दस लखा सूट की गंगा में धुलाई !

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अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ दस लखा सूट पहनकर घूमने की कीमत पीएम नरेंद्र मोदी को अरविंद केजरीवलाल के हाथों में दिल्ली गवां कर चुकानी पड़ी थी। अब नीलामी के बाद उस सूट की कीमत में और इजाफा हो गया है। गुजरात के कपड़ा व्यापारी और हीरा व्यापारी की बोली से इसका भाव में चार करोड़ से से ऊपर पहुंच गया है। कुल कवायद दिल्ली में सूट पर लगे दाग को धोने के लिए किया जा रहा है। और इसकी धुलाई की व्यवस्था गंगा में की गई है। जो धन इस सूट को बेचने से हासिल हुआ है उसे गंगा सफाई फंड में डाल दिया जाएगा। यानि की नीलामी से हासिल रकम को गंगा की सफाई में लगाया जाएगा। और इसके साथ ही इस सूट की भी धुलाई हो जाएगी। गंगा की खासियत है, हर पाप को यह धो डालती है। दस लखा सूट भी एक झटके में साफ हो जाएगा। वैसे पीएम मोदी की ओर से यही तर्क दिया जा रहा है कि सूट उन्हें किसी ने गिफ्ट किया था, और अपने सामान को वो जैसे चाहे बेच सकते हैं। चाहे जितनी रकम में बेच सकते हैं। और उस रकम को चाहे जिस काम में लगा सकते हैं। काशी की जमीन से संसद में प्रवेश करने वाले पीएम नरेंद्र मोदी के सूट पर लगे दाग को हटाने के लिए गंगा निश्चिततौर पर मुफीद है। गंगा पर खर्च किया जाने वाला नीलामी से हासिल रकम निश्चितौर पर इस सूट को धवल करने का जुगाड़ है। इस सूट की इससे और बेहतर सफाई हो ही नहीं सकती है। चुनाव से पहले काशी में गंगा के प्रति अपनी मनोभावना व्यक्त करते हुये पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था, मुझे मां गंगा ने बुलाया है। अब सत्ता के शिखर पर जाकर एक पुत्र अपनी सूट की कमाई तो मां गंगा को दे ही सकता है। भले ही यह सूट गिफ्ट क्यों न किया गया हो। वैसे इस सूट के साथ पीएम मोदी को गिफ्ट में दिये गये तकरीबन 500 वस्तुओं की नीलामी हुई है। दुनिया की हर संस्कृति में उपहार में दिये गये चीजों को बेचना बुरा माना जाता है। पीएम नरेंद्र मोदी भी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं, लेकिन जब मामला गिफ्ट में दिये गये दस लखा सूट पर लगे दाग का हो तो इसकी धुलाई जरूरी हो जाती है। अमेरिका और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में स्टेज शो करने वाले पीए नरेंद्र मोदी की इस सूट की चर्चा तो विदेशी अखबारों तक में हो चुकी है, भले ही हर मोर्चे पर चौकस रहने वाली देशी मीडिया की नजर इस पर देर से पड़ी हो। दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान कानो-कान इस सूट की चर्चा होने लगी थी। मोदी का यह सूट आमलोगों में मोदी के प्रति नफरत का संचार कर रहा था। और अब तो यह एक राष्ट्रीय घृणा का प्रतीक सा बनता जा रहा है। गुज्जू पोलिटिक्स को केंद्रीय राजनीति में पूरी तरह से स्थापित करने के बाद दस लखा सूट का उपहार मिलना तो स्वाभाविक था, मेकिंग इन इंडिया की ब्रांडिग इसी तरह के चीजों के सहारे ही तो होनी तय है। चमकता भारत, दमकता भारत की फिलिंग को कैरी करने के लिए इस सूट की जरूरत थी, ब्रांडिग करने वाली जमात को। पत्थर (हीरों) की कमाई को सूट में लगाकर गंगा साफ करने की बात कर रही है यह जमात। और भविष्य में इस सूट पर चोखी कमाई की संभावना भी खड़ी हो गई है। दो दुनी चार नहीं, दो दुनी करोड़ का धंधा चुटकियों में खड़ी हो गई है। खरीदने वाले गूज्ज भाई आने वाले दिनों में इससे अरबों कमा सकते हैं, क्योंकि नीलामी में खरीदी गई चीज की कीमत तो फिर नीलामी में ही आंकी जाएगी। यह एक दम से चोखे कमाई की तरह है, ऐसे ही तो मेक इन इंडिया की ब्रांडिंग होगी। और इस ब्रांड की कमाई को को गंगा में साफ किया जाएगा। सोचिए अगर इस सूट की कमाई को किसी स्मार्ट सिटी पर खर्च करने के लिए दिया जाता, तो क्या होता ? ऐसी गलती कॉरपोरेट कल्चर के खिलाफ है। ब्रांडिंग हो, और पोजिटिव ब्रांडिग हो। बुलेट ट्रेन जैसे प्रोजेक्ट में भी इसे नहीं लगाया जा सकता। तो बेहतर है इसे गंगा में ही बहाया जाय। और गंगा को शुद्ध करते हुये इसे भी शुद्ध कर कर दिया जाये। क्या यह गंगा को नापाक करने की धृष्ठता नहीं है ? मजे की बात है कि इस सूट की बोली क्रिकेट मैचों की तरह पहले से ही फिक्स थी। सूट की बोली लगाने वाले तमाम गुज्जू दावेदार कुशल सटोरियों की तरह पहले से ही सबकुछ फिक्स कर के बैठे थे। लोगों के बीच रोमांच और गंगा के प्रति पीएम मोदी की निष्ठा को प्रदर्शित करने के लिए तमाम टीवी चैनलों पर भी इसका जमकर प्रसारण कराया गया। इरादा बस इतना था कि गंगा के नाम पर इस सूट पर लगे दाग को हटाकर इसे पूरी तरह से चमका दिया जाये। लेकिन अंत पहर में रेट फिक्सिंग की खबर आने के बाद लोगों को पूरी तरह से यकीन हो गया कि इस घटिया नाटक का एक मात्र उद्देश्य गंगा में सूट की सफाई थी। लोकसभा चुनाव से पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद को एक चाय बेचने वाले के तौर पर पेश किया था। तीन बार वो गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके थे, निश्चितौर पर उस वक्त गरीबी का एक भी रेसा उनके ऊपर नहीं था। बहुत ही चालाकी से चाय बेचने वाली कहानी को आगे बढ़ा कर उन्होंने गरीब तबके के लोगों को वोटर के रूप में तब्दील कर लिया। इस सूट की नीलामी उन वोटरों का मजाक उड़ा रहा है जिन्होंने चाय बेचने वाले एक व्यक्ति के पक्ष में वोट डाला था। बेशक सूट के इस पैसे से तकरीबन एक लाख चाय की ठेलियां बन ही जाती, जिससे कई परिवार चलते। लेकिन यहां मामला तो सूट की सफाई का था। यदि इसकी सफाई नहीं होती तो ब्रांड इंडिया की चमक धीमी पड़ जाती।

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