लिटरेचर लव
मिलते है मुश्किल से कहीं चार काँधे भी (कविता)
शहर में मिलते है मुश्किल से कही चार काँधे भी उठाने के लिए
गाँव में गाँव का गाँव आत़ा है -साथ में श्मशान को जाने लिए
गाँव लौटा ना दुलारा माँ का करके के तालिब मुकमिल अपनी
खेत सब रख दिए गिरवी अपनी हमने ने जिसको पढ़ाने भेजा
ईट-पत्थर की इमारत का क्या कुछ ही दिन में है खड़ी हो जाती
उम्र लग जाती है लेकिन यारो घर को घर जैसा बनाने के लिए
शहर में अम्न बहाली के लिए आज टीवी पे है की जिसने अपील
कल उसी ने तो इशारा था किया आग बस्ती में लगाने के लिए
देखना वो भी ना लूट जाए कही चोर जो छोड़ गये है बाकी
ऐसे सदा सोच के जाना तू जरा रपट थाने में लिखाने के लिए
……………………………………………………………..कबीर
ईट-पत्थर की इमारत का क्या कुछ ही दिन में है खड़ी हो जाती
उम्र लग जाती है लेकिन यारो घर को घर जैसा बनाने के लिए…………बहत ही उम्दा ख़याल है सुनील भाई …..:)