दम तोड़ने की कगार पर खड़ा है खादी उद्योग
संजय मिश्र
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बिहार में खादी की दुर्दशा पीड़ादायक है। केंद्र सरकार के खादी कमीशन और बिहार सरकार के खादी बोर्ड से जुड़े कई संस्थाएं हैं जो उपेक्षा के कारण नाम के लिए चल रहे हैं। बिहार राज्य खादी ग्रामोद्योग संघ की इकाइयाँ खादी कमीशन से संबद्ध हैं। पर कमीशन की तरफ से रिबेट मिलना बंद हो गया है। ले देकर बिहार सरकार की ओर से दस फीसदी का रिबेट मिलता है। लेकिन रिबेट का पैसा भी कई सालों का बकाया है। आय के साधन नहीं … समस्याओं के मकडजाल से निजात दुरूह है। संघ
की दरभंगा इकाई के बहाने खादी की दुर्दशा की पड़ताल करती ये रिपोर्ट …..
“…. सूत का हर धागा जो मैं कातता हूँ उसमें मुझे ईश्वर दिखाई देते हैं ….
खादी व्यावसायिक युद्ध की जगह व्यावसायिक शांति का प्रतीक है …. ये भारत की
आर्थिक आज़ादी का वाहक है ….”
महात्मा गांधी ने जब ये बातें कही होगी तो उन्हें रत्ती भर अंदाजा नहीं रहा होगा कि उनके सपनों के भारत में
खादी बदहाली की दास्तान लिखने को मजबूर होगी। गांधी की इन उत्कट आस्था से बेखबर और अनमन-यस्क दरभंगा जिला खादी ग्रामोद्योग संघ परिसर में आज सन्नाटा पसरा है। न तो चरखे की घर्र- घर्र और न ही उत्पादन से जुडी कोई चहलकदमी। माहौल में सताती भविष्य की दुश्चिंता और थम कर निकलते निःश्वास के बीच एक इंतजार कि कहीं से सहायता के कोई हाथ उठ जाएं।
खादी भंडार नाम से मशहूर बिहार राज्य खादी ग्रामोद्योग संघ की दरभंगा इकाई ने इतनी विकलता कभी न देखी। हाल में यहाँ के कर्मी धरने पर बैठे। इनकी वेदना ख़बरें बनी तो आस जगी पर जिन्दगी फिर उसी पटरी पर। बाईस कठ्ठे के परिसर में
फैले इस परिसर में कभी ढाई सौ कर्मी अपना कौशल दिखाते थे। नील टीनोपाल में धुले झक झक करते खादी के कपडे पहने लोगों की अलग ही दुनिया बसती थी। विपत्ति की मारी महिलाओं का आँखों में उम्मीद लिए यहाँ चरखा कातने के अवसर की तलाश में आना, ट्रकों से अनलोड होता कच्चा माल, फिनिश्ड उत्पादों को खादी के शो रूम ले जाने की गहमा-गहमी और उत्कंठा बढ़ाते स्वाधीनता सेनानियों की आवा-जाही। सादगी के बीच भव्यता के भाव का ये अहसास एम एल अकेडमी चौक ने सालों तक महसूस किया।
चौक पर उठने-बैठने वाले लोग आज खादी भण्डार की दुर्दशा का गवाह हैं। कांति -विहीन हो चुके इस परिसर में विवशता की टीस झेलते 7-8 परिवार ही रह गए हैं। मेस बंद, चरखे गोदाम में, उत्पादन लगभग ठप। एक मात्र आसरा बिक्री केन्द्रों का। बिक्री प्रभारी शिवेश्वर झा कहते हैं कि शहर में स्थित चार में से दो बिक्री केन्द्रों को दूकान का किराया नहीं चुका पाने के कारण बंद कर देना पड़ा। केंद्र सरकार के खादी ग्रामोद्योग कमीशन से संबद्ध इस संघ की जिले में 32 इकाई थी। अब ये संख्या 24 पर सिमट आई है। संघ के संयुक्त मंत्री नन्द किशोर लाल दास के मुताबिक इनमें से दस केंद्र ऐसे हैं जहाँ एक भी स्टाफ नहीं
है। पूरे जिले की संघ की गतिविधि 28 स्टाफ के आसरे जैसे-तैसे चल रही है। स्टाफ-विहीन होने के कारण कई केंद्र लैंड माफिया के चंगुल में आ गए हैं।
ये नौबत क्यों है? आंकड़ों के सहारे समझने की कोशिश करें। खादी कमीशन के अंतर्गत ऊनी और सिल्क के देशव्यापी उत्पादन की ग्रोथ रेट छह फीसदी के आस-पास रही। ये आंकड़े साल 2009 से 2012 के बीच के हैं। जबकि इसी अवधि में कमीशन को
केंद्र सरकार की सहायता राशि में पचास फीसदी से भी ज्यादा का इजाफा हुआ। यानि इन पैसों का सही दिशा में उपयोग नहीं हो रहा। दरभंगा का खादी संघ कमीशन से पैसों की सहायता के लिए तरस रहा है। अब यहाँ के आंकड़े देखें। साल 2000 के
मुकाबले साल 2011 के बीच उत्पादन, बिक्री और रोजगार सृजन साल दर साल घटता ही रहा।
टेबल –
दरभंगा खादी संघ
साल – 2000 साल – 2011
उत्पादन 65.66 लाख रूपये 9.03 लाख रूपये
बिक्री 78.34 लाख रूपये 20.40 लाख रूपये
रोजगार सृजन (स्टाफ) 112 28
खादी कमीशन (मुंबई)
साल – 2000 साल – 2005
उत्पादन 431.5 करोड़ रूपये 461.5 करोड़ रूपये
बिक्री 570.5 करोड़ रूपये 617.8 करोड़ रूपये
रोजगार सृजन 9.5 करोड़ 8.6 करोड़
ऊपर से केंद्र सरकार ने रिबेट देना बंद कर दिया है। फाइलों को खंगालते खादी भण्डार के अका-उन-टेंट राज कुमार बताते हैं कि अभी 35 लाख की देनदारी है। इसके अलावा वेतन और ई पी एफ के लिए पैसे जुटाने पड़ते हैं। उत्पादन के लिए कच्चा माल चाहिए और उसके लिए चाहिए पैसे। कमीशन का मोहम्मदपुर और सकरी में रुई का गोदाम था जहाँ से रियायत में कच्चा माल मिल जाता था। साल 1998 में ये गोदाम बंद कर दिए गए। फिलहाल कमीशन के ही हाजीपुर स्थित टेप पूनी प्लांट से नकद में
पूनी की खरीद हो रही है। टेप पूनी के जरिये संघ के दोघरा, सिंह-वाड़ा और मोहम्मदपुर यूनिट में कपडे का उत्पादन होता है। इसके अलावा बिरौल केंद्र में सूत कटाई होता है। बाकि जगहें उत्पादन पूरी तरह ठप है। पहले उत्पादन अधिक था तो देश भर में यहाँ का माल जाता था। उस कमाई का एक हिस्सा बाहर से ऊनी कंबल मंगवाने के काम आता था जो यहाँ के बिक्री केन्द्रों
पर बेचे जाते। अभी कंबल की खरीदारी नहीं के बराबर है। तेलघनी, बढईगिरी और अन्य उद्योग भी बंद हो गए हैं। समस्याएँ और भी हैं। खादी कमीशन ने 1972 में रोजगार सृजन के लिए संघ की जिले भर की अचल संपत्ति के एवज में 2 करोड़ का लोन दिया था। अब इस कर्ज की राशि लौटाने का दबाव बनाया जा रहा है। अपग्रेडेड चरखे की कमी और स्किल्ड लेबर का अभाव तो झेलना ही पड़ रहा है। खादी भण्डार के कर्मी सुनील राय बताते हैं कि यहाँ के काम की समझ के बावजूद स्टाफ के बच्चे इस पेशे में नहीं आना चाहते।
निरंजन कुमार मिश्र – मंत्री , बिहार राज्य खादी ग्रामोद्योग संघ , दरभंगा – पैसे की कमी आड़े आ रही है। केंद्र ने साल 2010-11 से रिबेट देना बंद कर दिया है। जबकि बिहार सरकार ने रिबेट 20 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी कर दिया है। केंद्र की करीब 22 लाख और बिहार की करीब 18 लाख रूपये रिबेट की राशि का भुगतान हमें नहीं हुआ है। बावजूद इसके उत्पादन की रुग्णावस्था से पार पाने की हम कोशिश कर रहे हैं।