सफेदपोशों की 101 पत्थर खदानों ने छीन लिया सोनभद्रवासियों का चैन

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सोनभद्र से शिव दास की रिपोर्ट
सोनभद्र और आस-पास के सफेदपोशों की 101 पत्थर खदानों ने सोनभद्र के मूल बाशिंदों के साथ-साथ यहां के रहवासियों का चैन छीन लिया है। इन सफेदपोशों में राजनेताओं, समाजसेवियों, पत्रकारों और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग शामिल हैं। यह जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत मांगी गई सूचना के तहत सामने आई है। तत्कालीन जिला खान अधिकारी एसके सिंह की ओर से 8 अक्टूबर, 2012 को पत्र
के माध्यम से इस संवाददाता को दी गई जानकारी पर गौर करें तो सोनभद्र में डोलो स्टोन (गिट्टी/बोल्डर) के 101, सैंड स्टोन के 86 और बालू/मोरम के 13 खनन पट्टे स्वीकृत हैं। सोनभद्र की फिजा में जहर घोलने वाले वैध एवं अवैध क्रशर प्लांटों को गिट्टी और बोल्डर मुहैया कराने वाले डोलो स्टोन के खनन पट्टों के मालिकों की बात करें तो इनमें सोनभद्र, वाराणसी और चंदौली के अनेक राजनेताओं, समाजसेवियों और पत्रकारों का नाम शामिल है।

इतना ही नहीं सोनभद्र के बिल्ली-मारकुंडी और सुकृत खनन क्षेत्र में संचालित होने वाली डोलो स्टोन की खदानों के मालिकाने हक में विभिन्न राष्ट्रीय, राज्यीय और क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदों का हिस्सा भी है। इन नुमाइंदों में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के नेता भी शामिल हैं। इन
प्रभावशाली सफेदपोशों की वजह से सोनभद्र में अवैध खनन पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। इस वजह से सोनभद्र के बिल्ली-मारकुंडी और सुकृत खनन क्षेत्र में अवैध रूप से संचालित हो रहे स्टोन क्रशर प्लांटों की संख्या में
इजाफा हो रहा है। वाराणसी-शक्तिनगर राजमार्ग के आस-पास का प्रदूषित इलाका रहवासियों और यहां के बाशिंदों के लिए मौत का कारण बनकर उभर रहा है। इसके बावजूद सोनभद्र और आस-पास के जिलों में प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों पर अंकुश लगाने के लिए जिम्मेदार उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के क्षेत्रीय अधिकारी कालिका सिंह उच्चतम न्यायालय के आदेशों को दरकिनार कर सैकड़ों क्रशर प्लांटों को सहमति-पत्र जारी कर चुके हैं। इतना ही नहीं वे अवैध रूप से संचालित हो रहे स्टोन क्रशर प्लांटों के संबंध में सूचना उपलब्ध कराने में भी कोताही बरत रहे हैं।
यूपीपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारियों की शिथिलता की वजह से जिले की फिजा में घातक रसायनों की मात्रा अपनी तय सीमा से कहीं ज्यादा पहुंच गई है। इस वजह से लोग क्षय रोग (टीबी), दमा, कैंसर सरीखी घातक बीमारियों का शिकार होकर मौत को गले लगा रहे हैं। स्टोन क्रशर प्लांट के संचालन के लिए आवश्यक दिशा निर्देशों पर गौर करें तो जिस स्थान पर स्टोन क्रशर प्लांट संचालित होता है, वह स्थान चारों तरफ से चहारदीवारी से घिरा होना चाहिए।
इस इलाके के 33 फीसदी भाग पर चहारदीवारी से पांच अथवा 10 मीटर की चौड़ाई पर चारों तरफ पौधे लगे होने चाहिए। स्टोन क्रशर प्लांट में लगी जालियां टिन शेड से ढकी होनी चाहिए। प्लांट से निकलने वाले मैटिरियल (प्रोडक्ट) से उड़ने वाले धूल को हवा में घुलने से रोकने के लिए उसके चारों तरफ पानी के फव्वारों की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा स्टोन क्रशर प्लांट की चहरादीवारी के चारों ओर पानी के भव्वारे लगे होने चाहिए, जिससे हवा में एसपीएम (सस्पेंडेड पर्टिक्यूलेट मैटर्स) और आरएसपीएम (रिस्पाइरल सस्पेंडेड पर्टिक्यूलेट मैटर) न घुल सके। स्टोन क्रशर प्लांट से मैटिरियल को ढोने वाले वाहनों के खड़े होने वाली जगह और गुजरने वाले मार्ग तारकोल, गिट्टी अथवा बोल्डर के बने होने चाहिए। सोनभद्र के खनन क्षेत्र में संचालित होने वाला कोई भी क्रशर प्लांट उपरोक्त मानकों को पूरा नहीं करता है, जिससे खनन क्षेत्र के वातावरण में एसपीएम (सस्पेंडेड पर्टिक्यूलेट मैटर्स), आरएसपीएम (रिस्पाइरल सस्पेंडेड पर्टिक्यूलेट मैटर), सल्फर डाई ऑक्साइड, एनओएक्स आदि हानिकारक तत्वों की मात्रा सामान्य से कहीं ज्यादा हो चुकी है। इस वजह से बिल्ली-मारकुंडी, बारी, मीतापुर, डाला, पटवध, करगरा, सुकृत, खैरटिया, ओबरा, चोपन, सिंदुरिया, गोठानी, रेड़िया, अगोरी समेत कई क्षे्त्रों के लोग टीबी यानी क्षय रोग और दमा जैसे घातक बीमारियों की चपेट में हैं।
पर्यावरणविद् और प्रदूषण नियंत्रण के लिए काम कर रहे विशेषज्ञों की मानें
तो खनन क्षेत्र के वातावरण की हवा में एसपीएम (पत्थर क्रश करते समय
निकलने वाला धूल का कण) की औसत मात्रा 2000 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक नार्मल मीटर (एमजीपीसीएनएम) पाई गई है जो शुद्ध हवा में पाए जाने वाले एसपीएम की सामान्य मात्रा 600 एमजीपीसीएनएम से कहीं ज्यादा है। वहीं यहां की हवा में आरएसपीएम (हवा में घुले पत्थर के कण जो नंगी आंखों से दिखाई
नहीं देते हैं) की मात्रा औसतन 1000 एमजीपीसीएनएम पाई गई है, जो सामान्य से कही ज्यादा है। विशेषज्ञों की मानें तो आरएसपीएम बहुत ही घातक है जो सांस लेते समय फेफड़ों के अंदर पहुंच जाता है। धीरे-धीरे ये फेफड़े को छलनी करने लगता है और लोग टीबी, दमा और कैंसर सरीखे घातक रोगों का शिकार हो जाते हैं।
इतना ही नहीं जिले में मानवजनित आपदाएं भी उन्हें अपना शिकार बना रही हैं। इसकी बानगी पिछले साल 28 फरवरी को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में हुए खदान हादसे के रूप में सामने आ चुकी है।
जिला खान अधिकारी राज कुमार संगम और सर्वेयर वेदपति शुक्ला के दावों की मानें तो बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में मानक के अनुरूप खनन का कार्य होता है। हालांकि उनके दावे की पोल बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में मौत का कुआं बन चुकी पत्थर की खदानें खुद ही खोल देती हैं। समय-समय पर वे अपना विभत्स रूप भी दिखा देती हैं।
सोनभद्रवासियों के लिए खतरनाक साबित हो रहे डोलो स्टोन की खदानों और अवैध रूप से संचालित हो रहे क्रशर प्लांट के संचालकों में सफेदपोशों का नाम सामने आने पर डाला निवासी समाजसेवी एके गुप्ता ने पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। जिला सत्र न्यायालय में अधिवक्ता पवन कुमार सिंह ‘सिद्धार्थ’ ने कहा कि अवैध खनन और क्रशर प्लांटों के संचालन में राजनेताओं, समाजसेवियों और पत्रकारों का नाम आना चिंताजनक है। इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जानी चाहिए।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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