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खेल पत्रकार भौंकने वाले प्राणी नहीं हैं सहवाग

मनीष शर्मा

मनीष शर्मा, नई दिल्ली

एक दिन पहले ही राजधानी दिल्ली में विश्व के सर्वकालिक महान बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने एक किताब का विमोचन किया..और जब कार्यक्रम के होस्ट ने उनसे पूछा जब क्रिटिक्स (आलोचक या समालोचक) आपकी आलोचना करते हैं, तो आपको कैसा लगता है, तो सहवाग ने कहा, “मैं मस्त हाथी की तरह चलता रहता हूं और वे जानवरों की तरह भौंकते रहते हैं..मैं बिल्कुल भी उनकी परवाह नहीं करता…अरे ये क्या कह दिया सहवाग ने..सहवाग जैसा लिजेंडरी खिलाड़ी और शांत स्वभाव का व्यक्ति आखिर इन शब्दों का इस्तेमाल कैसे कर सकता है…वो भी कैमरे के सामने, जिसे पूरा देश देख रहा है…जी हां सहवाग ने अप्रत्यक्ष रूप से खेल पत्रकारों को कुत्ता करार दिया…क्या कोई और जानवर भी भौंकता है..कोई भी मेरे सीमित ज्ञान में इजाफा कर सकता है?  इसी के साथ सहवाग ने उन शख्स को भी भौंकने वाला जंतु करार दिया, जिनकी किताब का विमोचन करने वह आए थे..आखिर ऐसे कैसे बोल सकते हैं सहवाग..निश्चित ही सहवाग ने इन शब्दों से हिंदुस्तान के उन बड़े-बड़े क्रिटिक्सों को भी भौंकने वाला जंतु करार दिया, जिन्होंने उनकी ऑटोबायोग्राफी लिखी..या जो अपनी चिंतन रूपी स्याही से उन्हें या उनकी बिरादरी मसलन क्रिकेटरों पर अपनी कलम घिसते हैं या घिसते रहते हैं…मैं भी पूर्व प्रथम श्रेणी क्रिकेटर हूं..और कह सकता हूं कि ज्यादातर क्रिकेटरों की सोच पत्रकारों को लेकर अजीबोगरीब होती है..और शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचने के बाद तो कभी-कभी ऐसा भी होता-मैंने पहले आपको कहीं देखा है..वैसे कहीं न कहीं इसके लिए कुछ हद तक पत्रकार भी दोषी हैं…मुझे याद है कि जब सहवाग ने अपने रेस्त्रां का उदघाटन किया, तो खेल पत्रकारों का झुंड रेस्त्रां में टूट पड़ा…अच्छी बात है दोस्त (?)  ने बुलाया था..पर उससे भी आक्रामक अंदाज में वो उनके लिए रखे भोज पर टूटे..मानों वो सिर्फ इसी मकसद से वहां गए थे…और मुझे पूरा विश्वास है कि अगर सहवाग आज फिर से खेल पत्रकारों को आमंत्रित करते हैं, तो नजारा कुछ ऐसा ही होगा..इन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि वीरू ने किसे और क्यों भौंकने वाला जंतु करार दिया….

बेशक क्रिकेटरों की तरह इन पत्रकारों के लिए नाश्ता, डिनर, नींद या ओढ़ना-बिछाना नहीं होती..पर काफी हद तक होती है..मुझे पूरा भरोसा है कि कई पत्रकार क्रिकेट ज्ञान के मामले में देश के ज्यादातर प्रथण श्रेणी क्रिकेटरों को पानी पिला सकते हैं…निश्चित ही सहवाग सहित क्रिकेटरों को पत्रकारिता व्यवसाय और पत्रकारों को गंभीरता से समझने की जरुरत है…ये भूल जाते हैं कि कैसे खुद सहवाग सहित इनकी बिरादरी के सभी सदस्य बचपन के दिनों में या शोहरत और पैसा आने से पहले कैसे इन भौंकने वाले जंतुओं के पास अपने फोटो लेकर जाते हैं…गिड़गिड़ाकर उनके पारे में लेख लिखने और फोटो छापने का अनुरोध करते हैं…सर-सर कहकर पुकारते हैं..पर क्या मौकापरस्ती है जनाब…जब यही शोहरत की बुलंदियों पर होते हैं, तो यही सर सहवाग को भौंकने वाले जंतु दिखाई लगने लगते हैं…बस आपकी तारीफों में कसीदे काढ़ते रहें, तो सब ठीक..वर्ना भौंकने वाले जंतु….नहीं सहवाग नहीं…क्रिटिक्स या पत्रकार कुत्ते नहीं हैं….बहुत ही गलत बयानबाजी की है आपने..और आपको इसके लिए माफी मांगनी चाहिए….ईश्वर आपको सद्धबुद्धि दे…वैसे भौंकने वाले प्राणी आपको जरूर माफ कर देंगे….।

 परिचय: मनीष शर्मा एक हुनरमंद क्रिकेटर के तौर पर मनीष शर्मा रंजी खेल चुके हैं, और पिछले एक दशक से खेल पत्रकारिता से जुड़े हुये हैं। फिलहाल महुआ न्यूज में  स्पोर्ट्स एडिटर की जिम्मेदारी संभाले हुये हैं।

 

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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