लड़कियों को फंसाने का काम करते हैं मुंबई के फिल्मी कार्डिनेशन आफिस

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तेवरआनलाइन, मुंबई

मुंबई में फिल्मों में काम दिलाने के लिए जगह-जगह पर खुले कोआर्डिनेशन आफिस के नाम पर वेश्यावृति का धंधा जोरों से चल रहा है। इन आफिसों में आने वाली लड़कियां फिल्मों में काम तलाशते-तलाशते कब वेश्यावृति की राह पर निकल पड़ती हैं, उन्हें भी पता नहीं चलता। फिल्मों में काम दिलाने का दावा करने वाले इन कोर्डिनेशन आफिसों के विज्ञापन से यहां के स्थानीय अखबार भरे रहते हैं। रुपहले पर्दे पर चमकने की चाहत में दूसरे शहरों से आने वाली लड़कियां बड़ी सहजता से इन आफिसों के तामझाम में फंस जाती है, और फिर इनके इशारे पर नाचने लगती हैं।

अंधेरी स्थित आदर्शनगर में इस तरह के दस से अधिक कोआर्डिनेशन आफिस है। इसी तरह जुहू,मलाड, लोखंडवाला, बांद्रा आदि में भी इस तरह के कोआर्डिनेशन आफिस कुकरमुत्ते की तरह खुले हुये हैं। इन आफिसों के संचालक कोर्डिनेशन के नाम पर एक सोंची समझी रणनीती के तहत व्यापक पैमाने पर नई-नई लड़कियों को वेश्यावृति धंधे में धकेल रहे हैं, हालांकि ऊपर से देखने में यही लगता है कि ये कोर्डिनेशन आफिस सहज तरीके से चल रहे हैं, लेकिन इनकी हकीकत कुछ और ही है।   

इन आफिसों के अंदर प्रवेश करते ही उनके बोर्ड पर नामी गिनामी सितारों की तस्वीरें दिखाई देंगी। और आपके साथ इस तरह का व्यवहार किया जाएगा कि जैसे इस आफिस में आने के बाद आपकी सारी समस्या समाप्त हो गई है। चुटकी बचाते ही किसी बड़े डायरेक्टर की फिल्म में आपको काम मिल जाएगा। यहां ध्यान देने योग्य है कि इन आफिसों में सिर्फ फिल्म में काम करने वाली इच्छुक लड़कियों को ही इंटरटेन किया जाता है। काम पाने की तलाश में जब कोई पुरुष कलाकार इन आफिसों में जाता है तो उसे किसी न किसी बहाने टरका दिया जाता है।

नई नई लड़कियों को अपने सांचे में ढालने के लिए उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार किया जाता है। उनके एलबम आफिस में रख लिये जाते हैं और साथ ही बड़े तरीके से इस बात का पता लगाते हैं कि लड़की की माली हालत और उसकी पारिवारिक पृष्टभूमि क्या है। लड़की की माली हालत कमजोर होने की स्थिति में आफिस के संचालकों का काम आसान हो जाता है। बातचीत के दौरान आफिस के संचालक लड़की से यह पूछने की कोशिश करते हैं कि फिल्म जगत में काम करने के लिए वह कहां तक समझौता करने के लिए तैयार है। साथ ही उसे बताते हैं कि समझौता न कर पाने की स्थिति में यहां पर लड़कियों को काम मिल पाना मुश्किल है। समझौता का सीधा सा अर्थ यही होता है कि आप काम देने वालों के साथ बिस्तर गर्म करने के लिए तैयार हैं या नहीं। उन्हें उन तमाम हीरोइनों की कहानियों भी सुनाई जाती हैं जो फिल्म जगत में सफल हुई हैं और साथ ही उनकी सफलता का राज भी बताया जाता है, कि कैसे विभिन्न मुकामों पर वो समझौता करके आगे बढ़ी हैं। ये सारी बातें बड़ी सहजता से होती है और यहीं आने वाली लड़कियों को इस बात का अहसास कराया जाता है कि बिना समझौते किये उन्हें यहां काम मिलने वाला नहीं है।   

समझाने की यह प्रक्रिया कई चरणों में चलती है। लड़की को बार-बार आफिस आने के लिए कहा जाता है, और इस दौरान उससे अच्छी खासी रकम भी वसूली जाती है।

लड़की को यह समझा दिया जाता है कि यदि वह फिल्म जगत में हीरोइन की भूमिका चाहती हैं तो उनके लिए एक सेक्रेटरी रखना आवश्यक है। इससे न सिर्फ उनके उनके रूतबे में इजाफा होगा, बल्कि बेहतर जगह काम पाने में भी सहूलियत होगी। लड़की को पूरी तरह से शीशे में ढालने में के लिए उनके लिए सेक्रेटरी भी मुहैया कराया जाता है, जिसका विशुद्ध रुप से लड़की के लिए दलाली करना होता है। वे अपने काम में पूरी तरह से निपुण होते हैं। उन्हें पता होता है कि लड़की का इस्तेमाल कहां और कैसे करना है।    

 इसके बाद सेक्रेटरी के माध्यम से लड़की का विभिन्न तरह के तथाकथित प्रोड्यूसरों के यहां आना जाना शुरू होता है ताकि लड़की को यह यकीन हो जाये कि काम पाने की प्रक्रिया का सही तरीके से पालन किया जा रहा है। ये तथाकथित प्रोड्यूसर कोआर्डिनेशन आफिस से जुड़े लोग ही होते हैं, जो अलग अलग जगहों पर लड़कियों को बुलाकर इस बात की जांच करने की कोशिश करते हैं कि लड़की मनोवैज्ञानिकतौर पर कहां तक समझौता करने के लिए तैयार है। बातचीत के दौरान ही उन्हें सीन देकर एक्टिंग करने को भी कहा जाता है। सीन भी उन्हें इस तरह के दिये जाते हैं जिसमें विभिन्न तरह के पोज में उन्हें प्रेम का प्रदर्शन करना होता है। हिचकने की स्थिति में उनसे कहा जाता है कि यदि वह खुलकर एक्टिंग नहीं कर सकती तो फिल्मों में क्या काम करेंगी। अपनी प्रतिभा का बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए लड़कियां खुलकर एक्टिंग करने की कोशिश में फोर-प्ले की पूरी प्रक्रिया से गुजरती हैं और मानसिक स्तर पर समझौता करने के लिए तैयार होते जाती हैं। इस तरह की कई मीटिंगों के बाद लड़की स्वत: रूप से खुल जाती हैं और सीन करते करते कब बिस्तर तक का सफर पार कर जाती हैं उन्हें भी पता नहीं चलता।

हीरोइन बनने की इस प्रक्रिया से पूरी तरह से गुजरने के बाद लड़की का इस्तेमाल वेश्यवृति के धंधे में पेशेवर अंदाज में शुरु हो जाता है। इस बीच लड़की को भी पैसे और शराब की आदत लग जाती है। हालांकि उसे यही समझाया जाता है कि यह पार्ट टाइम वर्क है, जल्द ही उसे किसी बड़ी फिल्म में अच्छी सी भूमिका मिल जाएगी।      

धीरे-धीरे लड़की को प्रोड्यूसर के नाम पर विभिन्न शहरों के बड़े-बड़े व्यापारियों के पास भेजा जाता है, जो मुंबई मौज मस्ती के उद्देश्य से आते हैं। लड़की को इन व्यापारियों के विषय में यही बताया जाता है कि बहुत जल्द ही ये एक बड़ी फिल्म की शुरुआत करने वाले हैं। और हीरो के तौर पर फिल्म जगत के किसी नामी गिनामी हस्ती के साइन करने की बात बताते हैं। और साथ यह कहते हैं कि इन प्रोड्यूसरों को हीरोइन के तौर पर एक नई लड़की की तलाश है। काम पाने की चाहत में लड़की बड़ी सहजता से इन तथाकथित प्रोड्यूसरों  का बिस्तर गर्म करने लगती हैं।  

पिछले सात साल से आदर्शनगर में कोर्डिनेशन आफिस चलाने वाली एक महिला ने बड़ी बेबाकी से कहा, ’20 साल पहले मैं यहां अपने घर से भागकर हीरोइन बनने आयी थी। कब मैं इस दलदल में फंस गई पता ही नहीं चला। मैं लड़कियों पर दबाव नहीं डालती। मेरे पास वे ही लड़कियां आती हैं, जो पहले से ही इस धंधे में उतरी हुई हुई हैं। उन्हें बेहतर कस्मटर चाहिये और मैं उन्हें बेहतर कस्टमर मुहैया कराती हूं। इसमें गलत क्या है। सवाल करना है तो उन लोगों से करो जो इस धंधे में नई-नई लड़कियों को डाल रहे हैं।’

निसंदेह पिछले कुछ वर्षों से फिल्म जगत के चलन में बदलाव आया है। बहुत बड़ी संख्या में कैरियर ओरिएंटेड लड़कियां व्यवस्थित तरीके से फिल्म जगत में प्रवेश कर रही हैं और सफल भी हो रही हैं, लेकिन आज भी छोटे-छोटे शहरों से रुपहले पर्दे पर चमकने की चाहत में मध्यम वर्ग की लड़कियां मुंबई की ओर रुख कर रही हैं और बड़ी सहजता से संगठित वेश्यावृति के धंधे में फंसती जा रही हैं। इस संगठित वेश्यवृति के धंधे में कोर्डिनेशन आफिस धुरी का काम करे हैं, और इसको चलाने वाले लोग व्हाइट कालर दलाल का। मजे की बात है कि फिल्म जगत कोर्डिनेशन आफिसों की इस सच्चाई से अवगत है। पुलिस वाले इस इनके विषय में अच्छी तरह जानते हैं, लेकिन कमाई का एक मजबूत स्रोत होने के कारण इनके धंधे को बाधित करने के पक्ष में नहीं है।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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