फ्रांस के सोरबन विश्वविद्यालय द्वारा सुप्रसिद्ध फिल्म-टीवी अभिनेता शैलेंद्र श्रीवास्तव को डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया
राजू बोहरा @ तेवर ऑनलाइन डॉटकॉम दिल्ली ब्यूरो,
गुरुग्राम: बॉलीवुड के प्रसिद्ध फिल्म-टीवी अभिनेता शैलेंद्र श्रीवास्तव अब बन गए है डॉ. शैलेंद्र श्रीवास्तव। उनके प्रतिष्ठित कार्यो को देखते हुए गत सप्ताह उन्हे फ्रांस के सोरबन विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है जिसकी वजह से आजकल वह खासे चर्चा में है। अभिनेता डॉ. शैलेंद्र श्रीवास्तव ने अपनी अभिनय यात्रा का प्रारम्भ 4 दशक पूर्व 1982 में दिल्ली रंगमंच से किया था। उन्होंने दिल्ली रंगमंच और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अनुभवी एवं प्रतिष्ठित निर्देशकों के साथ काम करते हुए अपना अभिनय शिल्प सीखा। वह एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न अभिनेता हैं। इन्होंने अनेकों नाटकों में प्रमुख एवं महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं। इप्टा के राष्ट्रीय सम्मेलन, साहित्य कला परिषद महोत्सव दिल्ली और पृथ्वी थिएटर महोत्सव मुंबई में कई अवसरों पर नाट्य प्रस्तुतियाँ की है।
निर्देशक अशोक तलवार द्वारा भारत के प्रथम साइंस फिक्शन टेलीविजन श्रृंखला ‘स्पेस सिटी सिग्मा’ में मुख्य खलनायक ज़खाकू की महत्वपूर्ण भूमिका हेतु चयन किया। यह उनके अभिनय यात्रा में एक महत्वपूर्ण सोपान सिद्ध हुआ। ज़ख़ाकू की भूमिका ने उन्हें अभूतपूर्व प्रसिद्धी दी, उन्हें दर्शकों का विशेष स्नेह मिला। इसी भूमिका से अभिनेता, निर्देशक संजय खान की दृष्टी उन पर पड़ी, जिन्होंने उन्हें ‘द ग्रेट मराठा’ में एक शानदार भूमिका दी, और उन्हें मुंबई शिफ्ट होने का सुझाव भी दिया। उनके सुझाव को मानकर वो 1997 में मुम्बई चले आए।
शैलेंद्र ने मुम्बई आकर 100 से भी अधिक धारावाहिकों में कार्य किया। जिनमें कुछ प्रमुख नाम हैं- सीआईडी, आहट, जय हनुमान, हम पाँच, छोटी मां, श्री गणेश, प्रधान मंत्री, शाका लाका बूम बूम, चंद्रमुखी, चंद्रकांता, ब्लैक इत्यादि।
इस अवधि के दौरान, उन्होंने हिंदी फिल्मों में भी काम किया और बड़े पैमाने पर खलनायक की भूमिकाएँ निभाईं। अनिल शर्मा की गदर, राज कुमार संतोषी का फ़ैमिली द टाइज़ ऑफ़ ब्लड, राम गोपाल वर्मा की रक्तचरित्र और डिपार्टमेंट, तिग्मांशु धूलिया की पान सिंह तोमर, प्रियदर्शन की बम बम बोले जैसी कुछ फिल्में एक परिचित स्मृतियाँ हैं। साथ ही, उन्होंने तेलुगु, भोजपुरी, गुर्जरी जैसी विभिन्न भाषाओं में क्षेत्रीय फ़िल्मों में भी कार्य किया और इनमें से कुछ फ़िल्मों हेतु सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार भी प्राप्त किया।
शैलेन्द्र एक सिद्धहस्त कवि भी हैं और हिंदी और उर्दू में लिखते हैं और उनकी शैली बहुत ही भिन्न एवं प्रभावशाली है। उन्हें काव्यसारथी सम्मान के रूप में वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स लंदन से मान्यता मिली है और कोविड महामारी काल में अपनी रचनाओं द्वारा लोगों को प्रेरित करने के हेतु वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स लंदन की स्विट्जरलैंड शाखा द्वारा सर्टिफिकेट ऑफ कमिटमेंट से सम्मानित किया गया है। उनकी कविताएँ लगभग सभी प्रमुख भारतीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं।
वह एक प्रेरक वक्ता हैं और विश्वविद्यालयों में छात्रों को नियमित रूप से संबोधित करते रहते हैं, साथ ही अभिनय से संबंधित व्याख्यान भी देते हैं। इन्होंने अपने छात्र जीवन काल में भी कई साहसिक यात्राएं की जिनमें प्रमुख है- भारत से काठमांडू, (नेपाल )और थिम्पू, (भूटान ) साइकिल द्वारा, इस अभियान का नेतृत्व भी किया और एक कीर्तिमान स्थापित किया।