस के हाथ से  कार्बाइन लेकर रणवीर यादव ने हमलावरों के मंसूबों को पूरी तरह से नाकामयाब कर दिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की गाड़ी पर पत्थरों की ताबड़तोड़ बौछार से प्रशासन तंत्र थोड़ी देर के लिए लड़खड़ा सा गया था। इसकी वजह से शायद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश थे किसी भी कीमत पर गोली नहीं चलनी चाहिये। ऐसे में रणवीर यादव के सामने आने से न सिर्फ प्रशासन को राहत मिली बल्कि मुख्यमंत्री भी इस हमले से सुरक्षित बच गये। अब इस पूरे प्रकरण के तकनीकी पहलू चाहे जो हो, इतना तो स्पष्ट है कि मौके पर रणवीर यादव की सक्रियता ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुरक्षा कवच प्रदान किया। शक्ति को शक्ति से नियंत्रित किया जा सकता है, और अंधी शक्ति को नियंत्रित करने के लिए अंधी शक्ति चाहिये। रणवीर यादव का हुंकार मौके पर कहर बरपाने वालों को दूर धकेलने में कामयाब रहा। अपने नेता की सुरक्षा के लिए उत्तेजना में आकर रणवीर यादव ने जो कदम उठाया उसके लिए वह न सिर्फ माफी के हकदार हैं, बल्कि इस काम के लिए स्वाभाविक तौर पर वे ईनाम के भी हकदार बन जाते हैं। हमलावरों को दूर भगाने के दौरान रणवीर यादव ने अपना संयम नहीं खोया, हाथ में कार्बाइन होने के बावजूद उन्होंने फायरिंग नहीं की, सिर्फ दहाड़ते रहें। और उनकी दहाड़ हमलावरों को दूर भगाने में कारगर रही। बाद में इस बात की तस्दीक करते हुये उन्होंने कहा भी, “अगर उस  कार्बाइन से फायरिंग हुई हो तो मैं अपनी पत्नी से इस्तीफा दिलवा दूंगा और खुद सन्यास ले लूंगा.”। उनकी पत्नी पूनम देवी जदयू की विधयिका हैं। बहरहाल रणवीर यादव के इस हिरोईक कारनामें की यहां खूब चर्चा है। सूबे में नीतीश कुमार को पसंद करने वाले खेमे में रणवीर यादव को हीरो के रूप में देखा जा रहा है।

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