कांग्रेस विरोधी फुटेज चलाने की औकात नहीं है एड से अघाये चैनलों में

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एक कैमरा मैन का खोपड़ी सनका हुआ था, हाथ में कैसेट लेकर गुस्से से बुदबुदा रहा था, इस कैसेट में टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस में आज हुये बवाल के पुरे फुटेज मौजूद हैं, लगभग सभी चैनलों के कैमरावालों ने इसे कवर किया है, लेकिन कहीं भी चल नहीं रहा है, कांग्रेस ने सभी चैनलों के मुंह में एड ठूंस दिया है। अब कांग्रेस के ऊपर एक भी नेगेटिव खबर नहीं चलेगी। भांड में जाये हमारी मिहनत।

पटना में कांग्रेस के अंदर उठा-पटक का फुटेज वाकई में देखने लायक था, फुटेज में तमाम कांग्रेसी एक दूसरे पर गुर्रा रहे थे, जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे। जिस तरीके से टीवी पर कांग्रेस ने एड ठेला है, उसे देखते हुये यह सहजता से कहा जा सकता है कि किसी भी टीवी के लाल में इस तरह के फुटेज को चलाने का गुर्दा नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से पेड न्यूज को लेकर लगातार बवाल मच रहा है। बड़े-बड़े आलेख लिखे गये हैं और कुछ मीडियाकर्मियों ने निजी साहस दिखाते हुये इसे लेकर सामूहिक आंदोलन खड़ा करने की कोशिश भी की है। इसे लेकर सेमिनार तक आयोजित किये गये हैं, लेकिन पेड न्यूज का परिभाषा और दायरा अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। किसी पार्टी से एड के रूप में भरपूर माल डकारने की बाद यदि कोई टीवी चैनल उसके खिलाफ आने वाली नकारात्मक खबरों को रोकता है तो क्या इसे पेड न्यूज के दायरे में रखा जा सकता है। बेशक वह चैनल खबर को नहीं दिखा रहा है, लेकिन उसे उस खबर को नहीं दिखाने के लिए पेड तो किया ही जा रहा है। यह दूसरी बात है कि पेड करने का तरीका दूसरा है और वह भी खबर नहीं छापने के लिए।

मीडिया में पीत पत्रकारिता का चलन रहा है। यह एक तरह से ब्लैकमेलिंग वाला मामला है। लेकिन यहां पर तो एड के रूप में पैसे देकर खुशनुमा माहौल बनाते हुये खबर को रोका जा रहा है या यूं कहिये कि चैनल वाले खुद कांग्रेस के खिलाफ जाने वाली खबरों को रोकने के लिए सतर्क हैं। उन्हें डर है कि कहीं खबर चलाने से उन्हें फटका न लग जाये।

कांग्रेस की ओर से अखबारों में भी खूब एड फेंके गये हैं। आधे-आधे पेज के इन एडों में देश के विकास की रफ्तार के साथ बिहार को जोड़ने की बातें की जा रही है और नीतीश कुमार से पाई-पाई के हिसाब मांगे जा रहे हैं। इन एडों में बिहार का कोई भी नेता नजर नहीं आ रहा है। मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के इन एडों को देखकर सहजता से ही समझा जा सकता है कि कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की नजर में बिहार में कांग्रेस को लीड करने वाला एक भी बिहारी नेता है। ऊपर से हाई कमान का आर्डर आएगा और कांग्रेस के नेतृत्व में बिहार का विकास हो जाएगा, जैसे विगत में होता आया है। बिहार में नेतृत्व उसी दिया जाएगा जो मैडम के पैर की धूल को अपने सिर पर लगाने में बाजी मार ले जाये। अब कांग्रेस के अंदर जारी इस लाठी-लठौवल की खबर अगले दिन के अखबार में दिखेगी इसमें भी संदेह ही है, और यदि दिखेगी भी तो साफ्ट टोन में। पत्रकारिता की खातिर मालिक के मुनाफे की बाट लगाने की औकात किसी भी संपादक में नहीं है, इतना तो तय है।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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