… मस्त हूं अपनी मस्ती में (ओशो जन्मदिवस-11दिसंबर)
विचारों की एक ऊंची श्रृंखला और आध्यात्मिक आंदोलन की आंधी का दूसरा नाम है ओशो। वास्तव में ओशो मानवता की एक नई आवाज हैं, क्रांति की एक नई भाषा हैं। ओशो का शाब्दिक अर्थ है, वह व्यक्ति जिसपर भगवान फूलों की वर्षा कर रहे हैं । ओशो भगवान रजनीश के नाम से भी जाने जाते हैं। अपने भगवान होने की घोषणा उन्होंने स्वयं की थी। ओशो के स्वरूप को निर्धारित करना बहुत कठिन है। कभी उन्हें दार्शनिक समझा जाता है तो कभी एक अनोखा धर्मगुरु। लेकिन ओशो ने खुद को ऐसे किसी घेरे में बांधने से इन्कार कर दिया।
ओशो ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत एक शिक्षक के रुप में की। जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए और अपने व्याख्यानों से चर्चा में आने लगे। ओशो की अदभुत तार्किक क्षमता ने लोगों को आकर्षित किया। उनमें किसी भी मानीवय पक्षों की एक गहरी समझ थी, जिसे बड़े ही सहज शब्दों में वह लोगों को समझाते थे। एक असीम और अलौकिक शक्ति में उनका विश्वास और समर्पण था जिसने इस पूरे जीवन-संसार की रचना की है। ओशो ने एक क्रांतिकारी की तरह बड़े बदलाव की बात की। लेकिन उनका परिवर्तन व्यक्ति से शुरु होता, व्यवस्था से नहीं। उनका मानना था कि हर व्यक्ति में असीम संभावना है जिसे जगाने की जरुरत है।
ओशो अपने सेक्स के विचारों के कारण विवादों में घिर गए। लोगों को संभोग से समाधि का रास्ता दिखाया। सेक्स को दबाने की प्रवृति को मानवीय जीवन की विकृत मानसिकता का मूल कारण बताया। उन्होंने घोषणा की कि संभोग के क्षण में ईश्वर की झलक है। ओशो ने स्पष्ट कहा कि शादी जैसी कृत्रिम संस्था में मेरा विश्वास नहीं है और बिना शर्त प्रेम की हिमायत की। वह दुनिया को एक इंटरनेशनल कम्युन बनाना चाहते थे।
ओशो में एक दार्शनिक उंचाई थी और उन्होंने खुल कर धार्मिक पाखंडवाद पर प्रहार किया। इस मामले में वे कबीर को एक आग और क्रांति मानते थे। ओशो कहते थे बुद्ध बनो, बौद्ध नहीं। जीसस, बुद्ध, पैगम्बर मुहम्मद नानक, कबीर, कृष्ण, सुक्रात ये ओशो के विचारों में तैरते थे।
अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए उन्होंने पूना में ओशो इंटरनेशनल नाम से एक ध्यान-क्रेंद स्थापित किया और बाद में अमेरिका चले गए जहां अमेरिकी सरकार के निशाने पर आने लगे। वहां इनकी प्रसिद्धी से डरी हुई अमेरिकी सरकार ने इन पर बहुत सारे केस चला दिए और इनको गिरफ्तार कर के विभिन्न जेलों में घुमाती रही। बाद में मोरारजी देसाई सरकार की पहल पर इन्हें भारत लाया गया। अधिकांश यूरोपीय सरकारों ने ओशो पर अपने देशों में आने पर प्रतिबंध लगा दिया।
ओशो मावन-जीवन को मुक्त करना चाहते थे। अतीत और भविष्य के घेरों को तोड़ना चाहते थे। उनमें जीवन की वर्तमान व्यवस्था बदलने की चाहत थी, लेकिन उन्होंने इसके लिए कभी हिंसा और शस्त्र का सहारा नहीं लिया। कभी कोई भड़काउ बाते नहीं कही। चंगेज खा, हिटलर और माओ के बदलाव के हिंसक प्रयासों की अलोचना की और सनकी व्यक्तियों व विचारों से दुनिया को सावधान किया।
ओशो ने जीवन से मुक्ति के तीन मार्ग बताए- प्रेम, ज्ञान और समाधि। ओशो का मानना था कि मौत है ही नहीं, वह तो जिंदगी का ही रुपांतरण है। यह जीवन और जगत उस इश्वर की कृति है, इसलिए जितना ईश्वर सच है उतना ही यह जगत भी सच है, इस तरह उन्होंने संसार के माया और भ्रम होने की बात को नकार दिया। उन्होंने आध्यात्मिकता और भौतिकता को मिलाने की बात कही और बड़े ही जोड़ देकर कहा कि दोनों में कोई विरोध नहीं है। जीवन से भागना नहीं, जीवन को समझना है। समझ ही मुक्ति है। एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से जुड़ाव प्यार है, वहीं एक व्यक्ति का प्रत्येक व्यक्ति से जुड़ाव समाधि है। इस तरह प्रेम का ही विस्तृत रुप समाधि है।
इतिहास की पूरी धारा में ओशो की अपनी एक अलग वैचारिक पहचान है। ओशो के रुप में मानवता ने एक बड़ा विचारक और चिंतक पाया है, जिनका प्रभाव और प्रसांगिकता समय के साथ बढ़ और चमक रहा है। एक बार एक महाशय ने ओशो को बोला कि आप तो एक बड़े मिशन में लगे हुए हैं, तो उनका जबाव था – मैं किसी मिशन में नहीं लगा हूं, मैं तो मस्त हूं अपनी मस्ती में, और इसमें अगर कुछ बड़ा हो जाए तो अच्छा।
Nice thought keep it up…………..
मोरारजी की सरकार? ओशो उस वक्त अमेरिका गये थे? माओ सफल आदमी है, ओशो से अधिक।
Nice one.
Osho is beyond the circle of success and unsuccess ….
ओशो की नकल …अच्छी लगी। ओशो इतिहास को अपनी मर्जी से व्याख्यायित करते रहे हैं। हाँ, अविनाश भाई, ओशो कि हिन्दी में 70 से अधिक किताबे उपलब्ध हैं नेट पर। हैं मेरे पास।