रूट लेवल

लूट के नए-नए तरीके अपना रही बिहार सरकार

विनायक विजेता, वरिष्ठ पत्रकार।

भाड़ा चुकाने के पैसे हैं, पर सरकारी गाड़ी खरीदने के नहीं

नीतीश कुमार के राज वाला बनता-बढ़ता बिहारके विकास और सरकारी कोष का यह़ हाल है कि सरकार को उच्च पदस्थ अधिकारियों के सरकारी काम के लिए सरकारी गाड़ी खरीदने के लिये या तो पैसे नहीं हैं या सरकार लूट के नए तरीके का प्रयोग कर रही है। पटना से प्रकाशित एक लोकप्रिय हिन्दी दैनिक में बुधवार को पृष्ठ संख्या-15 पर पटना समाहरणालय के जिला नजारत शाखा की ओर से एक बडा सा विज्ञापन दिया गया है, जिसमें पटना में पदस्थापित अपर समाहर्ता और वरीय उप समाहर्ता स्तर के अधिकाधिकारियों के सरकारी काम के लिए भाड़े पर टाटा सूमो भिक्टा, बोलेरो या जाइलो जैसे व्यवसायिक लक्जरी गाडियां भाड़े पर मांगी गई हैं। अब सवाल यह है कि क्या सरकार दिवालिया हो गई है, कि उसके पास अपने अधिकारियों के कामकाज के लिए सरकारी गाड़ी खरीदने के रुपये नहीं हैं या भाड़े की गाडी के नाम पर सरकार कुछ चुनिंदा ट्रेवल एजेंसियों को फायदा पहुंचाना चाहती है, जैसा पूर्व में पर्यटन के नाम पर कांग्रेस के एक पूर्व राज्य सभा सदस्य व बिहार कांग्रेस के कुछ महीनों तक प्रभारी रहे दक्षिण भारत के एक राजनेता की चुनिंदा एजेंसी गौरव ट्रेवेल्स को पटना में लक्जरी वोल्वो बस चलाने का ठेका दिया गया।

सूत्र बताते हैं कि गौरव ट्रेवेल्स मामले में भी तत्कालीन पर्यटन मंत्री इसके खिलाफ थे पर उनकी एक न चली। एक ओर नीतीश कुमार और उनकी सरकार जहां बिहार के विकास का डंका पीट रही है वहीं अधिकारियों के लिए भाड़े पर गाडी लेने और उसके पहले इसके लिए हजारों रुपए विज्ञापन मद में खर्च करने के पीछे सरकार की मंशा साफ झलक रही है। एक ओर पटना के विभिन्न सरकारी कार्यालयों में जहां आवश्यक रख रखाव और बेहतर देखभाल के अभाव में अच्छी सरकारी गाडियां सड़ गई या सड़ रही हैं, वहीं भाड़े की गाडी के नाम पर सरकार और पटना जिला प्रशासन ने लूट का एक नया तरीका निकाल सरकारी कोष के दुरुपयोग के नए फार्मूले का इजाद कर डाला है। सरकार दो वर्षों में इन गाडियों को भाड़े के रुप में दी गई जितनी राशि खर्च करेगी उससे एक नयी गाड़ी ली जा सकती है। अगर मान भी लिया जाए कि नयी गाड़ी खरीदने के लिए सरकारी कोष में रुपए नहीं भी हैं, तो सरकार और जिला प्रशासन के पास ऐसे कई विकल्प हैं जिनसे नयी गाडियां खरीदी जा सकती हैं, पर जहां लूट की छूट ही सरकार का मकसद बन गया हो तो वहां क्या कहना।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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