
टेंडर के नाम पर मुनाफ़े की लूट, साइंस हाउस और पीओसीटी का पर्दाफाश
पटना। एक ओर बिहार सरकार प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर, सस्ती और हर ज़रूरतमंद तक पहुँचाने के लिए कदम बढ़ा रही है, तो दूसरी ओर कुछ निजी कंपनियाँ अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए इस पूरी प्रक्रिया को हाईजैक करने की कोशिश कर रही हैं। हाल ही में सामने आए दो नाम, साइंस हाउस मेडिकल्स प्राइवेट लिमिटेड और पीओसीटी सर्विसेज इस बात के जीते-जागते उदाहरण हैं कि किस तरह मुनाफ़ाख़ोरी के लिए नियमों को तोड़ा गया, निविदा प्रक्रिया को गुमराह किया गया और अदालत में झूठे बहाने लेकर जनहित की आड़ में दरअसल सिर्फ अपने घाटे को बचाने की कोशिश की गई।
बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति (SHSB) द्वारा जब टेंडर की प्रक्रिया चलाई गई, तो उसमें स्पष्ट निर्देश था कि हर बोलीदाता को किसी भी सेवा या वस्तु के लिए केवल एक समान दर देनी होगी। लेकिन साइंस हाउस ने नियमों का खुला उल्लंघन करते हुए दो अलग-अलग दरें दीं, एक पोर्टल पर और दूसरी एक्सेल शीट में भारी छूट के रूप में। यह गलती नहीं, बल्कि सोच-समझकर की गई गड़बड़ी थी, जिसका मकसद यह था कि जब चाहे जिस रेट को उपयोग किया जा सके। जब यह गड़बड़ी पकड़ी गई तो कंपनी ने ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल की बनावट पर सवाल उठाए जो न सिर्फ बचकाना था, बल्कि तथ्यहीन भी, क्योंकि यह पोर्टल केंद्र सरकार द्वारा विकसित है और कई राज्यों में वर्षों से सफलतापूर्वक चल रहा है।
इतना ही नहीं, साइंस हाउस पहले से विवादों में रहा है। मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य उपकरण की ख़रीद में भारी घोटाले का आरोप इस कंपनी पर पहले से है, जिसमें आर्थिक अपराध शाखा ने चार्जशीट दाखिल की है और इसके निदेशकों को दिल्ली एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया था। ऐसे रिकॉर्ड के बाद पारदर्शिता की बात करना केवल ढोंग है।
दूसरी ओर पीओसीटी सर्विसेज की स्थिति और भी चौंकाने वाली है। यह कंपनी पिछले कई वर्षों से बिहार सरकार को केवल 25 प्रकार के पैथोलॉजी टेस्ट के लिए बहुत ही ज़्यादा कीमतों पर केवल रियेजेंट्स (chemicals) सप्लाई कर रही थी।
इन 25 टेस्टों के लिए पीओसीटी सर्विसेज हर साल 70–80 करोड़ रुपये की कमाई कर रहा था वो भी तब, जब मशीनें 10 साल पुरानी थीं, स्टाफ उनका नहीं था, सैंपल कलेक्शन और ट्रांसपोर्ट का पूरा खर्च सरकार उठा रही थी। यानी सरकार पैसे भी दे रही थी और सेवा भी खुद ही संभाल रही थी।
अब जो नया टेंडर आया है, उसमें 65 से ज़्यादा टेस्ट (100 से भी अधिक पैरामीटर), नई मशीनें, पूरी लैब सेटअप, एल आई एम एस सॉफ़्टवेयर, मैनपावर, सैंपल कलेक्शन और ट्रांसपोर्ट सब कुछ सेवा प्रदाता ( हिन्दुस्तान वेलनेस के नेतृत्व में गठित समूह) द्वारा किया जा रहा है। यानी सरकार को सिर्फ़ भुगतान करना है, बाकी सब कुछ सेवा प्रदाता करेगा और वो भी कम कीमतों पर। पहले जो 70–80 करोड़ सिर्फ़ रसायनों की सप्लाई पर खर्च होते थे, अब उसी पैसे में तीन गुना सेवाएँ, सौ से ज़्यादा पैरामीटर की जांच, बेहतर गुणवत्ता और नई तकनीक मिल रही है। यानी पहले जो सिस्टम था, वह सरकार के टैक्सपेयर्स के पैसे की सीधी बर्बादी थी और उसका फ़ायदा केवल पीओसीटी सर्विसेज और साइंस हाउस जैसे कारोबारी उठा रहे थे।
यह कोई मामूली मामला नहीं है, यह राजस्व की लूट थी, जिसे “नियमों की आड़ में चल रही कमाई” कहा जा सकता है।
इस पूरे मामले में सबसे गंभीर और संदेहास्पद बात यह है कि साइंस हाउस और पीओसीटी सर्विसेज के डायरेक्टर्स आपस में जुड़े हुए हैं और उन्होंने मिलकर एक साझा कंपनी, पीओसीटी साइंस हाउस प्राइवेट लिमिटेड भी बनाई है। यह सीधा-सीधा हितों का टकराव है। यहीं से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि टेंडर प्रक्रिया को गुमराह करने की कोशिश सिर्फ़ किसी एक कंपनी की नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित गठजोड़ की थी।
हिन्दुस्तान वेलनेस की टीम ने मधुबनी, सीतामढ़ी, भोजपुर, दानापुर, रोहतास, मोतिहारी, नालंदा आदि जिलों में पहले ही लैब्स शुरू कर दी हैं और बाकी जिलों में काम ज़ोरों पर है।
पीओसीटी और साइंस हाउस की आपत्तियों को न केवल बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति (SHSB) ने नियमों के आधार पर खारिज किया, बल्कि अदालत ने भी तथ्यों के अभाव में इनकी दलीलों को नकार दिया।
यह केवल निविदा प्रक्रिया की जीत नहीं है — यह जनता की जीत है। यह एक पारदर्शी शासन और जवाबदेही की जीत है। और सबसे अहम यह बिहार सरकार के करोड़ों रुपये के राजस्व को लूट से बचाने की जीत है।