बेउर और फुलवारी जेल को ध्वस्त करने का इरादा था नक्सलियों का

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जहानाबाद जेल ब्रेक के तर्ज पर नक्सलियों ने पटना के बेउर और फुलवारी जेल को ध्वस्त करने का पूरा इंतजाम कर लिया था. सही समय पर पुलिसिया एक्शन से नक्सलियों के मंसूबे पर पानी फिर गया। एक अनुमान के मुताबिक इस वक्त बेउर और फुलवारी जेल में करीब 200 छोटे-बड़े नक्सली नेता और कार्यकर्ता बंद हैं। इन्हीं दो जेलों के बीच बीएमपी कैंप है, और फिर उससे सटते हुये राज्यपाल भवन और मुख्यमंत्री निवास स्थान। पकड़े गये गये नक्सलियों से पुलिस अभी पूछताछ कर रही है और जो खुलासे हो रहे हैं उससे पुलिस वाले सकते में हैं।

बिहार में चुनाव के शुरुआती दौर से ही नक्सली एक निश्चित स्ट्रेटेजी के तहत ताबड़तोड़ हमले करते चले आ रहा हैं। इन हमलों का क्लाइमेक्स बेउर और फुलवारी जेल ब्रेक कांड था। ऐसा करके नक्सली अपने साथियों के छुड़ाने के साथ-साथ व्यवस्था को स्पष्ट संदेश देने के मूड में थे कि बिहार में सरकार चाहे किसी की भी बने, अब नक्सलियों का राज शुरु होने वाला है। नक्सलियों की रणनीति सीमांत क्षेत्रों को अपने लपेटे में लेते हुये प्रमुख शहरों को घेरने की है। इस लिहाज से वे लोग पटना के काफी करीब आ गये हैं। चूंकि पटना बिहार की राजधानी है, मंत्री-संतरी सब यहीं अड्डा मारे रहते हैं। यदि उन्हें निरीह साबित कर दिया जाये तो आम लोगों का विश्वास व्यवस्था पर से पूरी तरह से उठ जाएगा और देर–सबेर ये लोग भी नक्सलियों के प्रभाव में आ जाएंगे।

जंगल की लड़ाई में नक्सली माहिर हैं, वहां पर वे पुलिस और सैनिक बलों पर भारी पड़ रहे हैं। शहरों में स्ट्रीट फाइटिंग का अनुभव अभी उनके पास नहीं है और उन्हें इस बात का यकीन है कि शहरों में बिना स्ट्रीट फाइटिंग के व्यवस्था पर कब्जा संभव नहीं है। इसी को ध्यान में रखकर वे लोग अब अपनी लड़ाई को शहरों में पसारना चाह रहे हैं। दूर-दराज के इलाकों में होने वाली नक्सली हिंसा को लेकर भले ही शहरवासी चाहे जो बोले, लेकिन उन्हें भी व्यवस्थित हिंसा के जमीनी स्वरूप से मुलाकात नहीं है। ऐसे में यदि सरकारी ठिकानों पर व्यापक बमबारी के साथ नक्सलियों का एक पलटन पटना शहर में दाखिल होता है तो यहां के लोग कैसे रियेक्ट करेंगे स्पष्ट नहीं है।

अभी मनोवैज्ञानिकरूप से शहर के लोग यदि नक्सलियों के समर्थन में नहीं है तो उनके खिलाफ भी नहीं है। हां, उनके द्वारा जारी हिंसा को लेकर आम लोग थोड़ा डरे और सहमे हुये जरूर है। सरकारी तंत्र के साथ लड़ते हुये यदि नक्सली आम लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं तो जनसमर्थन भी उन्हें मिल सकता है। बिहार में हुये मतदान के प्रतिशत पर यदि ध्यान दिया जाये तो कहीं पर 50 प्रतिशत और कहीं पर 55 प्रतिशत मतदान हुआ है। 40 प्रतिशत लोग विभिन्न कारणों से अभी मतदान से दूर हैं। यहां के अखबार और टीवी वाले जोर-शोर से कह रहे हैं कि यहां लोकतंत्र के महापर्व का जश्न मनाया जा रहा है, नक्सली इलाकों में भी लोग बढ़चढ़ कर मतदान कर रहे हैं और उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि इसके साथ ही नक्सलियों की जड़ें और मजबूत होती जा रही हैं। उनका नेटवर्क राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है। दुनियाभर में हथियारों के बल पर हुये विद्रोहों और क्रांतियों से उन्होंने सबक ले रखा है। इसके साथ ही हर राजनीतिक घटनाक्रम पर उनकी गहरी नजर है और इनका सही आकलन करके भविष्य के लिए अनुकूल राह बनाने के लिए वे लोग खूब दिमाग लड़ाते हैं। पटना में व्यापक पैमाने पर बरामद विस्फोटक और हथियार इसी सच्चाई को बयां कर रहे हैं।

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