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प्रतिशोध की मुद्रा में नीतीश हुकूमत
बिहार में संविदा पर नियुक्त शिक्षक जिस तरह से हंगामा करने पर उतरे हुये हैं उससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार काफी गुस्से में है। कई बार सार्वजनिकतौर पर अपने गुस्से का इजहार करते हुये उन्होंने यहां तक कहा है कि वह उपद्रवी शिक्षकों की परवाह नहीं करते और हक मांगने का यह कोई तरीका नहीं है। कहा जाता है कि कुछ अरसा पहले विकास यात्रा के दौरान खगड़िया में नीतीश कुमार पर जानलेवा हमला इन्हीं संविदा शिक्षकों के हक के नाम पर ही किया गया था। उस वक्त नीतीश कुमार बिहार में घूम- घूमकर विकास यात्रा कर रहे थे, और इसी क्रम में खगड़िया में उनकी कार पर एक उग्र भीड़ ने पत्थरों से हमला किया था, जिसमें वह बाल बाल बच गये थे। इससे पहले संविदा शिक्षकों की टोलियां नीतीश कुमार के खिलाफ जगह जगह लगातार प्रदर्शन कर रही थी। उसी समय से नीतीश कुमार संविदा शिक्षकों पर भड़के हुये हैं। हाल ही में पटना में प्रदर्शन कर रहे संविदा शिक्षकों की जबरदस्त पिटाई से बिहार में यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या शिक्षकों की पिटाई ऊपरी इशारे पर हुई है?
जानकारों का कहना है कि मारपीट की शुरुआत पहले पुलिस ने ही की थी। पहले धरने पर बैठे इन शिक्षकों को रात में जाकर मार पीट कर भगाने की कोशिश की। फिर सुबह जब ये लोग अपने हक की मांग और पुलिस की ज्यादती के खिलाफ एकजुट होकर प्रदर्शन करते हुये विधानसभा की ओर बढ़ने लगे तो फिर पुलिस वालों ने इन पर जबरदस्त हमला किया, मानो वे मौके के इंतजार में थे। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो पुलिस वाले शिक्षकों की पिटाई करने के साथ-साथ अगल बगल खड़े वाहनों को तोड़फोड़ भी रहे थे। दूसरे दिन लगभग सभी अखबारों में खबर यह बनाई गई कि उपद्रवी शिक्षकों को काबू में करने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करनी पड़ी। टूटे हुये वाहनों की तस्वीरें भी इन खबरों में साथ चस्पा थी। इसके बाद जब सोशल मीडिया पर पुलिसकर्मियों द्वारा वाहनों के साथ तोड़फोड़ करने की तस्वीरें प्रेषित की गई तब बिहार में संविदा शिक्षको पर हुई लाठी चार्ज के मामले में एक नया मोड़ आ गया। इस मसले पर नीतीश कुमार की जमकर आलोचना शुरु हो गई। इसके बाद पुलिस अधिकारियों को भी अपने बचाव के लिए तर्क नहीं मिल रहे थे। बार बार वे यही कह रहे थे कि प्रदर्शन के दौरान शिक्षक उग्र हो गये थे औरो उन्हें नियंत्रित करने के लिए हल्का सा बल प्रयोग करना पड़ा था। पुलिस के अपराधियों सरीखे चलन पर तमाम संविदा शिक्षक हैरान थे।
एक तरफ संविदा शिक्षकों को लेकर नीतीश हुकूमत प्रतिशोध की मुद्रा में थी तो दूसरी तरफ तमाम विपक्षी पार्टियां नई परिस्थिति से अधिक से अधिक लाभ उठाने के मूड में थे। एक दिन बाद एकजुट होकर तमाम विपक्षी दलों ने बिहार बंद का आह्वान किया। कुल मिलाकर इन शिक्षकों को लेकर बिहार की राजनीति पूरी तरह से गर्मा गई। विपक्षी दल संविदा शिक्षकों को न्याय दिलाने की बात कर रहे हैं, जबकि नीतीश हुकूमत का कहना है कि नियुक्ति के पहले ही तमाम शिक्षकों को स्पष्ट रूप से कह दिया गया था कि उनकी नियुक्ति समझौते के तहत की जा रही है। भविष्य में इस समझौते को रद्द भी किया जा सकता है। ऐसे में शिक्षकों द्वारा वेतन बढ़ाने की मांग बेमानी है। फिलहाल नीतीश सरकार शिक्षकों को लेकर खजाने पर अतिरिक्त बोझ लेना नहीं चाहती है और न ही वह इसकी जरूरत महसूस करती है। लेकिन राजद समेत तमाम विपक्षी पार्टियां इस मसले को लेकर ताल ठोकने के मूड में है। एक अनुमान के मुताबिक संविदा शिक्षकों की संख्या ढाई लाख के करीब है, और बिहार के हर जिले में इनकी अच्छी खासी मौजूदगी है। ऐसे में ये शिक्षक यदि सरकार विरोधी हो जाते हैं तो निसंदेह नीतीश हुकूमत को लगातार परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए विपक्ष लगातार इन शिक्षकों की पीठ पर हाथ फेर रहा है। ये शिक्षक भी नीतीश हुकूमत के लिए नित्य नई मुसीबत खड़ी करके विपक्ष को निराश नहीं कर रहे हैं।
इस खींचतान में सबसे अधिक खामियाजा बिहार के बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। संविदा शिक्षकों ने अब बिहार में मार्च से शुरु होने वाली मैट्रिकी परीक्षा को डिस्टर्ब करने की घोषणा की है। अब वे इस परीक्षा प्रक्रिया से दूर रहेंगें। संभावना तो यह व्यक्त की जा रही है कि ये लोग परीक्षा प्रक्रिया को बाधित करने की दिशा में भी कदम उठा सकते हैं। यानि की नीतीश हुकूमत ने जिनके हाथों में बिहार के बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी सौंपी थी अब वही यहां की शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करने पर तुले हुये हैं। हालांकि इस स्थिति के लिए नीतीश हुकूमत को भी कठघड़े में खड़ा करने वालों की कमी नहीं है। नीतीश हुकूमत की शिक्षा नीति पर नजर कड़ी नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि नीतीश कुमार ने बिहार की प्राथमिक शिक्षा में ‘ठेकेदारी प्रथा’ का प्रयोग करके बहुत बड़ी गलती की है। इस ‘ठेकेदारी प्रथा’ के तहत रखे गये अधिकांश शिक्षक अयोग्य थे। उन्हें बच्चों को पढ़ाने तक नहीं आता था। बस स्कूल में जाकर टाइम काटते थे। लेकिन अब बच्चों की परीक्षा में बाधा पहुंचाकर ये लोग काफी विध्वंसक रूप अख्तियार करने जा रहे हैं। इसका खामियाज बिहार में आनी वाली नस्लों को भुगतना पड़ेगा।
मजे की बाद है कि एक ओर बिहार के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की स्थिति गिरती जा रही तो दूसरी ओर निजी स्कूलों की संख्या कुकुरमुत्ते की बढ़ती जा रही है। इन स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों का शोषण तो यहां भी जबरदस्त तरीके से हो रहा है और इनके हलक से आवाज तक नहीं निकल रही है। इन स्कूलों में बच्चों के माता-पिता से भी भारी फीस वसुले जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि बिहार में सरकारी स्कूलों को एक सोची समझी साजिश के तहते तहस नहस किया जा रहा है और जाने अनजाने नीतीश हुकूमत इसका माध्यम बनी हुई है। नीतीश हुकूमत को हांकने वाले कई ऐसे लोग हैं, जो अंदर खाते बिहार के शिक्षा माफियों के साथ के लिए काम कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि दोबारा भारी बहुमत से सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार को पूरी तरह से खुद का गुणगान सुनने की आदत सी पड़ गई है। सही तस्वीर बताने वालों को दूर कर दिया गया है। नीतीश कुमार के इर्दगिर्द एक ऐसी लॉबी खड़ी हो गई है जो तोलमोल करके विदेशों से नीतीश हुकूमत को ‘बेहतर होने’ का सर्टिफिकेट दिलाने में माहिर है। नीतीश कुमार इन्हीं सर्टिफिकेटों का इस्तेमाल यह बताने के लिए कर रहे हैं कि बिहार तेजी से प्रगति की राह पर अग्रसर है। जो लोग नीतीश हुकूमत के इस तथाकथित आयातित विकास के साथ सुर में सुर नहीं मिला रहे हैं उन्हें बिहार में विकास विरोधी घोषित किया जा रहा है। यह वजह है कि कल तक बिहार के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले संविदा शिक्षक आज बलवाई और विकास विरोधी करार दिया जा रहे हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को भी अंत समय तक यह समझ में नहीं आया था कि बिहार की जनता उनसे दूर हो चुकी है, अब नीतीश कुमार भी इसी राह पर चलते हुये दिख रहे हैं। उनकी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि बिहार में शैक्षणिक मसलों का हल डंडों से नहीं हो सकता।
अब तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि ठेकेदारी प्रथा पर लिये गये शिक्षकों को नियमित नहीं किया जा सकता है। ऐसा करने पर राज्य को अलग से 12 हजार करोड़ रुपये का इंतजाम करना होगा। इन शिक्षकों को वेतन देने के लिए सूबे में विकास के अन्य कार्यो को नहीं रोका जा सकता। मामला साफ है कि बिहार में नियोजित शिक्षकों को लेकर यथास्थिति ही बना रहेगा, चाहे कितना भी आंदोलन कर लें। जानकरों का कहना है कि नीतीश कुमार कूल माइंड से काम लेते हैं। यहां तक कि रिवेंज के मामले में भी कूल माइंड से ही चलते हैं। अब जिस तरह से नीतीश कुमार बयान दे रहे हैं उससे इतना तो तय है कि फिलहाल इन शिक्षकों के हाथ कुछ भी नहीं आने वाला है। बेहतर होगा नियोजित शिक्षक भी कूल माइंड से काम लें।